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ग़ज़ा में तबाही का मंजर

इजराइल-हमास युद्धः खाड़ी देशों में संकट बढ़ा, शांति बहाली की उम्मीद कम

इजराइल हमास संघर्ष अब धीरे-धीरे पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र यानी खाड़ी देशों को अपनी चपेट में ले रहा है। हमास ने इजराइल पर हमला किया और उसके 1200 लोग मारे गए। जवाब में इजराइल ने ग़ज़ा पर हमला किया और अभी तक 1300 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। जमीनी हमले के लिए इजराइली फौजें तैयार है। लेकिन जिस तरह से पूरा खाड़ी क्षेत्र इस युद्ध से प्रभावित हो रहा है, वो चिन्ता का विषय है। इजराइल की उत्तरी सीमा पर लेबनान के हिजबुल्ला से झड़प हो रही है। इराक और यमन में तमाम लड़ाकों (सशस्त्र समूह) ने इजराइल और उसके मुख्य सहयोगी देश अमेरिका को धमकियां दी हैं। इजराइल ने गुरुवार को पड़ोसी देश सीरिया पर हमला करके उसके दो मुख्य हवाईअड्डे तबाह कर दिए। इस युद्ध से न सिर्फ इज़राइल और फिलिस्तीनी बल्कि आसपास मिस्र, इराक, जॉर्डन के भी अस्थिर होने का खतरा है। 

न्यू यॉर्क टाइम्स में प्रकाशित विश्लेषण में कहा गया है कि इजराइल पर हमला अब तक का सबसे बड़ा हमला है, जो अमेरिका के बाइडेन प्रशासन के लिए भी एक बड़ा झटका है। अमेरिका ने खाड़ी देशों में शांति स्थापित करने का प्रचार जोर-शोर से किया था। अमेरिका ही नहीं यह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के लिए भी झटका है, जो अपने देश के विकास पर ध्यान केंद्रित करने जा रहे थे। सऊदी अरब ने पिछले दिनों एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट नियोम सिटी की घोषणा की थी। दिल्ली में जी 20 के दौरान यूरोप कॉरिडोर के लिए भारत-सऊदी अरब में समझौता हुआ था। यह कॉरिडोर भारत से शुरू होकर सऊदी अरब-इजराइल होते हुए यूरोपीय देशों तक जाना था।इस समझौते में अमेरिका की बड़ी भूमिका थी। इससे सऊदी अरब में विकास के नए रास्ते खुलते लेकिन अब सभी पर विराम लग गया है।
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इस पूरे इलाके में उन देशों के अधिकारी, विद्वान और आम लोग भयभीत हैं। इज़राइल तो हमेशा युद्ध में रहा है। फिलिस्तीन में आए दिन की झड़पें इसकी गवाह हैं। लेकिन मध्य पूर्व के देशों पर नजर डाली जाए तो यमन और सीरिया में युद्ध हाल के वर्षों के हैं और सूडान में इस साल एक नया युद्ध भी छिड़ गया है। न्यू यॉर्क टाइम्स ने दुबई स्थित अनुसंधान केंद्र B’huth के प्रमुख मोहम्मद बहारून के हवाले से लिखा है- "हम पीछे की ओर जा रहे हैं। अचानक, लोग लोगों को मार रहे हैं, और लोग लोगों को मारने के लिए दूसरों की जय-जयकार कर रहे हैं।"

यमन से आई धमकी गंभीर है। यमन और सऊदी अरब युद्ध में उलझे हैं। यमन के ईरान समर्थित हाउती लड़ाकों का यमन के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण है। हाल ही में यमन की राजधानी सना में फिलिस्तीनियों के समर्थन में एक बहुत बड़ी रैली हुई। हाउती लड़ाकों ने इस मौके पर चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका इजराइल-हमास युद्ध में सीधे हस्तक्षेप करेगा तो वे अपनी मिसाइलें और ड्रोन तैनात कर देंगे। खाड़ी देशों में राजतंत्र के खिलाफ 2011 में जो अरब स्पिंग विद्रोह हुआ था, उसने अरबी जनता की ख्वाहिशों की नई इबारत लिखी थी। इस नए युद्ध से उनकी ख्वाहिशें बढ़ेंगी। खाड़ी क्षेत्र के अधिकांश देश अमेरिका समर्थक हैं लेकिन वहां की जनता अमेरिका के खिलाफ है। यह तथ्य सऊदी अरब समेत तमाम देश कैसे नजरन्दाज कर सकते हैं। इन खाड़ी देशों में पहले से ही आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार और राजनीतिक दमन ने नई स्थितियां इस युद्ध के मद्देनजर पैदा कर दी हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इससे पूरे क्षेत्र के लिए जोखिम पैदा हो गया है। इस युद्ध से कई देशों में अनिश्चय का माहौल है।
न्यू यॉर्क टाइम्स ने क्राइसिस ग्रुप के वरिष्ठ खाड़ी विश्लेषक अन्ना जैकब्स को कोट किया है- "क्षेत्रीय स्थिरता को तब तक गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है जब इन देशों के खराब शासन और राजनीतिक संघर्ष को ठीक नहीं किया जाएगा।" हालांकि सऊदी और अमीरात के अधिकारी ने पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक कूटनीति और तनाव कम करने पर केंद्रित एक नए नजरिए को बढ़ावा देने की कोशिश में लगे रहे हैं। जिसमें सऊदी अरब के क्राउन प्रिन्स द्वारा अपने नागरिकों को कुछ आजादी देने और विकास पर ध्यान केंद्रित करने की बात शामिल है।

