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फ़ोटो साभार: फ़ेसबुक/प्रियंका राधाकृष्णन

कॉलेज करने गई थीं न्यूज़ीलैंड, भारतीय मूल की पहली मंत्री बन गईं

न्यूज़ीलैंड में भी अब भारतीय मूल की एक महिला मंत्री बनी हैं। प्रियंका राधाकृष्णन पहली ऐही भारतीय हैं जो वहाँ जेसिंडा आर्डर्न की कैबिनेट में मंत्री चुनी गई हैं। वह पहली पीढ़ी की आप्रवासी हैं। यानी उनके पुरखे वहाँ जाकर नहीं बसे थे। वह भारत में जन्मी और न्यूज़ीलैंड में पढ़ाई करने गई थीं। सामाजिक कार्य में जुट गईं। वंचितों की लड़ाई लड़नी शुरू की। वह लोगों के उनके अधिकार के लिए लड़ती रहीं और अब वह वहाँ की मंत्री बना दी गईं।  

प्रियंका राधाकृष्णन वह नाम है जिनका नाम शायद ही लोगों ने पहले सुना हो। लेकिन न्यूज़ीलैंड की चर्चित प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने जब सोमवार को अपने मंत्रिमंडल में पाँच नये मंत्रियों को शामिल करने की घोषणा की तो प्रियंका एकाएक चर्चा में आ गईं। उन्हें विविधता, समावेश और जातीय समुदायों की मंत्री चुना गया है। इसके अलावा वह सामुदायिक एवं स्वैच्छिक क्षेत्र की मंत्री और सामाजिक विकास एवं रोज़गार मंत्रालय की सहायक मंत्री भी बनाई गई हैं।

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अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में तो भारतीय मूल के लोगों के मंत्री बनने की ख़बरें आम हो गई हैं, लेकिन न्यूज़ीलैंड से इस तरह की ख़बर का आना अलग मायने रखता है। यह इसलिए कि अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं, लेकिन न्यूज़ीलैंड में उतनी संख्या में नहीं। लेकिन इससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि वह पहली पीढ़ी की भारतीय हैं जो वहाँ की नागरिक बनीं और मंत्री भी बन गईं। 

41 वर्षीय प्रियंका मूल रूप से केरल के एर्नाकुलम ज़िले के पारावूर क्षेत्र से हैं। हालाँकि उनका जन्म चेन्नई में हुआ था। उनके पिता आर राधाकृष्णन ने आईआईटी कानपुर से पढ़ाई की थी। प्रियंका ने स्कूल तक पढ़ाई सिंगापुर में की और फिर विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेलिंगटन से विकास अध्ययन में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए न्यूज़ीलैंड चली गईं। इसके बाद उन्होंने एक लेबर पार्टी के नेता जेनी सेल्सा के निजी सचिव के रूप में काम किया। इसके साथ ही वह वहाँ सामाजिक कार्य में जुट गईं।

प्रियंका ने अपना कामकाजी जीवन ऐसे लोगों की ओर से वकालत करते हुए बिताया है जिनकी आवाज़ें अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। उन्होंने लगातार घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाओं और शोषण का शिकार हुए प्रवासी मज़दूरों के लिए आवाज़ उठाई।

ऐसे सामाजिक कार्य करने के दौरान ही लेबर पार्टी की ओर से पहली बार सितम्बर 2017 में वह संसद की सदस्य चुनी गई थीं। 2019 में, उन्हें जातीय समुदायों के लिए मंत्री की संसदीय निजी सचिव नियुक्त किया गया था। प्रियंका अपने पति रिचर्डसन के साथ ऑकलैंड में रहती हैं। रिचर्डसन एक आईटी कंपनी में काम करते हैं। 

प्रियंका ने फ़ेसबुक पोस्ट कर लिखा, 'आज का दिन बेहद खास रहा। मैं बहुत सी चीजों को महसूस कर रही हूँ, जिसमें हमारी सरकार का हिस्सा बनने का सौभाग्य भी शामिल है। सभी को धन्यवाद जिन्होंने संदेश/ कॉल/टेक्स्ट बधाई संदेशों के लिए समय निकाला है- आप सभी को धन्यवाद। मुझे एक मंत्री नियुक्त किया गया और मैं सहयोगियों और मंत्री की एक शानदार टीम के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूँ।'

'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में प्रियंका के पिता आर राधाकृष्णन, जो चेन्नई में रह रहे हैं, ने कहा, 'मंत्री का पद पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं था। हमें विश्वास था कि उसे सरकार में कुछ बड़ी भूमिका मिलेगी, और प्रधानमंत्री ने उसे इसके बारे में संकेत दिया था।' उन्होंने आगे कहा, 'आज मैंने उसकी नई भूमिका के बारे में सुनने के बाद उससे बात की। वह रोमांचित है। वह न्यूज़ीलैंड सरकार में मंत्री बनने वाली पहली भारतीय है। लेकिन मैंने उसे सलाह दी है कि राजनीति में अपना करियर बनाने के दौरान भी परिवार को न भूले।'

जेसिंडा अर्डर्न का नेतृत्व

प्रियंका उस प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न सरकार में मंत्री हैं जो खुले विचारों के लिए जानी जाती हैं। वह दुनिया भर में चर्चा में रही हैं। जेसिंडा अक्टूबर 2017 में न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री बनी थीं। वह पिछले साल इसलिए भी चर्चा में रही थीं कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए बच्चे को जन्म दिया। जब उनकी बेटी महज चार महीने की थी तब वह संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में शामिल होने न्यूयॉर्क गई थीं।

priyanca radhakrishnan is new zealand first indian origin minister - Satya Hindi
फ़ोटो साभार: फ़ेसबुक/प्रियंका राधाकृष्णन

वह तब भी चर्चा में रही थीं जब न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में हुए आतंकवादी हमले के बाद पीड़ित परिवारों से मुलाक़ात के दौरान उन्होंने संदेश दिया था। 

प्रधानमंत्री आर्डर्न ने कहा था, 'हम विविधता, करुणा और दया का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह देश उनका घर है, जो हमारे मूल्यों को मानते हैं। यह उन शरणार्थियों का घर है, जिन्हें इसकी ज़रूरत है।'

उनके इस बयान के लिए दुनिया भर में तारीफ़ हुई थी और कहा गया था कि दक्षिणपंथी नेताओं को उनसे सीखना चाहिए। 

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