ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को दिए जाने वाले अनुदान में से लगभग 2.3 बिलियन डॉलर रोक दिया है। ट्रम्प के इस अभूतपूर्व कदम को लोकतंत्र का गला घोंटने के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रम्प सरकार का चाबुक चलता ही जा रहा है। कोशिश है कि हर उस ज़ुबान पर ताला जड़ दिया जाए जो भी स्वतंत्र है। डॉनल्ड ट्रम्प का अगला वार हुआ है अमेरिका की सबसे नामी और पुरानी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर। अमेरिकी सरकार ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की 2.3 अरब डॉलर यानि लगभग 1850 करोड़ रुपयों की फंडिंग पर रोक लगा दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस मुद्दे पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के न झुकने के स्टैंड की तारीफ की है।
ये फैसला उस टास्क फोर्स की सिफारिश के बाद आया है जो देश में एंटी-सेमिटिज्म यानी यहूदी विरोधी घटनाओं को रोकने के लिए बनाई गई है। सरकार का कहना है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को यह नुकसान इसलिए भुगतना पड़ रहा है कि यूनिवर्सिटी न सिर्फ जन-अधिकार उल्लंघन और एंटी सेमटिक घटनाओं को नज़रअंदाज कर रही है बल्कि वहाँ ऐसी विचारधाराएं भी पनप रही हैं जो देश के नागरिक अधिकार कानूनों और मूल्यों के खिलाफ हैं। गौरतलब है कि एंटी सेमेटिक टर्मिनालजी का प्रयोग रूप से यहूदी विरोध के लिए किया जाता है।
सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया गया है कि विश्वविद्यालयों को जो फन्डिंग मिल रही थी, वह अब उनका अधिकार नहीं होगा। अब यह सरकार की ओर से केवल एक इनवेस्टमेंट होगा जिसे सशर्त किया जाएगा। अगर कोई यूनिवर्सिटी देश के सिविल राइट्स कानूनों, शिक्षा के मूल्यों और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन नहीं करती, तो उसे सरकारी फंडिंग नहीं दी जाएगी।
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब ट्रम्प प्रशासन की ओर से हार्वर्ड को एक पांच पन्नों का पत्र भेजा गया। इस पत्र में कहा गया कि सरकार ने हार्वर्ड में शिक्षा और शोध के क्षेत्र में इसलिए निवेश किया है क्योंकि यह यूनिवर्सिटी देश के बौद्धिक विकास में बड़ी भूमिका निभाती है। लेकिन यह निवेश तभी तक उचित है जब हार्वर्ड ऐसे वातावरण को बनाए रखे जिसमें विचारों की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और कानून का पालन होता हो। सरकार की ओर से हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से कुछ मांगे की गई हैं।
उनमें से प्रमुख मांगे ये हैं –
इतना ही नहीं, सरकार ने हार्वर्ड से बाहरी ऑडिटर बुलाने की भी मांग की है। सरकार का कहना है ये बाहरी ऑडिटर यूनिवर्सिटी की आंतरिक कार्यप्रणाली की जांच करेंगे और यह देखेंगे कि कहीं कोई विचारधारा विशेष तो हावी नहीं हो रही है।
ट्रम्प सरकार ने अपने इस कदम को एंटी-वोक स्टेप बताया है। आज की बोलचाल में ‘वोक’ वैसे लोगों को कहा जाता है जो अपने अधिकार को लेकर बेहद मुखर होते हैं और बिना किसी दवाब के इसकी बात करते हैं। अगर पुराने मामलों को भी उठाया जाए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और उनके सहयोगी उद्योगपति एलन मस्क कको मुखर स्वतंत्र आवाज़ से खासी चिढ़ है। हॉवर्ड यूनिवर्सिटी का योगदान न केवल बेहतर विज्ञान, कला, साहित्य और समाज शास्त्र के क्षेत्र में रहा है, इस विश्वविद्यालय को हमेशा वैचारिक स्वतंत्रता और मुखर आवाज़ के केंद्र के तौर पर भी देखा जाता है।
इस फंडिंग फ्रीज़ का असर सिर्फ हार्वर्ड तक सीमित नहीं है। अमेरिका की कई और नामी यूनिवर्सिटीज़ जैसे कोलंबिया, प्रिंसटन, ब्राउन और पेंसिल्वेनिया भी ट्रम्प प्रशासन के इसी अभियान की चपेट में हैं। इनमें से कुछ यूनिवर्सिटीज़ ने सरकार की शर्तों को मानते हुए अपनी फंडिंग वापस पा ली है, जबकि कुछ को करोड़ों डॉलर की ग्रांट्स गंवानी पड़ी हैं।
नहीं झुकेगा हार्वर्डः हार्वर्ड ने इस पूरे मामले पर कड़ा रुख अपनाया है। यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट एलन गार्बर ने कहा है कि हार्वर्ड अपनी आज़ादी के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। उन्होंने सरकार के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि ये यूनिवर्सिटी की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। उनका यह भी कहना है कि शिक्षा का काम है सवाल उठाना, नई सोच को जगह देना और विचारों की स्वतंत्रता को बनाए रखना। सरकार इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है जो संविधान के खिलाफ है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रम्प प्रशासन के कहने पर छात्र एक्टिविटिज्म पर अंकुश न लगाने के अपने रुख के लिए दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों में से एक हार्वर्ड विश्वविद्यालय की सराहना की।
बराक ओबामा
ओबामा ने एक्स पर लिखा, "हार्वर्ड ने अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। उसने अकादमिक स्वतंत्रता को दबाने के एक गैरकानूनी और अमानवीय प्रयास को खारिज कर दिया है। उसने यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं कि हार्वर्ड के सभी छात्र बौद्धिक जांच, कड़ी बहस और आपसी सम्मान के माहौल का फायदा उठा सकें। आइए उम्मीद करें कि अन्य संस्थान भी इसका अनुसरण करेंगे।"
इस मामले पर अमेरिका में बहस तेज हो गई है। कई नागरिक संगठन, शिक्षाविद् और पूर्व छात्र सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। कई लोगों का कहना है कि यह फैसला शिक्षा पर राजनीतिक नियंत्रण का प्रयास है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अमेरिका की 'अमेरिकन असोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स' और कई सिविल लिबर्टी संगठनों ने सरकार पर मुकदमा भी किया है। उनका कहना है कि यह सब सरकार द्वारा एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश है।
गौर करने वाली बात यह है कि इस पूरी घटना का असर सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज़ और अकादमिक संस्थानों पर पड़ेगा। हार्वर्ड जैसी यूनिवर्सिटी अगर सरकार की शर्तों के आगे झुकती है, तो बाकी संस्थानों पर भी दबाव बढ़ेगा। वहीं अगर वह डटी रहती है, तो यह शिक्षा की स्वतंत्रता की दिशा में एक मजबूत संदेश होगा।
फिलहाल ट्रम्प प्रशासन ने 60 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज़ को चेतावनी दी है कि उन्हें भी हार्वर्ड जैसे नियमों के तहत जांच का सामना करना पड़ सकता है। आने वाले समय में यह साफ हो जाएगा कि शिक्षा की दुनिया में सरकार की सख्ती हावी होती है या यूनिवर्सिटीज़ की आज़ादी बची रहती है।