अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में होने वाला शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति और यूक्रेन युद्ध के भविष्य को प्रभावित करने वाला माना जा रहा है। यह पहला मौक़ा है जब 2021 के बाद दोनों नेताओं की आमने-सामने मुलाक़ात हो रही है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन में चल रहे 43 महीने के युद्ध को समाप्त करने के लिए एक संभावित समझौते पर चर्चा करना है। हालाँकि, यूक्रेन और यूरोपीय देशों की अनुपस्थिति ने इस मुलाकात को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। तो सवाल है कि इस सम्मेलन से पहले अमेरिका, रूस और यूक्रेन की क्या मांगें और प्राथमिकताएं हैं।
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अमेरिका क्या चाहता है?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी दूसरी पारी में यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने को अपनी विदेश नीति की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाया है। ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में वादा किया था कि वह युद्ध को 24 घंटे के भीतर खत्म कर देंगे। 

युद्धविराम और शांति समझौता: ट्रंप का कहना है कि वह यूक्रेन में तत्काल युद्धविराम चाहते हैं और इसे एक ऐतिहासिक शांति समझौते में बदलना चाहते हैं। वह इसे अपनी डीलमेकर छवि और नोबेल शांति पुरस्कार की संभावना से जोड़ते हैं। उन्होंने कहा है कि वह इस मुलाकात में पुतिन के इरादों का आकलन करेंगे।

जमीन की अदला-बदली: ट्रंप ने बार-बार संकेत दिए हैं कि वह यूक्रेन और रूस के बीच "जमीन की अदला-बदली" के विचार के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि यह युद्ध को ख़त्म करने का एक व्यावहारिक तरीका हो सकता है, हालांकि यह यूक्रेन और यूरोप की स्थिति के विपरीत है।

आर्थिक दबाव: ट्रंप ने रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए सेकेंडरी सैंक्शन्स का उपयोग किया है, ख़ासकर भारत और चीन जैसे उन देशों पर जो रूसी तेल खरीद रहे हैं। उन्होंने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया, ताकि रूस की आर्थिक कमर तोड़ी जा सके। ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर पुतिन युद्धविराम के लिए सहमत नहीं होते, तो गंभीर नतीजे होंगे।

अमेरिका-रूस संबंध: ट्रंप न केवल यूक्रेन युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं, बल्कि अमेरिका और रूस के बीच संबंधों को रीसेट करने की भी इच्छा रखते हैं। वह रूस और चीन के बीच गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और इसे एक भू-राजनीतिक जीत के रूप में देखते हैं।

ट्रंप की अप्रत्याशित शैली और पारंपरिक कूटनीति से हटकर काम करने की आदत ने यूरोप और यूक्रेन में चिंताएं बढ़ा दी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की अनुभवहीनता और पुतिन की चतुर कूटनीति के सामने उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है।

रूस क्या चाहता है?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि यह 2021 के बाद उनकी पहली अमेरिकी धरती पर मुलाकात है। 

यूक्रेन के क्षेत्रों पर नियंत्रण: पुतिन ने 2022 में यूक्रेन के चार क्षेत्रों- लुहान्स्क, दोनेत्स्क, जपोरिझिया और खेरसॉन के साथ-साथ 2014 में कब्जाए गए क्रीमिया को रूस का हिस्सा घोषित किया था। वह चाहते हैं कि इन क्षेत्रों पर रूस का नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो। हाल के संकेतों के अनुसार, वह अब दोनेत्स्क तक अपनी मांगों को सीमित करने को तैयार हो सकते हैं, लेकिन यह भी यूक्रेन के लिए अस्वीकार्य है।

यूक्रेन की नाटो से दूरी: पुतिन की प्रमुख मांग है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल होने से रोका जाए और इसे तटस्थ देश घोषित किया जाए। इसके अलावा, वह यूक्रेन की सैन्य शक्ति पर सख्त सीमाएं चाहते हैं।
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प्रतिबंधों में राहत: रूस की अर्थव्यवस्था को पश्चिमी प्रतिबंधों ने गंभीर रूप से प्रभावित किया है। पुतिन चाहते हैं कि इन प्रतिबंधों को हटाया जाए और यूरोप में जमा रूस की 300 अरब डॉलर की संपत्ति को अनफ्रीज किया जाए।

कूटनीतिक वैधता: अलास्का में ट्रंप के साथ मुलाकात पुतिन के लिए एक बड़ा कूटनीतिक अवसर है। यह उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिर से स्थापित करता है, जो 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से उनकी अलग-थलग स्थिति को देखते हुए अहम है।

