अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में भारत सहित सभी ब्रिक्स देशों को 10% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी है। इसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या ट्रम्प वास्तव में ब्रिक्स की बढ़ती ताकत से खतरा महसूस कर रहे हैं? उनकी तमाम आशंकाएं क्या वाकई खतरा हैं। हाल के वर्षों में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का वैश्विक आर्थिक और जियो पॉलिटिक्स मंच पर प्रभाव तेजी से बढ़ा है। 2024 में इसके विस्तार के साथ, जिसमें मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे नए सदस्य शामिल हुए। ब्रिक्स अब दुनिया की अर्थव्यवस्था का लगभग 35% और विश्व की जनसंख्या का 45% हिस्सा प्रतिनिधित्व करता है। इससे दुनियाभर में अमेरिकी डॉलर में कारोबार की स्थिति को भी चुनौती मिल रही है। 

ट्रम्प की चिंताएँ और टैरिफ की धमकी   

डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में ब्रिक्स को "अमेरिका-विरोधी" नीतियों को बढ़ावा देने वाला समूह करार देते हुए कहा कि यह गठबंधन अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने और इसे ग्लोबल रिजर्व मुद्रा के रूप में बदलने की कोशिश कर रहा है। ट्रम्प ने 8 जुलाई को सोशल मीडिया पर घोषणा की कि ब्रिक्स से संबद्ध किसी भी देश पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा, जिसमें कोई देश बचेगा नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिक्स देश "डॉलर को नष्ट करने" की कोशिश कर रहे हैं। ट्रम्प ने इसे एक "प्रमुख विश्व युद्ध हारने" जैसा बताया, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होगा। 
हालांकि, ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि ब्रिक्स कोई "गंभीर खतरा" नहीं है, लेकिन उनकी लगातार धमकियां और बयानबाजी इस बात का संकेत देती हैं कि वह इसके बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि ट्रम्प ने रियो डी जनेरियो में हुए हालिया ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पर "नजदीकी से नज़र रखी।" लेकिन उनका मानना है कि यह समूह केवल अमेरिकी हितों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, न कि स्वयं को मजबूत कर रहा है।
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ब्रिक्स का बढ़ता प्रभाव और डी-डॉलरीकरण

ब्रिक्स का हालिया विस्तार और इसकी दुनियाभर में बढ़ती सक्रियता ने इसे विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बना दिया है। रियो डी जनेरियो में 6-7 जुलाई 2025 को आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, समूह ने एकतरफा टैरिफ और व्यापार युद्ध की आलोचना की, जिसे ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ अप्रत्यक्ष टिप्पणी माना गया। ब्रिक्स नेताओं ने वैश्विक व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग और डी-डॉलरीकरण की वकालत की, जिसे ट्रम्प ने अमेरिकी हितों के खिलाफ माना।
हालांकि, ब्रिक्स ने स्पष्ट किया कि उसका लक्ष्य अमेरिकी डॉलर की जगह लेना नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार में एक वैकल्पिक आर्थिक प्रणाली को बढ़ावा देना है। भारत, जो ब्रिक्स का एक प्रमुख सदस्य है, ने डी-डॉलरीकरण के प्रति रिजर्व नजरिया अपनाया है। हाल ही में भारत ने चीनी युआन को रूसी तेल आयात के लिए इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। भारत के इस रुख को आर्थिक असंतुलन और चीन के प्रभुत्व को रोकने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। इससे अमेरिका और ट्रम्प को भी संदेश जा रहा है कि भारत ब्रिक्स में होने के बावजूद अमेरिकी हितों के खिलाफ काम नहीं कर रहा है।

ट्रम्प की रणनीति: भय या नियंत्रण?  

ट्रम्प की टैरिफ धमकियां उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति का हिस्सा हैं, जिसका लक्ष्य व्यापारिक साझेदारों पर दबाव डालकर अनुकूल व्यापार समझौते हासिल करना है। ब्रिक्स देशों, विशेष रूप से भारत और चीन जैसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर टैरिफ की धमकी, अमेरिकी हितों को बनाए रखने की उनकी कोशिश को दर्शाती है। हालांकि, यह रणनीति जोखिम भरी भी हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के टैरिफ वैश्विक व्यापार को 2% तक कम कर सकते हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने ट्रम्प की धमकियों को "राजा" जैसा व्यवहार करार देते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि विश्व को ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता नहीं है जो ऑनलाइन धमकियां दे। यह दर्शाता है कि ब्रिक्स देश ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति में तनाव बढ़ रहा है।

भारत की स्थिति

भारत, जो ब्रिक्स का एक प्रमुख सदस्य है, ट्रम्प की धमकियों के बीच एक संतुलित नजरिया अपनाए हुए है। ट्रम्प ने हाल ही में भारत के साथ व्यापार समझौते की प्रगति की बात कही, जिससे भारत को कुछ हद तक टैरिफ छूट मिलने की संभावना जताई गई। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भारत ब्रिक्स की "अमेरिका-विरोधी" नीतियों का समर्थन करता है, तो उसे 10% टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। भारत के लिए यह एक जटिल स्थिति है, क्योंकि वह ब्रिक्स के माध्यम से वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूत करना चाहता है, लेकिन साथ ही अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को बनाए रखना भी जरूरी है।
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डोनाल्ड ट्रम्प की ब्रिक्स को लेकर बार-बार दी जा रही धमकियां और टैरिफ की घोषणाएं इस बात का संकेत हैं कि वह इसके बढ़ते प्रभाव को लेकर सतर्क हैं। हालांकि, उनका दावा कि ब्रिक्स कोई "गंभीर खतरा" नहीं है, यह संकेत देता है कि उनकी रणनीति भय से अधिक नियंत्रण और दबाव बनाने पर केंद्रित है। ब्रिक्स का विस्तार और डी-डॉलरीकरण की दिशा में इसके कदम निश्चित रूप से अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं, लेकिन यह समूह अभी भी आंतरिक मतभेदों और एकजुटता की कमी से जूझ रहा है। भारत जैसे देशों के लिए, यह एक नाजुक संतुलन की स्थिति है, जहां उसे वैश्विक दक्षिण के हितों और पश्चिमी शक्तियों के साथ संबंधों को साधना होगा। ट्रम्प की नीतियां वैश्विक व्यापार में अस्थिरता बढ़ा सकती हैं, लेकिन ब्रिक्स की एकजुटता और रणनीतिक जवाबी कार्रवाई इस तनाव को और गहरा सकती है।