रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका के उन प्रयासों पर हमला किया है, जिनमें भारत और चीन जैसे देशों पर दबाव डाला जा रहा है कि वे मास्को के साथ ऊर्जा संबंध तोड़ दें। पुतिन ने चेतावनी दी कि रूस के व्यापारिक साझेदारों पर लगाए जाने वाले उच्च टैरिफ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर डाल सकते हैं, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ही झटका लगेगा। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि भारत कभी किसी के आगे सिर झुकाने वाला देश नहीं है और पीएम मोदी खुद कभी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जो राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध हो।

इस बीच, पुतिन ने अपनी सरकार को भारत के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है। उन्होंने दिसंबर की शुरुआत में भारत यात्रा को लेकर उत्सुकता जताई और कहा कि रूस अधिक कृषि उत्पादों व दवाओं का आयात बढ़ाकर इस असंतुलन को संतुलित करेगा। यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद के कारण 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने के संदर्भ में आया है, जो यूक्रेन युद्ध में रूस की फंडिंग रोकने का प्रयास माना जा रहा है।
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पुतिन का अमेरिकी नीति पर हमला

काला सागर तट पर आयोजित वल्दाई क्लब के एक सम्मेलन में 140 देशों के विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए पुतिन ने कहा, 'अगर रूस के साझेदारों पर उच्च टैरिफ लगाए जाते हैं तो वैश्विक कीमतें आसमान छू लेंगी। इससे अमेरिकी फेडरल रिजर्व को ब्याज दरें ऊंची रखनी पड़ेंगी, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को धीमा कर देगी।' उन्होंने साफ़ किया कि ऐसे क़दम रूस को नुक़सान पहुँचाने के बजाय अमेरिका पर ही भारी पड़ेंगे।

पुतिन ने भारत और चीन के संदर्भ में कहा, 'भारत जैसे देश के लोग अपने राजनीतिक नेतृत्व के फ़ैसलों पर नज़र रखते हैं और कभी किसी के सामने अपमान स्वीकार नहीं करेंगे। मुझे विश्वास है कि पीएम मोदी खुद कभी ऐसा क़दम नहीं उठाएंगे।' उन्होंने मोदी को 'संतुलित, बुद्धिमान और राष्ट्रवादी नेता' करार दिया, जो राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं। पुतिन का यह बयान ट्रंप प्रशासन की उस नीति के ख़िलाफ़ है, जिसमें रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर दंडात्मक टैरिफ लगाए जा रहे हैं। ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि भारत रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा खरीदार है, जो यूक्रेन युद्ध को फंड कर रहा है।

रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी की हैं, लेकिन अमेरिकी दबाव के कारण दिल्ली को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ रही है।

पुतिन ने जोर देकर कहा कि यदि भारत रूसी ऊर्जा आपूर्ति बंद करता है, तो वैश्विक तेल क़ीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चढ़ सकती हैं, जो अमेरिका सहित सभी को महंगाई का सामना करने पर मजबूर कर देगी।

भारत-रूस व्यापार असंतुलन 

पुतिन ने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली द्वारा रूसी कच्चे तेल के भारी आयात के कारण व्यापार में असंतुलन पैदा हो गया है। उन्होंने कहा, 'हमने कभी भारत के साथ कोई समस्या या तनाव नहीं रखा। हम हमेशा एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं का सम्मान करते हैं।' उन्होंने सरकार को निर्देश दिया कि भारत के साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए ठोस उपाय सुझाए जाएं।
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इस संदर्भ में पुतिन ने रूस द्वारा भारतीय कृषि उत्पादों और दवाओं के आयात बढ़ाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, 'हम भारत से अधिक कृषि सामग्री खरीद सकते हैं। दवाओं और फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में भी हमारे पक्ष से कदम उठाए जा सकते हैं।' यह कदम भारत के निर्यातकों के लिए राहत की सांस साबित हो सकता है, खासकर जब अमेरिकी टैरिफ भारतीय सामानों को अमेरिकी बाजार से बाहर धकेल रहे हैं। रूस ने पहले ही भारतीय निर्यातकों को बाजार पहुंच प्रदान करने का आश्वासन दिया है।

पुतिन की भारत यात्रा

पुतिन ने अपनी आगामी भारत यात्रा का भी जिक्र किया, जो दिसंबर के पहले सप्ताह में होने वाली है। यह यात्रा रूस-भारत के बीच 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा होगी। उन्होंने कहा कि यह यात्रा 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद उनकी पहली भारत यात्रा होगी। शिखर सम्मेलन में रक्षा, ऊर्जा, कृषि और व्यापार सहयोग पर गहन चर्चा होगी। पुतिन ने जोर दिया कि सोवियत काल से ही रूस-भारत संबंध विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के रूप में मजबूत हैं, जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूत करने में सहायक है। 
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पीएम मोदी ने भी रूस के साथ संबंधों को टाइम टेस्टेड बताते हुए कहा है कि भारत राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है। अगस्त से अब तक मोदी और पुतिन के बीच तीन टेलीफोन वार्ताएं हो चुकी हैं, और हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं की मुलाकात हुई। 

पुतिन का यह बयान भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकेत है। दिसंबर शिखर सम्मेलन में दोनों नेता यूक्रेन संकट, व्यापार युद्ध और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था पर चर्चा करेंगे। भारत ने हमेशा रूस को अपनी विदेश नीति का प्रमुख स्तंभ माना है और यह साझेदारी वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता देती है।