सेंट्रल एशिया में एक नई ‘ग्रेट गेम’ शुरू हो गई है। अमेरिका इस खेल के केंद्र में है। पाकिस्तान उसके साथ है। पाकिस्तान का बलूचिस्तान स्थित पसनी बंदरगाह और महत्वपूर्ण रेयर अर्थ मिनरल्स अब ट्रंप के लिए ताजा पेशकश है। पाकिस्तान ने हाल ही में अमेरिका को इन दुर्लभ खनिजों की खेप भेजी है और अब वह अरब सागर तट पर 1.2 अरब डॉलर की लागत से पसनी में नया कारोबारी बंदरगाह बनाने की पेशकश कर रहा है।
यह बंदरगाह चीन के बनाए ग्वादर पोर्ट से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है और बलूचिस्तान के समृद्ध खनिज क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में कॉपर (तांबा) और एंटिमनी जैसे खनिज पाए जाते हैं, जो बैटरियों और मिसाइलों के निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

शरीफ-मुनीर की अमेरिका यात्रा

‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में उनसे नज़दीकी बढ़ाने के लिए इन खनिज सौदों और बंदरगाह निवेश को एक नई रणनीति के रूप में देख रहा है। पिछले महीने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात की थी, जहां उन्होंने अमेरिकी प्रशासन को खनिजों के सैंपल सौंपे।

अमेरिका को दुर्लभ खनिजों की पहली खेप रवाना  

पाकिस्तान के अखबार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार दुर्लभ खनिज नमूनों की अपनी पहली खेप अमेरिका भेज दी गई है। अमेरिकी कंपनी पाकिस्तान में खनिज प्रसंस्करण और विकास सुविधाएँ स्थापित करने के लिए लगभग 50 करोड़ डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है। फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (एफडब्ल्यूओ) के सहयोग से घरेलू स्तर पर तैयार की गई इस खेप में एंटीमनी, कॉपर कंसंट्रेट और नियोडिमियम व प्रेजोडायमियम जैसे दुर्लभ तत्व शामिल हैं। अमेरिका की चार्ज द’अफेयर्स नटाली बेकर ने इसे “दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग का नया युग” बताया।

अमेरिका-चीन के बीच तकनीकी मुकाबला तेज 

अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी मुकाबले के चलते क्रिटिकल मिनरल्स और रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) की दौड़ तेज़ हुई है। चीन फिलहाल दुनिया के अधिकांश रेयर अर्थ मिनरल्स की रिफाइनिंग प्रक्रिया पर नियंत्रण रखता है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे विकल्प अमेरिका के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम साबित हो सकते हैं।

ट्रंप के दोबारा व्हाइट हाउस में लौटने के बाद से ही दुर्लभ खनिज उनकी प्राथमिकता बने हुए हैं। पहले ग्रीनलैंड और यूक्रेन से भी दुर्लभ खनिज के लिए ट्रंप ऐसे समझौते कर चुके हैं।

बलूचिस्तान में चीन के साथ यूएस की मौजूदगी

बलूचिस्तान में चीन पहले से ही साइंदक कॉपर माइन और रेकॉ डिक गोल्ड प्रोजेक्ट में सक्रिय है। अब अमेरिका भी उस क्षेत्र में घुस चुका है। ऐसे में यह क्षेत्र खनिज मुकाबले का नया मैदान बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के मुताबिक, अमेरिका और पाकिस्तान की यह साझेदारी दक्षिण एशिया की जियो पॉलिटिक्स को गहराई से प्रभावित कर सकती है।

पसनी पोर्ट भी पाकिस्तान ने यूएस को परोस दिया 

पसनी को एक गहरे समुद्री बंदरगाह (Deep Sea Port) के रूप में तैयार किया गया तो इससे अमेरिका को ईरान और चीन को दरकिनार करते हुए सेंट्रल एशिया तक सीधा समुद्री मार्ग मिल सकता है। यह बंदरगाह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान को जोड़ने वाली रेलवे परियोजना से भी जुड़ा हुआ है। जिससे अमेरिका को अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों तक पहुंचने में आसानी होगी। इसके साथ ही पाकिस्तान ने भारत-अमेरिका संबंधों में भी दरार डालने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं। 

भारत ने हाल ही में ट्रंप की मध्यस्थता की भूमिका को ठुकराया था, जिसके बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50% तक के टैरिफ़ बढ़ा दिए थे। यह बात बहुत गहराई से समझने वाली है कि भारत चाबहार (ईरान) पोर्ट को विकसित कर रहा था लेकिन अमेरिका ने उस पर तमाम पाबंदियां लगा दीं। वहां काम रुक चुका है। पाकिस्तान भी यही चाहता था कि भारत किसी भी तरह चाबहार से हट जाए। अब उसने पसनी पोर्ट को सौंप दिया है।
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पाकिस्तान का नया ‘खनिज कूटनीति’ (Mineral Diplomacy) अभियान न केवल ट्रंप प्रशासन को लुभाने की कोशिश है, बल्कि यह चीन और भारत दोनों के प्रभाव क्षेत्रों को चुनौती देने की एक सोची-समझी रणनीति भी है। बलूचिस्तान का पसनी बंदरगाह आने वाले वर्षों में न सिर्फ व्यापार, बल्कि जियो पॉलिटिकल शक्ति-संतुलन का प्रतीक बन सकता है।