अब यह साफ़ हो गया है कि राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रवासी ही तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के प्रमुख हथियार होंगे। इसमें तृणमूल कांग्रेस के लिए जहां प्रवासी मजदूरों का उत्पीड़न सबसे अहम मुद्दा होगा वहीं उसे चुनौती देने वाली भाजपा दूसरे राज्यों में काम करने वाले राज्य के करीब 10 लाख युवाओं को अपने पाले में खींचने की योजना पर आगे बढ़ रही है। दोनों दलों ने इसके लिए व्यापक रणनीति बना कर उस पर अमल की तैयारी की है।
ममता बनर्जी की अध्यक्षता वाली तृणमूल कांग्रेस बीते कुछ महीनों से बड़े पैमाने पर बंगाल के प्रवासी मजदूरों के उत्पीड़न का मुद्दा उठा रही है। उन्होंने खासकर बीजेपी शासित राज्यों में बंगाल के मज़दूरों पर अत्याचार और उनको बांग्लादेशी करार देकर जबरन बांग्लादेश भेजने की कोशिशों के खिलाफ भाषा आंदोलन शुरू किया है जो अगले चुनाव के नतीजों के दिन तक जारी रहेगा।
22 लाख प्रवासी मजदूर बाहर
ममता बनर्जी का दावा है कि करीब 22 लाख प्रवासी मजदूर विभिन्न राज्यों में काम कर रहे हैं। उन्होंने उनसे बंगाल लौटने की अपील करते हुए कहा है कि सरकार उनके लौटने और रोजगार की व्यवस्था करेगी। सरकार ने श्रमश्री योजना शुरू की है। इसके तहत प्रवासी मजदूरों को राज्य में लौटने के लिए एकमुश्त पांच हजार रुपए का यात्रा भत्ता दिया जाएगा। इसके साथ ही यहां लौटने पर उनको साल भर या रोजगार की व्यवस्था होने तक हर महीने पांच-पांच हजार रुपए भी दिए जाएंगे। सरकार ने इसके लिए एक पोर्टल शुरू किया है।
इन प्रवासी मजदूरों को उत्पीड़न से बचाने के लिए सरकार ने उनको सचित्र परिचय पत्र जारी करने का भी फैसला किया है। श्रम विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि इस बारे में नीतिगत फ़ैसले पर मुहर लग चुकी है। तमाम प्रवासी मजदूर कर्मसाथी पोर्टल के जरिए यह कार्ड हासिल कर सकते हैं। इसमें संबंधित मजदूर की फोटो के साथ उसका नाम-पता और दूसरी ज़रूरी सूचनाएँ दर्ज रहेंगी। अगले दो महीने के भीतर इसे जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
ममता के भाषा आंदोलन को उनकी चुनावी रणनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने पर यह बात साफ हो जाती है कि कुछ शहरी इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन भले बेहतर रहा हो, ग्रामीण इलाके के वोटरों ने खुल कर तृणमूल का समर्थन किया था।
टीएमसी कहाँ मज़बूत?
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अगले साल के विधानसभा चुनाव में भी इस समीकरण में खास बदलाव नहीं आएगा। उनकी दलील है कि राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 174 ग्रामीण इलाकों में हैं। कुछ सीटें मिली-जुली हैं यानी वहाँ कुछ इलाके ग्रामीण हैं और कुछ कस्बाई। वहां पार्टी मजबूत स्थिति में है।
तृणमूल कांग्रेस के नेता बताते हैं कि लगातार 15 साल तक सत्ता में रहने के कारण यह तय है कि अगले चुनाव में पार्टी को प्रतिष्ठान विरोधी लहर का सामना भी करना पड़ेगा। विपक्ष इसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है। इसलिए पार्टी ने बांग्ला भाषा और बंगाल के प्रवासी मजदूरों के कथित अपमान को भाषा आंदोलन के ज़रिए बड़े पैमाने पर उठाने का फ़ैसला किया है। इसके तहत राज्य के विभिन्न इलाक़ों में हर शनिवार व रविवार को रैलियाँ आयोजित की जाएंगी। चुनाव का नतीजा नहीं निकलने तक यह सिलसिला जारी रहेगा।
पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि चुनाव के मौके पर पार्टी इन प्रवासी मजदूरों को अधिक से अधिक संख्या में राज्य में आने का इंतजाम भी करेगी ताकि वो अपने वोट डाल सकें।
पश्चिम बंगाल से और ख़बरें
बीजेपी की रणनीति क्या?
