पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की तैयारियाँ जोरों पर हैं। यह प्रक्रिया बिहार में हाल ही में शुरू किए गए संशोधन की तर्ज पर होगी और इसका मक़सद मतदाता सूची से फर्जी और अवैध नामों को हटाना तथा सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करना है। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल की राज्य निर्वाचन मशीनरी अगस्त 2025 की शुरुआत में इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए तैयार है, ताकि अक्टूबर 2025 तक ड्राफ्ट मतदाता सूची को अंतिम रूप दिया जा सके।

चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को देशव्यापी मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया की घोषणा की थी। इसके तहत पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर लागू करने की योजना है। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार हालाँकि, चुनाव आयोग की ओर से पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी यीनी सीईओ को अभी तक कोई आधिकारिक पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन राज्य की निर्वाचन मशीनरी ने संभावित संशोधन के लिए तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। इस प्रक्रिया का लक्ष्य मृत, स्थानांतरित, और दोहरे पंजीकरण वाले मतदाताओं के नाम हटाना है, ताकि मतदाता सूची को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाया जा सके।
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पश्चिम बंगाल में आखिरी बार गहन संशोधन 1 जनवरी 2002 को किया गया था, जिसमें लगभग 28 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए थे। इनमें मृत, स्थानांतरित, और एक से अधिक मतदान केंद्रों पर पंजीकृत मतदाताओं के नाम शामिल थे।

बिहार में एसआईआर विवाद

पश्चिम बंगाल से पहले बिहार में शुरू हुए एसआईआर ने वहाँ व्यापक बहस और कानूनी विवाद को जन्म दिया है। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल जैसे विपक्षी दलों ने बिहार में इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया, जिसमें कोर्ट ने आधार और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने की सलाह दी है।

बिहार में एसआईआर के तहत मतदाताओं से जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के पहचान दस्तावेज जैसे अतिरिक्त दस्तावेज मांगे गए, जो पहले कभी अनिवार्य नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया के समय और दस्तावेजों की मांग पर सवाल उठाए, लेकिन इसे पूरी तरह रद्द करने से इनकार कर दिया।

पश्चिम बंगाल में एसआईआर की संभावनाएँ

पश्चिम बंगाल में एसआईआर शुरू किए जाने की संभावना ने ही राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। विपक्षी नेता और बीजेपी के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस प्रक्रिया का समर्थन किया है और कहा है कि बंगाल में फर्जी मतदाताओं की संख्या अधिक है, जिन्हें हटाने की जरूरत है। उन्होंने अवैध प्रवासियों द्वारा फर्जी पहचान पत्रों के इस्तेमाल पर सख्त जाँच की माँग की है।
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दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस प्रक्रिया को लेकर चिंतित हैं। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की यह पहल बिहार की तरह बंगाल में भी युवा और वास्तविक मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। उन्होंने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सीपीआई (एमएल) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने भी चेतावनी दी है कि यह प्रक्रिया बंगाल में बड़े पैमाने पर मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है।

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में एसआईआर की शुरुआत जुलाई 2025 के अंत तक हो सकती है और जनवरी 2026 तक अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने की संभावना है। यह प्रक्रिया न केवल तकनीकी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी संवेदनशील है। बिहार के अनुभव को देखते हुए यह साफ़ है कि पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया विवादों से घिरी रहेगी। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट और जनता के बीच उठाने की रणनीति बनाई है, जबकि बीजेपी इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही है।