पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार के ख़िलाफ़ कोलकाता में एक सिख व्यक्ति की पगड़ी पर चप्पल फेंकने के आरोप में एफ़आईआर दर्ज की गई है। इस घटना ने सिख समुदाय में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है, और सिख संगठनों ने मजूमदार से तत्काल और बिना शर्त माफ़ी की मांग की है। इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है, क्योंकि यह घटना सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने से जुड़ी है।

यह घटना 12 जून को कोलकाता में बीजेपी के एक प्रदर्शन के दौरान हुई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सुकांत मजूमदार उस समय बीजेपी नेताओं के साथ एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे। इस दौरान कथित तौर पर उन्होंने एक चप्पल फेंकी, जो एक सिख व्यक्ति की पगड़ी पर जा गिरी। कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि यह सिख व्यक्ति एक पुलिस अधिकारी था, जो ड्यूटी पर तैनात था। यह घटना सिख समुदाय के लिए अत्यंत अपमानजनक मानी गई, क्योंकि पगड़ी सिख धर्म में सम्मान और पहचान का प्रतीक है।
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घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, इसके बाद सिख समुदाय और विभिन्न संगठनों ने इसकी कड़ी निंदा की। कोलकाता पुलिस ने इस मामले में सिख संगठनों की शिकायत के आधार पर मजूमदार के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और जानबूझकर अपमान करने के आरोप लगाए गए हैं।

सिख संगठनों ने इस घटना को सिख समुदाय के ख़िलाफ़ एक सुनियोजित अपमान क़रार दिया है। एक प्रमुख सिख संगठन के प्रवक्ता ने कहा, 'पगड़ी हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है। इसे अपमानित करना न केवल एक व्यक्ति का अपमान है, बल्कि पूरे सिख समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है।' उन्होंने मांग की कि सुकांत मजूमदार सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगें और पुलिस इस मामले में कठोर कार्रवाई करे।

सिख समुदाय के नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे पूरे राज्य और देशभर में विरोध प्रदर्शन करेंगे। कोलकाता में कई सिख संगठनों ने पहले ही इस घटना के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

मजूमदार ने क्या दी सफ़ाई

सुकांत मजूमदार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह घटना जानबूझकर नहीं हुई थी। उन्होंने दावा किया कि प्रदर्शन के दौरान धक्का-मुक्की हुई और चप्पल अनजाने में फेंकी गई। मजूमदार ने अपने बयान में कहा, 'मेरा इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का नहीं था। मैं सिख समुदाय का सम्मान करता हूँ, और यदि मेरी किसी हरकत से किसी को दुख पहुँचा है तो मैं इसके लिए खेद व्यक्त करता हूँ।'

हालाँकि, बीजेपी के इस स्पष्टीकरण को सिख समुदाय ने अस्वीकार कर दिया है। संगठनों का कहना है कि मजूमदार का बयान पर्याप्त नहीं है और उन्हें औपचारिक रूप से माफ़ी मांगनी होगी। बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस मामले को विपक्षी दलों द्वारा राजनीतिक रंग देने की कोशिश बताया है।
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इस घटना ने पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। टीएमसी ने इस घटना की निंदा करते हुए बीजेपी पर सिख समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, 'सिख समुदाय हमारी शान है। उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी।' विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इस घटना की निंदा की है। 

कोलकाता पुलिस ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है। एफ़आईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए यानी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने कहा कि वे सभी सबूतों, जिसमें वायरल वीडियो भी शामिल है, की जाँच कर रही है।

यह घटना सिख समुदाय और बीजेपी के बीच तनाव का कारण बन सकती है, खासकर पंजाब और अन्य राज्यों में जहाँ सिख आबादी अधिक है। सिख समुदाय के कई नेताओं ने इस घटना को सिखों के ख़िलाफ़ बढ़ती असहिष्णुता का प्रतीक बताया है।

पहले भी हुआ था विवाद

यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल भी सिख पुलिस अधिकारी को अपमानित करने का बड़ा विवाद हुआ था। संदेशखाली में फरवरी 2024 में एक सिख आईपीएस अधिकारी जसप्रीत सिंह को कथित तौर पर बीजेपी नेताओं द्वारा 'खालिस्तानी' कहकर अपमानित किया गया था। यह मामला सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने के कारण चर्चा में रहा।

तब संदेशखाली में स्थानीय महिलाओं ने तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं पर उत्पीड़न और जबरन जमीन हड़पने के आरोप लगाए थे। इस मुद्दे पर बीजेपी ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जिसमें बीजेपी नेता सुकांत मजूमदार और अन्य शामिल थे। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने की कोशिश की, जिसमें सिख आईपीएस अधिकारी जसप्रीत सिंह ड्यूटी पर तैनात थे।
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प्रदर्शन के दौरान जसप्रीत सिंह ने दावा किया था कि बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उन्हें 'खालिस्तानी' कहकर संबोधित किया, केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने पगड़ी पहनी थी और वे सिख थे। यह टिप्पणी सिख समुदाय के लिए अत्यंत अपमानजनक मानी गई, क्योंकि 'खालिस्तानी' शब्द का उपयोग अक्सर सिखों को बदनाम करने के लिए किया जाता है। जसप्रीत सिंह ने एक वीडियो में अपनी पीड़ा व्यक्त की, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी धार्मिक पहचान (पगड़ी) के आधार पर उन्हें निशाना बनाया गया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।

सिख संगठनों और नेताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की थी। उन्होंने इसे सिख समुदाय के ख़िलाफ़ अपमान और सांप्रदायिक घृणा फैलाने की कोशिश बताया था। कई सिख नेताओं ने कहा था कि सिखों ने देश की आजादी और सुरक्षा के लिए सबसे अधिक बलिदान दिए हैं, और उनकी पहचान को इस तरह बदनाम करना अस्वीकार्य है।