दूसरी ओर, केंद्रीय नेतृत्व के साथ कई दौर की बैठक के बाद भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने ममता की इस रणनीति की काट के लिए इसे यानी प्रवासी को ही हथियार बनाने का फैसला किया है। भाजपा के निशाने पर हैं राज्य से बाहर खासकर आईटी सेक्टर में काम करने वाले करीब 10 लाख युवा। इनमें से ज्यादातर लोग दिल्ली, गुरुग्राम, हैदराबाद, नोएडा, मुंबई, बेंगलुरु और पुणे में काम करते हैं। पार्टी से इनको जोड़ने के लिए युवा मोर्चा की एक नई वेबसाइट बनाई जा रही है। इस अभियान में दूसरे राज्यों के युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं को इस मुहिम से भी जोड़ा जा रहा है।
पार्टी इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस के प्रवासी मजदूर वाले मुद्दे और इस पर आंदोलन की धार कुंद करने के लिए इसके खिलाफ प्रचार में जुटी है। पार्टी का दावा है कि ममता बनर्जी सरकार प्रवासी मजदूर कल्याण परिषद के जरिए बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारतीय नागरिक के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है। पार्टी का कहना है कि दूसरे राज्यों में पकड़े गए कई बांग्लादेशियों के पास नागरिकता के दस्तावेज मिले हैं। राज्य सरकार की मदद से ही ऐसा हुआ है।
पश्चिम बंगाल से बाहरी राज्यों में जाकर काम करने वाले लोगों में आईटी सेक्टर के युवाओं के अलावा डॉक्टरों, शिक्षकों और वकीलों की भी बड़ी तादाद है। कई लोग होटल और मनोरंजन के क्षेत्र में भी काम करते हैं। बेहतर नौकरियों में होने के कारण बांग्ला बोलने पर भी दूसरे राज्यों में उनको किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
बंगाल भाजपा की युवा मोर्चा शाखा के हिसाब से इस वर्ग के प्रवासी बंगालियों की तादाद करीब 36 लाख है।
भाजपा के प्रवक्ता राज चौधरी बताते हैं कि 36 लाख में ऐसे लोगों की तादाद करीब 10 लाख ही है जिनकी उम्र 18 से 35 साल के बीच है। हम उन प्रवासियों से ही संपर्क कर रहे हैं जो दूसरे राज्यों में काम करने के बावजूद अब भी यहीं के वोटर हैं।
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तमाम राज्यों के युवा मोर्चा नेताओं को इस काम में सहायता करने और ऐसे प्रवासी बंगालियों की शिनाख्त कर उनको साथ जोड़ने का निर्देश दिया है। मुंबई, तेलंगाना, हरियाणा और दिल्ली में युवा मोर्चा के सदस्य इस काम में जुट गए हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा में भी स्थानीय युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं को इस काम में लगाया जाएगा। वहां ऐसे प्रवासियों के बीच भाजपा की नीतियों का प्रचार कर उनलोगों को वेबसाइट के ज़रिए जोड़ने की कोशिश की जाएगी।
बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष गौतम चटर्जी बताते हैं कि भाजपा जिस प्रवासी तबके से संपर्क कर रही है उनमें से ज्यादातर लोग तो वोट देने बंगाल नहीं आते। हमारी कोशिश इन लोगों को चुनाव के समय वोट डालने के लिए बंगाल लौटने की खातिर प्रेरित करना है। यह हमारा नया वोट बैंक होगा।