क्या मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर अब यह बता पाएँगे कि विश्वविद्यालयों में आरक्षण को लेकर उन्होंने अध्यादेश का विकल्प क्यों नहीं अपनाया?
बिना किसी नीति और अस्पष्ट नीयत के चलते केजरीवाल अपनी पार्टी के राष्ट्रीय कैनवस पर फैलने की हर संभावना स्वयं समाप्त कर चुके हैं।