बीजेपी की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले भले ही दिल्ली के चुनाव परिणाम से अति उत्साहित हों, लेकिन परिणाम भारतीय राजनीति में ख़तरे की घंटी है।
शीर्ष न्यायालय के फ़ैसले से ऐसा लगता है कि उसने एससी, एसटी और ओबीसी तबक़े को मिलने वाला आरक्षण सरकार के हवाले कर दिया है।
सफाई कर्मचारियों के पांव धोने वाले नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बन चुके हैं लेकिन उन्होंने दिल्ली के सफाई कर्मियों के लिये कुछ नहीं किया।
गाँधी की मृत्यु के बाद सरदार पटेल के सीने पर गाँधी की हत्या का बोझ बना रहा। गाँधी के जाने के महज एक महीने बाद 5 मार्च 1948 को पटेल के सीने में दर्द उभरा।
सरदार पटेल और नेहरू के बीच जितने मतभेद थे, उससे कई गुना बढ़ा कर पेश किया जा रहा था, जिससे दोनों ही परेशान थे। गाँधी की मृत्यु के बाद दोनों लिपट कर रोए और उसके साथ ही तमाम मतभेद भी मिट गए।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर उत्तर भारत की राजनीति के ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने बहुत कम समय सत्ता में रहते सामाजिक क्रांति की नींव रख दी थी।
जाति जनगणना पर महाराष्ट्र सरकार प्रस्ताव पास करने से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आदि को दलित व पिछड़ी जाति बताकर वंचित तबक़े का हितैशी होने का दावा करने वाली बीजेपी फँसती नज़र आ रही है।
जिस आरक्षण पर महाभारत होती रहती है उसे ही अपने यहाँ लागू नहीं करने के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम ने माँग की है। क्या सरकार झुकेगी?
यह संदेह होना लाज़मी है कि जनगणना क़रीब आते ही सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस का नाटक क्यों शुरू कर दिया है?
नागरिकता क़ानून तो बना दिया लेकिन भारत सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ‘सताए गए ग़ैर-मुसलमानों’ के लिए क्या इंतज़ाम करने जा रही है?
लंबे समय से यह कहा जा रहा है कि आरक्षण पाने वाले वंचित तबक़े के जो लोग समृद्ध हो गए हैं, उन्हें सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ न दिया जाए।
देश भर में बलात्कार की घटनाओं को देखकर लगता है कि 6 साल की बच्ची से लेकर 80 साल तक की दादी भी सुरक्षित नहीं हैं।
ज्योतिबा फुले की आज पुण्यतिथि है। आधुनिक भारत में सबसे पहले इस जाति आधारित काम के आरक्षण पर महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने धावा बोला।
आज पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुण्य तिथि है। क्यों याद करना चाहिए विश्वनाथ प्रताप सिंह को? क्यों उन्हें वंचितों का मसीहा के तौर पर देखा जाता है?
जेएनयू में फ़ीस बढ़ोतरी को लेकर विद्यार्थियों में उबाल है। देश भर में कई संस्थान हैं जहाँ छात्रों पर लाठियों-डंडों से हमले हुए हैं। सरकारों की ज़िम्मेदारी है मुफ़्त शिक्षा देने की, तो उनपर लाठी-डंडे क्यों बरसाए जा रहे हैं?
जेएनयू में फीस बढ़ने के डर से वंचित तबके के विद्यार्थी घबराए हुए हैं कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हें बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ जाए लेकिन पुलिस उन्हें पीट क्यों रही है?
भारत ने आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। डेरी उत्पादों पर आशंका है कि देश के किसान बर्बाद हो जाएँगे। आख़िर क्यों न्यूज़ीलैंड से जैसे छोटे देश के आगे टिकने के काबिल नहीं हैं?
आख़िर क्यों कुछ युवकों ने महात्मा गाँधी की प्रार्थना सभा का विरोध किया। विरोध पर गाँधी प्रार्थना सभा छोड़कर चले जाते थे लेकिन अगले दिन वह फिर पहुंच जाते थे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल पटेल ने गाँधी के सपनों का भारत बनाने की दिशा में देश के एकीकरण के लिए अथक प्रयास किये और इसीलिए उन्हें लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है।
अगर मौजूदा कामकाजी आबादी का सही उपयोग न हुआ तो देश जनसांख्यिकीय लाभांश गँवा देगा। क्योंकि देश के शहरी इलाक़े और कई राज्य चीन की तरह ही बूढ़े होने की ओर बढ़ रहे हैं।
बढ़ती बेरोज़गारी, भयावह मंदी और आर्थिक कुप्रबंधन के बीच अब सरकार ने यह बताना शुरू कर दिया है कि बढ़ती जनसंख्या मुसीबत है और वह इसमें कुछ नहीं कर सकती।
बिहार में उपचुनाव के परिणाम से बीजेपी नेताओं को यह कहने का मौक़ा मिला है कि मोदी के नेतृत्व को जनता ने स्वीकार किया है, लेकिन नीतीश के नेतृत्व को खारिज कर दिया है।
कांग्रेस को अनुशासन पर खास जोर देने की ज़रूरत है, जिससे नेताओं की बयानबाजियों की वजह से पार्टी में निराशा का माहौल न बने।
अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और ख़ासकर उनकी पत्नी एस्थर डफ्लो का मानना है कि आरक्षण दिए जाने से वंचित तबक़े को प्रतिनिधित्व मिला है।
बूढ़े, दुबले-पतले 78 साल के गाँधी ने अपनी हत्या के 16 दिन पहले जो सपना भारत के लिए देखा था, उससे देश अभी भी बहुत दूर नजर आता है।
मध्य प्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की पीट-पीटकर हत्या करने की घटना से पता चलता है कि जातीय आधार पर एकता बनाना अब असंभव सा हो गया है।