बांग्लादेश में माहौल फिर से बेहद गरम हो गया है। लोग सड़कों पर हैं। दुकानें तोड़ी जा रही हैं। लूटी जा रही हैं। कमाल की बात है कि इस बार मामला न तो चुनाव से जुड़ा हुआ है, न ही लोग किसी किसी घरेलू मांग को लेकर नाराज़ हैं। ये मामला है फ़िलिस्तीन के समर्थन का।

दरअसल बांग्लादेश के लोग ग़ज़ा पर इज़रायल के लगातार हमले के खिलाफ़ हैं। वे इसका गुस्सा उतार रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड की दुकानों में लूट-पाट मचाकर। राजधानी ढाका समेत एक साथ कई बांग्लादेशी शहरों मसलन सिलहट, चटगांव, बारीशाल, कुमिल्ला और खुलना में लोगों का गुस्सा इन बड़ी दुकानों पर उतरा और केएफसी, बाटा, पिज्जा हट, पूमा जैसी कंपनियों की फ्रेंचाइज़ी से सामान लूट-पाट लिया गया। लोगों का कहना था कि ये सभी बड़े ब्रांड इज़रायल समर्थक हैं।

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हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरे ये लोग ‘फ़्री फिलिस्तीन’ के नारे लगा रहे थे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ़ भी नारे लग रहे थे। अचानक ये नारा लगाने वाले प्रदर्शनकारी उग्र भीड़ में बदल गये और दुकानों में जबरन घुसकर सामान लूटने लगे।

इस घटना से कंपनियां भी सकते में आ गई हैं। इन कंपनियों के बारे में जब जानकारी निकाली गई तो कोई भी कंपनी सीधे तौर पर इज़रायल से जुड़ी हुई नज़र नहीं आई। जैसे कि बाटा चेक गणराज्य की कंपनी है। यह बांग्लादेश में 1962 से काम कर रही है। इस पर इज़राइल से जुड़ा होने का आरोप लगाया जो कि पूरी तरह से ग़लत है। 
बाटा ने आधिकारिक बयान जारी कर भी इस बात को नकारा और कहा कि “हमारे खिलाफ फैलाए गए झूठे दावों के चलते हमारी दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया। हमारा इज़राइल या किसी राजनीतिक संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं है।”

वहीं पूमाएक जर्मन कंपनी है। हालांकि इस कंपनी पर अतीत में उँगलियाँ उठ चुकी हैं। इसने  2018 में इज़राइल फ़ुटबॉलएसोसिएशन (IFA)को स्पॉन्सर  किया था। इस मामले में पूमा की काफी आलोचना हुई थी। हालांकि पूमा ने इजरायल फुटबॉल एसोसिएशन से करार 2024 में ही खत्म कर दिया था पर इसके दाग नहीं हटे हैं। आज भी कुछ लोग इसे इज़राइल समर्थक कंपनी मानते हैं।

केएफसी, पिज़्ज़ा हट और डोमिनोज़ : ये भी अमेरिकी कंपनियाँ हैं। केएफसी ने 2021 में इज़राइली मार्केटिंग फर्म टिकटुक टेक्नॉलजीज़ का अधिग्रहण किया था। इसी वजह से इसे भी इज़रायल समर्थक कंपनी माना गया। वहीं डोमिनोज़ का मालिकाना हक  भारत की जुबिलिएन्ट फूडवर्क्स के पास है फिर भी इस पर हमला किया गया क्योंकि कभी डोमिनोज़ की इज़रायली फ्रेंचाइज़ी ने इज़रायली सैनिकों के बीच खाना बांटा था।

लोगों का यह भी आरोप था कि ये तमाम दुकानें पश्चिमी पूंजीवाद का प्रतीक हैं।

यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि इन तमाम दुकानों के मालिक भी स्थानीय लोग ही हैं। इन घटनाओं को देखते हुए पिछले साल हुए बांग्लादेश के तख्ता पलट और छात्रों के आंदोलन की यादें ताजा हो गईं। उस दौरान भी ऐसा ही उग्र प्रदर्शन देखने को मिला था और काफी लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था।

यहाँ इस बात पर ध्यान देना भी जरूरी है कि इस समय बांग्लादेश सरकार एक जरूरी आर्थिक मुहाने पर हैं। देश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाईमें देश अपना पहला अंतरराष्ट्रीय निवेश सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है। ऐसे में इस तरह की गई यह हिंसा और अस्थिरता समस्याप्रद हो सकती है। इससे  विदेशी निवेशकों के मन में अनिश्चितता और भय पैदाहो सकता है।

इस हमले पर तमाम प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। कुछ लोगों ने इसे गज़ा के समर्थन के बहाने लूट-पाट का षड्यन्त्र भी माना है। कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दुकानों से लूटे गये कई सामान फ़ेसबुक के मार्केटप्लेस पर भी बिकते हुए नज़र आए।

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इन तमाम चीजों को देखते हुए एक्स्पर्ट्स का मानना है कि ये घटनाएं कहीं न कहीं बेरोजगारी और धार्मिक-राजनीतिक अस्थिरता की वजह से देश केअंदर फैल रहे असंतोष की कहानी  भी बयान करती हैं।