अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा को लेकर एक नया नियम लागू किया है, जिससे भारतीय पेशेवरों की परेशानियां बढ़ सकती हैं। अब इस वीजा के लिए कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर यानी क़रीब 90 लाख रुपये की भारी फीस देनी होगी। यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा। H-1B वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारतीय आईटी पेशेवरों को मिलता है और इस नए नियम से उनके लिए अमेरिका में काम करना मुश्किल हो सकता है।
H-1B वीजा एक खास तरह का वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को नौकरी देने की इजाजत देता है। यह उन लोगों के लिए है जो आईटी, इंजीनियरिंग, मेडिसिन या फाइनेंस जैसे क्षेत्रों में खास स्किल रखते हैं। यह वीजा आमतौर पर 3 साल के लिए मिलता है और इसे एक बार और 3 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। भारतीय पेशेवर, खासकर आईटी क्षेत्र में काम करने वाले, इस वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। 2024 के आँकड़ों के मुताबिक़, H-1B वीजा पाने वालों में 70% भारतीय थे।
ट्रंप का नया नियम क्या है?
व्हाइट हाउस में अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने इस नए नियम की घोषणा की। उन्होंने कहा कि अब हर H-1B वीजा के लिए कंपनियों को 1 लाख डॉलर की फीस देनी होगी। ट्रंप का कहना है कि इससे केवल बहुत खास और जरूरी कर्मचारियों को ही अमेरिका में नौकरी मिलेगी, ताकि अमेरिकी लोगों की नौकरियाँ सुरक्षित रहें। यह फीस पहले से मौजूद 215 डॉलर की लॉटरी फीस और 780 डॉलर की फॉर्म फीस जैसे वीजा शुल्क के अतिरिक्त होगी। यानी, कंपनियों के लिए अब H-1B वीजा लेना बहुत महंगा हो जाएगा।
H-1B वीजा की वैधता
- H-1B वीजा आमतौर पर 3 साल के लिए मिलता है।
- इसे 3 साल और बढ़ाया जा सकता है, यानी कुल 6 साल तक।
- कुछ खास मामलों में (जैसे ग्रीन कार्ड प्रक्रिया चल रही हो), इसे 6 साल से ज्यादा भी बढ़ाया जा सकता है।
नया नियम
- 19 सितंबर 2025 को एक नया नियम आया, जिसमें कंपनियों को H-1B वीजा के लिए हर साल 1 लाख डॉलर फीस देनी होगी।
- यह फीस नए वीजा और पुराने वीजा की रिन्यूअल/एक्सटेंशन दोनों के लिए है।
- यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा और 12 महीने तक रहेगा (शायद आगे बढ़े)।
पुराने H-1B धारकों पर असर
- जिनके पास पहले से H-1B वीजा है, उन्हें रिन्यूअल या एक्सटेंशन के समय यह नई फीस देनी होगी।
- पहले फीस करीब 10,000 डॉलर थी, अब यह 1 लाख डॉलर हो गई है, जो बहुत बड़ा बदलाव है।
कितने लोग प्रभावित होंगे?
- 70% से ज्यादा H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं।
- हर साल 65,000 सामान्य + 20,000 मास्टर्स कैप वीजा जारी होते हैं।
- रिन्यूअल/एक्सटेंशन की संख्या भी बहुत है।
- कुल मिलाकर लाखों भारतीय (नए और पुराने वीजा धारक) प्रभावित हो सकते हैं।
संभावित असर
- कंपनियां नए लोगों को कम हायर कर सकती हैं।
- रिन्यूअल के लिए भी कंपनियां कम रुचि दिखा सकती हैं।
- इतनी बड़ी फीस की वजह से कुछ कंपनियां स्पॉन्सरशिप बंद कर सकती हैं।
- इस नियम को कोर्ट में चुनौती मिल सकती है।
अनुमान: तीन तरह की स्थिति बनती है
अनुमानित आँकड़े हैं कि कितने भारतीय कंपनियाँ प्रभावित हो सकती हैं और इसका खर्च कितना होगा। तीन तरह की स्थिति बनती है। पहली, यदि कंपनियाँ सोच लें कि उनको पुराने वीजा वालों को ही रिन्यू कराना है और नये वीजा के लिए अप्लाई नहीं करना है। यानी केवल पहले वाले रिन्यूअल कराएँ। दूसरी, यदि कंपनियाँ सोचें कि ट्रंप की नीति का कोई असर नहीं है और वे पहले वाले को रिन्यूअल कराएँ और नये वीजा भी लें। तीसरी, यदि कंपनिया सोचती हैं कि पुराने वीजा वाले नहीं रहें, सिर्फ़ उच्च स्तर के कर्मचारियों से ही काम चला लिया जाएगा और इसके लिए केवल नए वीजा लें।
वीजा लेने का असर कैसा होगा, तीन तरह की स्थिति बनती है
भारतीयों पर क्या असर पड़ेगा?
