Macron Bold Move on Palestine:फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने फ़िलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की योजना की घोषणा की है। इसराइल को इस पर नाराज़ होना ही था लेकिन अमेरिका को भी कम मिर्च नहीं लगी है। ग़ज़ा में इसराइल का जनसंहार जारी है।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गुरुवार, 24 जुलाई 2025 को ऐलान किया कि उनका देश सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देगा। इस घोषणा ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है, खासकर इसराइल और अमेरिका ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है। मैक्रों का यह कदम गाजा में जारी युद्ध और वहां के मानवीय संकट के बीच आया है, जहां इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों और मानवीय सहायता पर प्रतिबंधों के कारण हजारों लोग भुखमरी और मौत का सामना कर रहे हैं।
मैक्रों का ऐलान क्यों महत्वपूर्ण है
राष्ट्रपति मैक्रों ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को लिखे एक पत्र में कहा, "फिलिस्तीनी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने, आतंकवाद और हिंसा को समाप्त करने, और इसराइल व पूरे क्षेत्र के लिए स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए दो-राज्य समाधान ही एकमात्र व्यवहारिक रास्ता है।" उन्होंने अपने आधिकारिक X अकाउंट पर लिखा, "हमारी प्राथमिकता ग़ज़ा में युद्ध को तुरंत रोकना और वहां फंसे नागरिकों को मानवीय सहायता पहुंचाना है।" मैक्रों ने यह भी जोड़ा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना ग़ज़ा में युद्धविराम, बंधकों की रिहाई, और क्षेत्र में शांति स्थापना की दिशा में एक कदम है।
142 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं
फ्रांस का यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला प्रमुख पश्चिमी देश बन सकता है। न्यूज एजेंसी एएफपी के अनुसार, वर्तमान में कम से कम 142 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं या देने की योजना बना रहे हैं। यदि फ्रांस यह कदम उठाता है, तो यह अन्य यूरोपीय देशों, जैसे ब्रिटेन, को भी इस दिशा में प्रेरित कर सकता है, जिससे इसराइल पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा।इसराइल और अमेरिका की प्रतिक्रिया
इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मैक्रों के फैसले की तीखी आलोचना करते हुए इसे "आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला कदम" करार दिया। उन्होंने X पर पोस्ट किया, "7 अक्टूबर के नरसंहार के बाद फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना आतंक को पुरस्कृत करता है और एक और ईरानी प्रॉक्सी (हमास) को बढ़ावा दे सकता है।" नेतन्याहू ने दावा किया कि यह कदम इसराइल की सुरक्षा के लिए खतरा है और क्षेत्र में अस्थिरता को बढ़ाएगा।
अमेरिका ने भी इस फैसले पर कड़ा रुख अपनाया। अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने X पर लिखा, "अमेरिका मैक्रों की संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की योजना को पूरी तरह खारिज करता है। यह लापरवाह निर्णय हमास के प्रचार को बढ़ावा देता है और शांति प्रक्रिया को बाधित करता है। यह 7 अक्टूबर के पीड़ितों का अपमान है।" अमेरिका ने लंबे समय से दो-राज्य समाधान का समर्थन किया है, लेकिन उसका मानना है कि फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता केवल इसराइल के साथ प्रत्यक्ष बातचीत के जरिए से होनी चाहिए।
ग़ज़ा में मानवीय संकट
मैक्रों की घोषणा ऐसे समय में आई है, जब ग़ज़ा में इसराइली सैन्य कार्रवाइयों ने मानवीय संकट को भयानक स्तर पर पहुंचा दिया है। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद इसराइल ने ग़ज़ा पर बड़े पैमाने पर बमबारी शुरू की, जिसे कई देशों और मानवाधिकार संगठनों ने "नरसंहार" करार दिया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ज़ा में अब तक करीब 60 हजार लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। इसराइल ने ग़ज़ा में मानवीय सहायता की सप्लाई पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिसके कारण खाना, पानी, दवाइयां और ईंधन की भारी कमी हो गई है। कई क्षेत्रों में लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं, और अस्पताल बिना बिजली और दवाओं के चल रहे हैं।
मैक्रों ने अपने बयान में ग़ज़ा में तत्काल युद्धविराम और मानवीय सहायता की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "ग़ज़ा में युद्ध को रोकना और वहां के नागरिकों को बचाना हमारी प्राथमिकता है।" फ्रांस ने पहले भी ग़ज़ा में युद्धविराम की वकालत की है और संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाया है।
मैक्रों के फैसले को कुछ देशों और संगठनों ने स्वागत किया है। फिलिस्तीनी नेतृत्व ने इसे "ऐतिहासिक कदम" बताते हुए फ्रांस का आभार जताया। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मैक्रों का यह कदम उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करने की रणनीति हो सकती है, खासकर तब जब फ्रांस में उनकी लोकप्रियता कम हो रही है।
वहीं, यूनानी अर्थशास्त्री और राजनेता यानिस वरौफाकिस ने X पर मैक्रों की आलोचना करते हुए कहा, "मैक्रों ने ग़ज़ा में युद्धविराम को फिलिस्तीन को मान्यता देने की शर्त बनाकर नेतन्याहू को एक तोहफा दे दिया है। अब नेतन्याहू युद्धविराम को रोककर इस मान्यता को टाल सकते हैं।"
फ्रांस की ऐतिहासिक नीति
फ्रांस का फिलिस्तीन के प्रति समर्थन नया नहीं है। 1974 में फ्रांस ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता दी थी और 1975 में पेरिस में PLO को कार्यालय खोलने की अनुमति दी थी। 1996 में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति जैक शिराक की यरूशलम यात्रा के दौरान इसराइली सैनिकों के साथ उनकी तनातनी हुई थी। मैक्रों का वर्तमान कदम फ्रांस की इस लंबी परंपरा का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह मध्य पूर्व में अरब देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करता रहा है।
मैक्रों की घोषणा से इसराइल पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा, खासकर यूरोप में। यदि ब्रिटेन जैसे अन्य देश भी फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं, तो इसराइल को वैश्विक मंच पर और अलग-थलग होना पड़ सकता है। हालांकि, अमेरिका का विरोध इस प्रक्रिया को जटिल बना सकता है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका का वीटो इस मान्यता को प्रभावित कर सकता है।
ग़ज़ा में मानवीय संकट को देखते हुए, मैक्रों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से युद्धविराम और सहायता के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है। लेकिन इसराइल और हमास के बीच चल रही हिंसा और कूटनीतिक तनाव को देखते हुए, इस क्षेत्र में शांति की राह अभी भी कठिन दिखाई देती है।
फ्रांस का फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला मध्य पूर्व की जियो पॉलिटिक्स में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। यह कदम ग़ज़ा में मानवीय संकट को उजागर करता है और इसराइल पर शांति वार्ता के लिए दबाव बढ़ाता है। हालांकि, इसराइल और अमेरिका की कड़ी प्रतिक्रिया और क्षेत्र की जटिल स्थिति को देखते हुए, इस फैसले का प्रभाव दीर्घकालिक शांति की दिशा में कितना कारगर होगा, यह भविष्य पर निर्भर करता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर अब सितंबर 2025 की संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक पर टिकी है, जहां मैक्रों अपने फैसले की औपचारिक घोषणा करेंगे।