अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया आर्थिक और आप्रवासन नीतियां उन पर मुकदमा करवा रही हैं। विशेष रूप से भारत पर लगाए गए उच्च टैरिफ और H-1B वीजा फीस में भारी वृद्धि, राजनीतिक और कानूनी विवादों के केंद्र में आ गई हैं। ये नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का दावा करती हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये अवैध हैं, अमेरिकी उपभोक्ताओं, श्रमिकों और द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचा रही हैं। हाल ही में, तीन अमेरिकी सांसदों ने टैरिफ को चुनौती दी है, जबकि 20 राज्यों ने H-1B फीस के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर किया है। ट्रंप की इन नीतियों से शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।

भारत पर ट्रंप टैरिफ को चुनौती: तीन सांसदों का रेजोल्यूशन

ट्रंप प्रशासन ने अगस्त 2025 में भारत से आयातित वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी) का हवाला देकर 50% तक टैरिफ लगा दिए, जिसमें 25% 'सेकेंडरी' ड्यूटी शामिल है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के तहत लिया गया, जिसे आलोचक 'अवैध' मानते हैं।

12 दिसंबर, 2025 को, तीन डेमोक्रेटिक हाउस रिप्रेजेंटेटिव्स राजा कृष्णमूर्ति (इलिनॉय), डेबोरा रॉस (उत्तर कैरोलिना) और मार्क वेसी (टेक्सास) ने एक रेजोल्यूशन पेश किया, जो इस आपातकाल को समाप्त करने और टैरिफ को रद्द करने की मांग करता है। यह रेजोल्यूशन कांग्रेस की संवैधानिक व्यापार शक्तियों को बहाल करने का प्रयास है। सांसदों का तर्क है कि ये टैरिफ अमेरिकी श्रमिकों, उपभोक्ताओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं, साथ ही अमेरिका-भारत संबंधों को कमजोर कर रहे हैं।

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यह कदम ब्राजील पर समान टैरिफ को समाप्त करने वाले सीनेट के द्विपक्षीय उपाय के बाद आया है, जो ट्रंप की आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग के खिलाफ बढ़ते विरोध को बता रहा है। कृष्णमूर्ति ने कहा, "ये टैरिफ वास्तव में अमेरिकियों पर टैक्स हैं, जो खुदरा कीमतों को बढ़ा रहे हैं।" भारत को 'महत्वपूर्ण साझेदार' बताते हुए, सांसद ट्रंप से संबंधों को सुधारने और नुकसानदेह नीतियों को उलटने की अपील कर रहे हैं।

ट्रंप प्रशासन का दावा है कि ये टैरिफ रूसी तेल खरीद के कारण लगाए गए हैं, लेकिन यह विवाद कांग्रेस में तेज हो रहा है। यदि रेजोल्यूशन पास होता है, तो यह ट्रंप की व्यापार नीति को बड़ा झटका देगा।

H-1B वीजा फीस बढ़ोतरी के खिलाफ 20 राज्यों का मुकदमा

ट्रंप ने सितंबर 2025 में एक प्रोजेकलेशन जारी कर नए H-1B वीजा आवेदनों पर 100,000 डॉलर की अतिरिक्त फीस लगाई, जो उच्च-कुशल विदेशी श्रमिकों (जैसे आईटी, इंजीनियरिंग) को अमेरिका लाने के लिए नियोक्ताओं पर बोझ डालती है। यह फीस कांग्रेस की मंजूरी या कानूनी प्रक्रिया (नोटिस एंड कमेंट) के बिना लागू की गई, जिसे 'अवैध' बताया जा रहा है।

12 दिसंबर, 2025 को, कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंता और मैसाचुसेट्स की एंड्रिया जॉय कैंपबेल के नेतृत्व में 20 राज्यों ने मैसाचुसेट्स की संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया। इसमें शामिल राज्य हैं- कैलिफोर्निया, मैसाचुसेट्स, न्यूयॉर्क, एरिजोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, हवाई, इलिनॉय, मैरीलैंड, मिशिगन, मिनेसोटा, उत्तरी कैरोलिना, न्यू जर्सी, ओरेगन, रोड आइलैंड, वर्मॉन्ट, वाशिंगटन और विस्कॉन्सिन।

राज्यों का कहना है कि यह फीस नियोक्ताओं के लिए 'महंगी रुकावट' है, जो कुशल विदेशी श्रमिकों पर निर्भर उद्योगों को प्रभावित करेगी। यह मुकदमा यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स और यूनियनों के पिछले केसों के बाद तीसरा है। बोंता ने कहा, "कोई भी प्रशासन आप्रवासन कानून को फिर से नहीं लिख सकता।" कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में, जहां टेक कंपनियां (मेटा, गूगल, एप्पल) H-1B पर निर्भर हैं, यह फीस लेबर शॉर्टेज को बढ़ाएगी।

शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों पर प्रभाव

ट्रंप की H-1B नीति से अमेरिकी शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, जैसा कि राज्यों ने मुकदमे में उल्लेख किया है। 
शिक्षा क्षेत्र: अमेरिकी विश्वविद्यालय H-1B वीजा पर 16,000+ विदेशी फैकल्टी, शोधकर्ताओं और शिक्षकों पर निर्भर हैं (FY 2025 डेटा)। नई फीस से रिक्रूटमेंट मुश्किल हो जाएगी, जो STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में नवाचार को रोक सकती है।
अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 30-40% गिर सकती है, जो $55 अरब की आर्थिक हानि और 378,000 नौकरियों को प्रभावित करेगी। स्टैनफोर्ड, मिशिगन और कोलंबिया जैसे विश्वविद्यालयों में 200+ H-1B कार्यकर्ता हैं, जिनकी कमी से कोर्स और रिसर्च प्रभावित होंगे।
उच्च शिक्षा संघों (ACE, NAFSA) ने चेतावनी दी है कि यह चीन के मुकाबले में अमेरिकी मुकाबले को कमजोर करेगा।
स्वास्थ्य क्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा स्नातक (IMGs) प्राइमरी केयर और ग्रामीण क्षेत्रों में 16.6% पद भरते हैं। फीस से इनकी भर्ती रुक सकती है, जो डॉक्टरों की कमी (विशेष रूप से underserved areas में) को बढ़ाएगी। स्वास्थ्य नियोक्ताओं के लिए यह फीस बजट का 50% तक खा सकती है, जो रोगी सेवाओं को प्रभावित करेगी। अमेरिकी डेवलेपमेंट सेंटर के अनुसार, यह नीति नवाचार और आर्थिक नेतृत्व को नुकसान पहुंचाएगी।

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ट्रंप की ये नीतियां राजनीतिक दबाव में फंस गई हैं, जहां विधायी और कानूनी चुनौतियां बढ़ रही हैं। टैरिफ रेजोल्यूशन कांग्रेस में बहस को तेज कर सकता है, जबकि H-1B मुकदमा फीस को ब्लॉक करने की दिशा में जा सकता है। यदि ये नीतियां बनी रहीं, तो US-India संबंध खराब होंगे और आंतरिक क्षेत्र प्रभावित होंगे। हालांकि, ट्रंप प्रशासन 'राष्ट्रीय हित' अपवादों का दावा कर रहा है। भविष्य में, ये विवाद व्यापार वार्ताओं (जैसे ट्रंप-मोदी बातचीत) को प्रभावित करेंगे।