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कोरोना: एक लाख पॉजिटिव केस वाला स्पेन तीसरा देश; विकसित देशों में बेकाबू क्यों?

स्पेन तीसरा ऐसा देश हो गया है जहाँ एक लाख से ज़्यादा कोरोना के पॉजिटिव केस हो गए हैं। स्पेन में जहाँ 4 मार्च को सिर्फ़ 185 पॉजिटिव केस थे वहाँ अब एक लाख 4 हज़ार से भी ज़्यादा मामले आ चुके हैं। अमेरिका और इटली में भी पॉजिटिव मामलों की संख्या एक लाख से ज़्यादा है। अमेरिका में 2 लाख 15 हज़ार और इटली में एक लाख 10 हज़ार केस आ चुके हैं। इन देशों में मामले तेज़ी से बढ़े हैं। ऐसी ही स्थिति जर्मनी, फ़्राँस जैसे देशों की है। ये वो देश हैं जो विकसित हैं। तो विकिसित देशों में इतनी तेज़ी से मामले क्यों बढ़े?

इसके उलट जिस चीन में कोरोना वायरस सबसे पहले पनपा और उसके बाद जिस दक्षिण कोरिया में यह तेज़ी से बढ़ा था, लेकिन इन दोनों देशों ने इसे नियंत्रित कर लिया। विकसित देशों में जहाँ एक-एक देश में हर रोज़ 20-25 हज़ार तक नये पॉजिटिव केस आ रहे हैं वहीं चीन और दक्षिण कोरिया में सिर्फ़ गिने-चुने मामले आ रहे हैं। मौत की दर भर विकसित देशों में ज़्यादा है। चीन और दक्षिण कोरिया में यह क़रीब एक फ़ीसदी है तो इटली जैसे देशों में यह क़रीब 8 फ़ीसदी तक है। विकसित देशों में इस वायरस के फैलने की कहानी डरावनी है। पढ़िए कैसे पॉजिटिव केस बढ़े इन देशों में-

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  • 4 मार्च को स्पेन में सिर्फ़ 185 केस थे। चीन में 80462, दक्षिण कोरिया में 5634, इटली में 2912 और ईरान में 2746 पॉजिटिव केस सामने आए थे। जापान, फ़्रांस और जर्मनी में भी स्पेन से कहीं ज़्यादा मामले थे। 
  • 10 मार्च तक स्पेन में जब सिर्फ़ डेढ़ हज़ार मामले थे तब दुनिया में सबसे ज़्यादा पॉजिटिव मामलों में अमेरिका 10वें स्थान पर था। तब अमेरिका में क़रीब एक हज़ार मामले आए थे। 
  • 24 मार्च को जब भारत में लॉकडाउन हुआ था तब तक दुनिया में स्पेन चौथे स्थान पर था और तब वहाँ क़रीब 33 हज़ार केस आ गए थे। उससे ज़्यादा अमेरिका में 47 हज़ार, इटली में 64 हज़ार और चीन में 81 हज़ार केस थे। 
  • 27 मार्च को अमेरिका में एक लाख से ज़्यादा मामले हो गए थे और तब वह पहले स्थान पर पहुँच गया। चीन और इटली दूसरे स्थान पर थे। स्पेन तब भी चौथे स्थान पर था और तब वहाँ क़रीब 62 हज़ार मामले आए थे। 
  • 30 मार्च को स्पेन तीसरे स्थान पर पहुँच गया और वहाँ 87 हज़ार से ज़्यादा मामले आ चुके थे। चीन में तब क़रीब 82 हज़ार, अमेरिका में क़रीब 1 लाख 61 हज़ार और इटली में क़रीब 1 लाख एक हज़ार मामले आए थे। 
  • 31 मार्च को स्पेन में एक लाख से ज़्यादा केस हो गए। अमेरिका में 1 लाख 90 हज़ार से ज़्यादा मामले आए। इटली में क़रीब एक लाख पाँच हज़ार मामले सामने आ गए। चीन में 82 हज़ार से कुछ ज़्यादा मामले रहे। 
  • 1 अप्रैल को स्पेन में एक लाख 4 हज़ार मामले सामने आ गए। अमेरिका में 2 लाख 15 हज़ार मामले आ गए। इटली में एक लाख 10 हज़ार से ज़्यादा मामले आ चुके हैं। दक्षिण कोरिया में क़रीब 10 हज़ार केस ही आए हैं।
  • 2 अप्रैल तक दुनिया भर में क़रीब 9 लाख 36 हज़ार मामले सामने आए हैं और 47 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं। हालाँकि दो अप्रैल के आँकड़े कई देशों के नहीं जोड़े गए हैं। 
ऐसा क्यों हुआ कि अपेक्षाकृत बेहतर हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद विकसित देश कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं जबकि चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने इसको काबू कर लिया? दक्षिण कोरिया में तो लॉकडाउन भी नहीं करना पड़ा। क्या यह तैयारी का नतीजा नहीं है? कोरोना से निपटेने की जैसी तैयारी चीन और दक्षिण कोरिया ने दिखाई वैसी तैयारी किसी भी विकसित देश ने नहीं दिखायी। वे इस पर लचर रवैया अपनाते रहे। मिसाल के तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया इस मामले में देखा जा सकता है जब वह कह रहे थे कि कोरोना से जितने लोग मरेंगे उससे अधिक लोग अर्थव्यवस्था चौपट होने से मरेंगे। उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि कोरोना एक सामान्य फ्लू यानी सर्दी-जुकाम की तरह ही है जो 'चमत्कारिक ढंग से' ग़ायब हो जाएगा। क्या विकसित देशों के ऐसे ही रवैये का ही नतीजा नहीं है कि यह बेकाबू हो गया?
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ये आँकड़े दिखाते हैं कि दक्षिण कोरिया और चीन की तरह बेहतर तैयारी के साथ इससे अच्छी तरह से निपटा जा सकता है। भारत को इससे सीख लेने की ज़रूरत है। भारत में अब 2 हज़ार से ज़्यादा मामले आ चुके हैं और 50 लोगों की मौत हो चुकी है। अब भारत में भी मामले तेज़ी से बढ़ने लगे हैं। भारत फ़िलहाल सबसे ज़्यादा पॉजिटिव केस के मामले में 35वें स्थान पर है। हालाँकि भारत के लिए काफ़ी देर हो चुकी है, लेकिन अभी भी संभलने का प्रयास तो किया ही जाना चाहिए। 
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क़मर वहीद नक़वी
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