परमाणु हथियारों पर चर्चा: पुतिन ने संकेत दिए हैं कि वह परमाणु हथियारों पर नियंत्रण के लिए एक समझौते पर चर्चा करने को तैयार हैं, जो ट्रंप के लिए एक आकर्षक प्रस्ताव हो सकता है।

पुतिन का मानना है कि युद्धक्षेत्र में रूस की स्थिति मज़बूत है और समय उनके पक्ष में है। हाल के महीनों में रूसी सेना दोनेत्स्क में 9-10 किमी आगे बढ़ी है, जिसने उनकी स्थिति को और मजबूत किया है।

यूक्रेन क्या चाहता है?

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और उनके देश की स्थिति इस सम्मेलन में सबसे कमजोर है, क्योंकि उन्हें इस मुलाकात में शामिल नहीं किया गया है। यूक्रेन की मांग है।

पूर्ण और बिना शर्त युद्धविराम: यूक्रेन चाहता है कि जमीन, समुद्र और हवा में पूर्ण युद्धविराम हो। जेलेंस्की ने बार-बार कहा है कि यूक्रेन अपनी जमीन रूस को "उपहार" में नहीं देगा, क्योंकि यह उनकी संविधान के खिलाफ है।

सुरक्षा गारंटी: यूक्रेन चाहता है कि किसी भी शांति समझौते में मजबूत सुरक्षा गारंटी शामिल हो, जो भविष्य में रूसी आक्रमण को रोक सके। यूरोपीय देशों ने इस दिशा में एक गठबंधन का प्रस्ताव दिया है, जिसे ट्रंप ने समर्थन देने का संकेत दिया है।

क्षतिपूर्ति और पुनर्निर्माण: यूक्रेन चाहता है कि रूस युद्ध से हुए नुकसान की भरपाई करे और पुनर्निर्माण के लिए धन दे। इसके अलावा रूस द्वारा कब्जाए गए क्षेत्रों से अपहृत हजारों यूक्रेनी बच्चों की वापसी भी उनकी मांग है।

नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने का अधिकार: यूक्रेन ने साफ़ किया है कि वह तटस्थ देश बनने के लिए तैयार नहीं है और नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने के अपने अधिकार को बनाए रखना चाहता है।

बातचीत में शामिल होने का अधिकार: जेलेंस्की ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन की अनुपस्थिति में कोई भी समझौता नहीं होगा। वह चाहते हैं कि यूक्रेन को सभी शांति वार्ताओं में शामिल किया जाए।

यूरोप की चिंताएँ

ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे यूरोपीय देश और यूरोपीय संघ इस सम्मेलन को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि ट्रंप और पुतिन के बीच कोई भी समझौता यूरोप की सुरक्षा और यूक्रेन की संप्रभुता को खतरे में डाल सकता है। यूरोपीय नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बलपूर्वक नहीं बदला जा सकता और यूक्रेन की सहमति के बिना कोई समझौता स्वीकार्य नहीं होगा।

भारत की स्थिति

भारत इस सम्मेलन के परिणामों पर करीबी नजर रख रहा है, क्योंकि अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ ने भारत को रूस से तेल खरीदने से रोकने की कोशिश की है। भारत ने इन टैरिफ को अनुचित बताया है और अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूसी तेल को अहम माना है। ट्रंप ने दावा किया है कि इन टैरिफ ने पुतिन को बातचीत की मेज पर लाने में मदद की है।
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अलास्का शिखर सम्मेलन एक जटिल और उच्च जोखिम वाला कूटनीतिक अवसर है। अमेरिका तुरंत शांति समझौता चाहता है, रूस अपनी क्षेत्रीय और कूटनीतिक जीत को मजबूत करना चाहता है और यूक्रेन अपनी संप्रभुता और सुरक्षा की गारंटी चाहता है। यूक्रेन और यूरोप की अनुपस्थिति ने इस मुलाकात को विवादास्पद बना दिया है और विशेषज्ञों का मानना है कि कोई ठोस समझौता होने की संभावना कम है। ट्रंप की अप्रत्याशित शैली और पुतिन की चतुर रणनीति इस सम्मेलन के परिणाम को अनिश्चित बनाती है। विश्व समुदाय अब इस बात पर नजर रख रहा है कि यह मुलाकात यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक कदम साबित होगी या पश्चिमी गठबंधन में दरार पैदा करेगी।