पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर केंद्र सरकार के खिलाफ तीखा रुख अपनाते हुए कहा है कि वह राज्य में नया वक्फ संशोधन क़ानून लागू नहीं करेंगी। ममता ने शनिवार को मुर्शिदाबाद जिले के हिंसा प्रभावित लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा, 'सियासत के लिए दंगे भड़काना समाज को नुक़सान पहुँचाता है।' यह बयान ऐसे समय में आया है, जब वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। इसमें 15 पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसा के मामले में कम से कम 118 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। मुर्शिदाबाद में वक्फ बोर्ड के विरोध प्रदर्शन में 3 की मौत की ख़बर है। कोर्ट ने केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है।


केंद्र सरकार कह रही है कि नये वक्फ संशोधन अधिनियम को पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए लाया गया है। केंद्र का दावा है कि यह क़ानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर बनाएगा। हालाँकि, ममता बनर्जी इसे अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुस्लिमों के अधिकारों पर हमला मानती हैं। उन्होंने इसे भेदभावपूर्ण क़रार देते हुए कहा कि यह क़ानून केंद्र ने बनाया है, न कि उनकी सरकार ने। ममता का यह बयान उनके अल्पसंख्यक समर्थक वोट बैंक को मज़बूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

ममता ने पहले भी यह दावा करते हुए नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए जैसे केंद्रीय क़ानूनों का विरोध किया था कि वह इसे बंगाल में लागू नहीं होने देंगी। हालाँकि, सीएए लागू हो चुका है और उनके आलोचक अब वक्फ क़ानून को लेकर उनके वादे पर सवाल उठा रहे हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे लोगों को मूर्ख बनाने की रणनीति बता रहे हैं, जबकि उनके समर्थक इसे राज्य की स्वायत्तता और अल्पसंख्यक हितों की रक्षा के रूप में देखते हैं।

मुर्शिदाबाद में वक्फ क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुक्रवार की नमाज के बाद हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। इस हिंसा में कम से कम 15 पुलिसकर्मी घायल हुए। ममता ने हिंसा की निंदा करते हुए कहा, 'हर इंसान की जान क़ीमती है। हम किसी भी हिंसा का समर्थन नहीं करते।' उन्होंने यह भी दोहराया कि उनकी सरकार वक्फ कानून को लागू नहीं करेगी, लेकिन साथ ही लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की।

बहरहाल, यह पहली बार नहीं है जब ममता ने हिंसा के बाद शांति की अपील की हो। वह अक्सर केंद्र सरकार पर बंगाल में अशांति भड़काने का आरोप लगाती रही हैं। इस बार, उन्होंने हिंसा को कुछ पार्टियों की सियासी चाल करार दिया, जिसे विपक्षी बीजेपी पर निशाना माना जा रहा है। बीजेपी ने जवाब में ममता पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया है, दावा करते हुए कि वह हिंसा को नियंत्रित करने में नाकाम रही हैं।

बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर राज्य प्रायोजित हिंदू विरोधी दंगे भड़कने के 24 घंटे से ज़्यादा समय बाद भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभी तक केंद्रीय बलों की मांग नहीं की है। कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है और वह अकेले ही इस खून-खराबे और सार्वजनिक और निजी संपत्ति के विनाश के लिए ज़िम्मेदार हैं।'

बहरहाल, ममता बनर्जी का यह बयान पश्चिम बंगाल की जटिल राजनीति को और गर्माने वाला है। बंगाल में मुसलमान लगभग 30% आबादी का हिस्सा हैं और ममता की तृणमूल कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं। वक्फ क़ानून का विरोध करके ममता अल्पसंख्यक समुदाय को यह संदेश देना चाहती हैं कि वह उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह रणनीति 2026 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर बनाई गई लगती है।

हालाँकि, यह रुख उनके लिए जोखिम वाला भी है। केंद्रीय क़ानूनों का खुला विरोध संवैधानिक रूप से टिक नहीं पाएगा क्योंकि केंद्रीय क़ानून सभी राज्यों पर लागू होते हैं। ममता का यह दावा कि वह वक्फ क़ानून लागू नहीं करेंगी, प्रतीकात्मक ज़्यादा और व्यावहारिक कम लगता है। अगर केंद्र सरकार इस कानून को सख्ती से लागू करती है तो ममता के पास इसे रोकने के सीमित विकल्प होंगे। इससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं, जैसा कि सीएए के मामले में हुआ था।

वक़्फ़ क़ानून का विरोध न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी तनाव पैदा कर रहा है। मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक वाले मुर्शिदाबाद जैसे क्षेत्रों में इस क़ानून को लेकर ग़लतफहमियाँ फैल रही हैं।

कुछ प्रदर्शनकारी मानते हैं कि यह क़ानून उनकी धार्मिक और संपत्ति संबंधी स्वायत्तता को कमजोर करेगा। ममता ने इस भावना को भुनाने की कोशिश की है, लेकिन हिंसा को नियंत्रित करना उनके लिए चुनौती बना हुआ है।

क़ानूनी रूप से ममता का यह कहना कि वह वक़्फ़ क़ानून लागू नहीं करेंगी, संवैधानिक रूप से कमजोर है। वक्फ क़ानून केंद्रीय सूची का विषय है और राज्यों के पास इसे लागू न करने का अधिकार सीमित है। अगर केंद्र इस मुद्दे पर सख्ती बरतता है तो ममता को अदालत में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

ममता बनर्जी का यह बयान अल्पसंख्यक समुदाय में उनकी लोकप्रियता को और मज़बूत कर सकता है, लेकिन यह बीजेपी को भी हमलावर होने का मौक़ा देता है। बीजेपी पहले से ही ममता पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाती रही है, और इस बयान ने उनके इस नैरेटिव को और हवा दी है। दूसरी ओर, ममता को हिंसा को काबू करने और शांति लाने की चुनौती का सामना करना होगा, ताकि वह अपने शासन की छवि को बनाए रख सकें।

इस मुद्दे का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार इस कानून को कितनी सख्ती से लागू करती है और ममता इसे कितनी दूर तक विरोध में ले जाती हैं। अगर हिंसा बढ़ती है तो यह ममता के लिए सियासी नुक़सान का कारण बन सकता है। वहीं, अगर वह शांति बहाल करने में सफल रहती हैं तो यह उनकी नेतृत्व क्षमता को और मज़बूत करेगा।

ममता बनर्जी का वक़्फ़ क़ानून को लागू न करने और दंगों के ख़िलाफ़ बयान एक सियासी चाल है जो अल्पसंख्यक वोटों को मज़बूत करने के साथ-साथ केंद्र के ख़िलाफ़ उनके विरोध को तेज करता है। हालांकि, यह रुख संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियों से भरा है। मुर्शिदाबाद की हिंसा ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है और ममता के सामने अब शांति और सियासत के बीच संतुलन बनाने की कड़ी परीक्षा है।