यह नया नियम भारतीय पेशेवरों और खासकर आईटी कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका है। इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारत की बड़ी आईटी कंपनियां अपने जूनियर और मिड-लेवल इंजीनियरों को अमेरिका में क्लाइंट प्रोजेक्ट्स के लिए भेजती हैं।
क़रीब 90 लाख रुपये की फीस के कारण अब कंपनियां ऐसा करने से हिचकेंगी। इसका मतलब है कि जूनियर इंजीनियरों को अमेरिका में नौकरी मिलना मुश्किल हो सकता है।
'अमेरिका को नुक़सान, भारत को फायदा'
नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है, 'डोनाल्ड ट्रंप की 100000 डॉलर की H-1B फीस अमेरिकी इनोवेशन को तो रोकेगी ही, साथ ही भारत के इनोवेशन को भी बढ़ावा देगी। दुनिया भर की प्रतिभाओं के लिए दरवाज़ा बंद करके अमेरिका, अगली पीढ़ी की लैब, पेटेंट, इनोवेशन और स्टार्टअप को बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे और गुड़गांव की ओर धकेल रहा है। भारत के बेहतरीन डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और इनोवेटर को विकसित भारत की दिशा में भारत की ग्रोथ और तरक्की में योगदान देने का मौका मिलेगा। अमेरिका का नुकसान, भारत का फायदा होगा।'उद्योग जगत में छिड़ी बहस
इस नियम से अमेरिका में भी बहस छिड़ गई है। पहले खुद H-1B वीजा पर काम कर चुके टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कहा कि यह वीजा जरूरी है, लेकिन फीस को लेकर उनकी राय साफ नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी ज्यादा फीस से कंपनियां कम विदेशी कर्मचारियों को बुलाएंगी, जिससे अमेरिका में नई तकनीकों का विकास धीमा हो सकता है।
भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने इस नियम को गलत बताया। उन्होंने कहा कि यह नीति उन कुशल कर्मचारियों को रोकेगी, जो अमेरिका की प्रगति में योगदान देते हैं। कुछ वकीलों का मानना है कि इतनी बड़ी फीस को लागू करने के लिए कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
भारत के लिए क्या बदलाव होंगे?
यह नियम भारत के आईटी उद्योग को प्रभावित करेगा। कंपनियाँ अब अमेरिका में कर्मचारियों को भेजने की बजाय भारत में ही काम करवाने की कोशिश करेंगी। इससे भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन अमेरिका में नौकरी के अवसर कम हो जाएंगे। साथ ही, H-1B वीजा धारकों को ग्रीन कार्ड के लिए पहले से ही लंबा इंतजार करना पड़ता है और अब कंपनियां उनके वीजा को रिन्यू करने में कम रुचि दिखा सकती हैं। इससे कई भारतीयों को अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है।
भारत सरकार का रुख
भारत सरकार इस मामले पर नज़र रखे हुए है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी और आर्थिक रिश्ते बहुत मजबूत हैं और कुशल पेशेवरों का आना-जाना इसका अहम हिस्सा है। हालाँकि, सरकार ने अभी इस नए नियम पर कोई सख्त टिप्पणी नहीं की है।
क्या होगा आगे?
कुछ भारतीय कर्मचारियों को उम्मीद है कि यह नियम कोर्ट में रुक सकता है, क्योंकि इतनी बड़ी फीस को लागू करने के लिए ठोस क़ानूनी आधार चाहिए। लेकिन अगर यह नियम लागू हो गया तो भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करना और वहां बसना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।
ट्रंप का H-1B वीजा के लिए 90 लाख रुपये की फीस का नियम भारतीय पेशेवरों के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह न केवल अमेरिका में उनकी नौकरियों को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत-अमेरिका के बीच तकनीकी साझेदारी पर भी असर डाल सकता है।