प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष मुकुल राय को फ़ोन कर उनकी पत्नी का हालचाल पूछने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। पश्चिम बंगाल की राजनीति में इसे बीजेपी की बेचैनी के रूप में देखा जा रहा है और कयास लगाया जा रहा है कि मुकुल राय को पार्टी छोड़ कर जाने से रोकने के लिए अब प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा है।
गुरुवार को नरेंद्र मोदी ने मुकुल राय को फ़ोन कर उनकी पत्नी का हालचाल पूछा जो कोरोना से जूझ रही हैं और कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने इसके साथ ही उन्हें हर मुमकिन मदद का भरोसा भी दिया है।
मामला क्या है?
इसके दो दिन पहले तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने अस्पताल जाकर मुकुल राय की पत्नी का हालचाल पूछा था। उन्होंने भी कहा था कि यह औपचारिक मुलाक़ात है और इसके पीछे राजनीति नहीं देखना चाहिए।
बता दें कि मुकुल राय काफी लंबे समय तक तृणमूल कांग्रेस में रहे और ममता बनर्जी के काफी नज़दीक थे। लेकिन सारदा चिटफंड घोटाला और नारद घूसखोरी कांड में उनका नाम आने और सीबीआई के छापे पड़ने के बाद उन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी थी और बीजेपी में शामिल हो गए थे।
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ममता से नज़दीकी
ममता और मुकुल राय के बीच इसके बावजूद सौहार्द्र बना रहा और मुकुल राय ने चुनाव प्रचार की गहमागहमी, तीखी नोकझोक और आक्रामकता के बावजूद मुख्यमंत्री पर निजी हमला नहीं किया। इस बार के विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत गए।
लेकिन ताजा विवाद उस राजनीतिक घटनाक्रम के साथ शुरू हुआ जिसमें बीते दिनों मुकुल राय के बेटे शुभ्रांशु राय ने अपरोक्ष रूप से बीजेपी की आलोचना की और ममता बनर्जी का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी को मुख्यमंत्री पर हमले करने के बजाय अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए।
यह बात चुनाव के ठीक बाद से ही कही जा रही है कि मुकुल राय बीजेपी में असहज महसूस कर रहे हैं और वे पार्टी छोड़ कर टीएमसी में वापस आना चाहते हैं।
क्यों नाराज़ हैं मुकुल राय?
इसको बल तब मिला जब विधायक के रूप में शपथ ग्रहण करने के बाद मुकुल राय विधानसभा परिसर में पार्टी को आबंटित दफ़्तर नहीं गए। इसे उनके असंतोष के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि शुभेंदु अधिकारी को अधिक महत्व दिए जाने और उन्हें विपक्ष का नेता बनाए जाने से मुकुल राय आहत हैं। शुभेंदु उनसे उम्र ही नहीं राजनीति में भी छोटे हैं। लेकिन बीजेपी ने अधिकारी को यह सोच कर विपक्ष का नेता बनाया कि इससे पूर्व व पश्चिमी मेदिनीपुर ज़िलों में पार्टी का आधार मजबूत होगा।
पूर्व मेदिनीपुर और पश्चिमी मेदिनीपुर में 34 विधानसभा और पाँच लोकसभा सीट हैं, बीजेपी इस जनाधार पर शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी के विकल्प के रूप में उभारने की रणनीति पर चल रही है।
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बंगाल बीजेपी में हड़कंप
पर्यवेक्षकों का कहना है कि पश्चिम बंगाल बीजेपी में तृणमूल से आए हुए कई नेता परेशान हैं। सूत्रों का कहना है कि लगभग 7-8 विधायक और चार सांसद पार्टी छोड़ टीएमसी में लौटना चाहते हैं, लेकिन अभी पार्टी छोड़ने से पहले वे इसका इंतजार कर रहे हैं कि इतने असंतुष्ट विधायक एकत्रित हो जाएं कि वे इस क़ानून के तहत अयोग्य घोषित न किए जाएं।
बीते दिनों पश्चिम बंगाल बीजेपी में हड़कंप मचा जब सोनाली गुहा ने ममता बनर्जी को चिट्ठी लिख कर तृणमूल छोड़ने के लिए माफ़ी माँगी और कहा कि जिस तरह मछली पानी के बाहर नहीं रह सकती, वह बग़ैर ममता बनर्जी के नहीं रह सकती, लिहाजा, उन्हें पार्टी में फिर से शामिल कर लिया जाए।
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सोनाली ममता की पुरानी सहयोगी थीं, चार बार विधायक रह चुकी हैं, लेकिन चुनाव के पहले पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गईं। हालांकि उन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा, पर उनके पार्टी छोड़ने को ममता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था। अब वे वापस आने की कोशिश में लगी हैं।
सोनाली गुहा की तरह और कई लोग हैं, जो टीएमसी में वापस लौटने की जुगत में हैं, लेकिन तृणमूल के स्थानीय नेता उनकी वापसी के ख़िलाफ़ हैं। इनमें से बड़ी तादाद में लोग देर-सबेर टीएमसी में लौट आएंगे, ऐसा माना जा रहा है। ज़ाहिर है, बीजेपी ऐसा होने से रोकना चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री ने खुद मुकुल राय को फ़ोन किया।
यह कहना अभी मुश्किल है कि मुकुल राय पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं या वे सिर्फ अपनी नाराज़गी दर्ज करा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के फ़ोन करने से यह तो साफ है कि बीजेपी उन्हें मनाने की कोशिश में है।
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