वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्य की दुनिया में सक्रिय हैं।
अमर सिंह चमकीला एक बायोपिक है। चमकीला ने दो शादियां की थीं। उन्होंने दूसरी शादी की तो अपनी पहली पत्नी के बारे में दूसरी को नहीं बताया था। चमकीला को समाज कैसे देखता है? पढ़िए फिल्म की समीक्षा।
महिलाओं की पहचान थीम पर आधारित नाटक 'बेटियाँ मन्नू की' का मंचन किया गया। जानिए, समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी पहचान से जुड़े पहलुओं का कैसे मंचन किया गया।
पत्रकार शेष नारायण सिंह का निधन हो गया। वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री लिखती हैं- आज सुबह मेरे अभिभावक -मित्र पत्रकार शेष नारायण सिंह चले गए। कल उनके प्लाज़्मा का इंतज़ाम भी हो गया था। हम आश्वस्त थे कि अब ख़तरा टल गया है।
16 दिसंबर, 2012 की रात, निर्भया का मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर’ था। इतना नृशंस कि उसने देश का कलेजा दहला दिया। फाँसी की सज़ा हो या नहीं?
कौन थी राधा? कृष्ण के बाहर थी, या भीतर थी? राधा भी तो कृष्ण की सबसे प्रिय गोपी थी। उनके होली खेलने का प्रसंग क्या कवियों की कल्पना है?
र्तमान पारिवारिक ढाँचे में तीन हज़ार साल से कोई बदलाव नहीं आया तो अब क्या आएगा? नसों में जो ग़ुलामी उतार दी गई है, उसे कैसे बाहर निकालेंगे? थप्पड़ एक फ़िल्म नहीं, स्त्री के स्वाभिमान का लहूलुहान चेहरा है।
“नैना” को पढ़ते हुए बार-बार ये शेर याद आता रहा। पत्रकार और अब उपन्यासकार संजीव पालीवाल का पहला उपन्यास पढ़ गई। पढ़ते हुए बहुत रोमांच होता रहा।
दिल्ली पुलिस की लगातार धमकियों के बावजूद शाहीन बाग़ में भीड़ कम नहीं हो रही है बल्कि बढ़ती चली जा रही है। यह देश का अभूतपूर्व आंदोलन है, सदियाँ इसे याद रखेंगी।
राजस्थान मानवाधिकार आयोग का यह कौन- सा रूप है। उन्हें स्त्रियों के हितों की इतनी चिंता होती तो क्या वे लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही किसी महिला को उपस्त्री यानी रखैल का दर्जा देते?
किसी भी शताब्दी के शायर हों सभी शायरों ने अवाम को सबसे ऊपर रखा और लोक संस्कृति को बनाए, बचाए रखने की जमकर पैरोकारी भी की। ख़ुद भी रंगे और जमाने को भी रंग दिया।
जो अपने अंदर की बुराई को न मार सके, जो अपने अहंकार को कम न कर सके, ऐसा समुदाय होलिका दहन करता हुआ क्या फूहड़ नहीं लगता है?