देश की आज़ादी के पहले भारत में हिंदू और मुसलमान दंगे हुए। 15 अगस्त 1947 की सुबह जब लोग सो कर उठे तो पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में क़रीब 2,00,000 लोगों की हत्याएँ एक साल के भीतर हो चुकी थीं। लगातार हिंसा के बीच सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिल्ली आए पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली से 16 अगस्त 1947 को कहा कि पंजाब अवार्ड का एकमात्र समाधान है कि बड़े पैमाने पर आबादी का हस्तांतरण किया जाए। इस प्रस्ताव का जेबी कृपलानी ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि आबादी के हस्तांतरण की कोई ज़रूरत नहीं है, इसके घातक परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हिंसा रोकने में कामयाब होगा और लियाकत अली ने भी कहा कि वह हिंदुओं और सिखों के अधिकार की रक्षा करेंगे। माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
नागरिकता क़ानून: करोड़ों लोगों को भारत लाने से तो अव्यवस्था ही फैलेगी
- विचार
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- 20 Dec, 2019

नागरिकता क़ानून तो बना दिया लेकिन भारत सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ‘सताए गए ग़ैर-मुसलमानों’ के लिए क्या इंतज़ाम करने जा रही है?
बहरहाल, कुछ हज़ार और मौतों के बाद भारत सरकार इसके लिए सहमत हो गई और फ़ैसला किया गया कि पहले शरणार्थियों को जाने का मौक़ा दिया जाएगा, जिससे क़ानून-व्यवस्था बहाल हो सके। एक महीने बाद भारत और पाकिस्तान की सरकारें आबादी के हस्तांतरण के लिए सहमत हो गईं और 1948 के मध्य तक क़रीब 55 लाख ग़ैर-मुसलिम पश्चिमी पंजाब से भारत आए और इतने ही मुसलमान पूर्वी पंजाब से पाकिस्तान गए। यह आबादी हस्तांतरण कितना वीभत्स था, इसका वर्णन न सिर्फ़ इतिहास में, अमृता प्रीतम और सआदत हसन मंटो की कहानियों में, बल्कि ख़ुद सरदार वल्लभ भाई पटेल के उस दौर के भाषणों में भी मिलता है।