बंगाल में बीएलओ के विरोध प्रदर्शन पर चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए इसे गंभीर सुरक्षा चूक बताया है। आयोग ने राज्य पुलिस से 48 घंटे के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
बंगाल में बीएलओ का प्रदर्शन
बीएलओ की पीड़ा की सुनवाई नहीं होने पर धरना देना क्या चुनाव अधिकारियों की सुरक्षा के लिए ख़तरा है? क्या बीएलओ के रूप में काम कर रहे शिक्षक चुनाव अधिकारी से मिलने के लिए कार्यालय में धरने पर बैठ जाएँ तो यह गंभीर सुरक्षा चूक है? कम से कम चुनाव आयोग तो ऐसा ही मानता है। पश्चिम बंगाल में बीएलओ के प्रदर्शन पर चुनाव आयोग यानी ईसीआई ने कोलकाता पुलिस को फटकार लगाई है। इसने इसे गंभीर सुरक्षा चूक क़रार देते हुए 48 घंटे के अंदर कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट मांग ली है।
बीएलओ के इस प्रदर्शन को लेकर चुनाव आयोग ने कोलकाता पुलिस प्रमुख को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने साफ़ लिखा है, '24 नवंबर 2025 को पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में एक गंभीर सुरक्षा चूक हुई है। मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था स्थिति को संभालने में पूरी तरह अपर्याप्त साबित हुई, जिससे मुख्य निर्वाचन अधिकारी, अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी तथा अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया।'
चुनाव आयोग ने पुलिस को तुरंत निर्देश दिए हैं कि सीईओ मनोज अग्रवाल सहित पूरे दफ्तर के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को घर और आने-जाने के दौरान पर्याप्त सुरक्षा दी जाए। निर्देश में कहा गया है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर और आगामी चुनावों की संवेदनशीलता को देखते हुए सुरक्षा का उच्च स्तर का वर्गीकरण किया जाए। ईसीआई ने कहा है कि भविष्य में कोई अप्रिय घटना न हो, इसके लिए सभी ज़रूरी क़दम उठाए जाएँ। ख़त की कॉपी मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और सीईओ को भी भेजी गई है। अभी तक पुलिस कमिश्नर की ओर से कोई जवाब नहीं आया है।
क्या हुआ था 24-25 नवंबर को?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर के दौरान ज़्यादा कार्यभार से परेशान बीएलओ अधिकार रक्षा समिति ने सोमवार को सीईओ दफ्तर के बाहर प्रदर्शन शुरू किया था। पहले यह सिर्फ रैली थी, लेकिन बात बिगड़ते-बिगड़ते प्रदर्शनकारी दफ्तर के अंदर घुस गए और पूरी रात वहीं डटे रहे।पश्चिम बंगाल से और ख़बरें
इस मामले की शुरुआत दिन में ही हो गई थी। दोपहर 4:30 बजे के क़रीब समिति के सदस्य सीईओ मनोज अग्रवाल के चैंबर के ठीक बाहर धरने पर बैठ गए और चीफ खुद ज्ञापन लें, इसकी जिद पर अड़ गए। नारेबाजी भी हुई और तीसरी मंजिल पर अफरा-तफरी मच गई। पुलिस ने पहले 13 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल को ज्ञापन देने की इजाजत दी थी, लेकिन उसके बाद फिर हंगामा शुरू हो गया। रात में भी सात लोग दफ्तर के अंदर ही रहे। शॉल ओढ़कर फर्श पर ही सोए।
मंगलवार सुबह भी वही सात लोग सीईओ के चैंबर के बाहर धरने पर बैठे रहे, गलियारे में भारी पुलिस बल तैनात था। अंत में सीईओ ने उनसे संक्षिप्त मुलाकात की, तब जाकर तीसरी मंजिल वाले प्रदर्शनकारी हटे। लेकिन बाहर सड़क पर बीएलओ और उनके समर्थक प्रदर्शन करते रहे।
बीएलओ का कहना है कि एसआईआर के दौरान एक बीएलओ को 1500-2000 घरों का सत्यापन करना पड़ रहा है, इससे वे बेहद तनाव में हैं। उनका कहना है कि इसके लिए न तो अतिरिक्त मानदेय है और न ही कोई सुविधा।
चुनाव आयोग ने जिस सख्ती से पत्र लिखा है, उससे साफ है कि वह इस घटना को मामूली प्रदर्शन नहीं मान रहा। कोलकाता पुलिस पर अब दबाव है कि वह न सिर्फ रिपोर्ट दे, बल्कि सीईओ दफ्तर की सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह दुरुस्त करे।
बीएलओ का प्रदर्शन अभी भी जारी है, लेकिन अब पुलिस और प्रशासन की नजरें उन पर और सख्त हो गई हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के इस सबसे महत्वपूर्ण काम में लगे बीएलओ और चुनाव आयोग के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है।