2020 में तक अमीरात, बहरीन और मोरक्को इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता तक देने इनकार कर रहे थे। उनकी प्राथमिकता फिलिस्तीनी राज्य निर्माण थी लेकिन इन देशों ने अपने रुख से पलटते हुए इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। इसी साल, सऊदी अरब ने अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान के साथ राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए। और इस युद्ध से पहले अमेरिकी अधिकारी इज़राइल-सऊदी अरब संबंध मजबूत बनाने के लिए संभावित समझौते पर बात कर रहे थे। इजराइल-हमास युद्ध ने एक पल में इन सारी संभावनाओं और गठबंधन का शीराज बिखेर दिया है।


इन देशों के अधिकारी अब फोन कॉल और बैठकों के जरिए इज्जत बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक एक अरब अधिकारी ने कहा कि कतर, तुर्की और मिस्र अमेरिका के साथ मिलकर ईरान सहित विभिन्न पक्षों से बात करके इजराइल-हमास युद्ध रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- अगर यह संघर्ष लेबनान (हिजबुल्लाह) तक पहुँचा और ईरान इस युद्ध में सीधे दखल देता है, तो बहुत बड़ी तबाही होगी। यहां यह बताना जरूरी है कि इज़राइल की सेना कई दिनों से लेबनान में हिजबुल्लाह के साथ संघर्ष कर रही है। हिजबुल्लाह इज़राइल का कट्टर दुश्मन है।
बहरहाल, क्षेत्र में अशांति तो बढ़ ही रही है। इराक में, फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में शुक्रवार (जुमा) को बगदाद के तहरीर चौक पर 500,000 से अधिक लोग जमा हो गए। इराक के शिया मुस्लिम मौलवी मुक्तदा अल-सद्र के नेतृत्व में सड़कों पर बगदाद के ज्यादातर गरीब इलाकों के लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। न्यू यॉर्क टाइम्स ने इस भीड़ को बेहद अनुशासित बताते हुए लिखा है कि ये लोग सिर्फ "नो, इजराइल- नो अमेरिका" के नारे लगा रहे थे और बीच-बीच में कुरान की आयतें भी पढ़ते थे। शुक्रवार को ही जॉर्डन, बहरीन और लेबनान में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
सऊदी विश्लेषक और हार्वर्ड के बेलफ़र सेंटर में मध्य पूर्व के वरिष्ठ फेलो मोहम्मद अल्याहया ने कहा, "इस क्षेत्र के बहुत सारे देशों के युवा इसे (इजराइल-हमास युद्ध) को सम्मान के स्रोत के रूप में देख रहे हैं।और यह खतरनाक है।" इस बड़े क्षेत्र में लोगों की राय भिन्न है। टाइम्स से बातचीत में आम लोगों ने कहा कि वे इजराइली नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की हत्या से दुखी हैं, लेकिन यह भी कहा कि इजराइल द्वारा अपमानजनक, औपनिवेशिक शैली के कब्जे ने फिलिस्तीनी गुस्से को जन्म दिया है। हालांकि कुछ लोगों ने इजराइलियों के हमलों को वैध बताया। सऊदी की राजधानी रियाध में 18 साल के अब्दुल्ला ने टाइम्स रिपोर्टर से कहा कि उसकी "इस जीवन में एकमात्र इच्छा" हमास के साथ मिलकर लड़ने के लिए उस क्षेत्र की यात्रा करना भी है। यह किशोर यमन से रियाध आकर रह रहा है। उसने कहा कि यह एक पवित्र काम होगा।

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हमास पर किताब लिखने वाले और इसके तमाम नेताओं का इंटरव्यू करने वाले लेखक अज़्ज़म तमीमी ने कहा कि पिछले शनिवार (7 अक्टूबर) को हमले से पहले, हमास पर अपने समर्थकों की ओर से दबाव बढ़ रहा था कि वे इजराइलियों की बढ़ती हिंसा का जवाब दें। उन्होंने कहा, "दुनिया फ़िलिस्तीनियों को नज़रअंदाज़ कर रही है। आप हमास को खत्म नहीं कर सकते। आपको फिलिस्तीनियों को उनके अधिकार देने ही होंगे।"

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यूसुफ किरमानी
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