1975 का यह वह समय था जब गांधीवादी जननेता जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के नीतियों, कार्य शैलियों और उभरती अधिनायकवादी प्रवृत्तियों के प्रतिरोध में सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया गया था। इतना ही नहीं, जयप्रकाश जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित सार्वजनिक सभा के मंच से सेना, पुलिस, नौकरशाही से इंदिरा सरकार के गैर-संवैधानिक आदेशों पर अमल नहीं करने के लिए भी कहा था। कोई भी निर्वाचित प्रधानमंत्री इस स्थिति को सहन नहीं कर सकता था। (यदि कोई भी विपक्षी नेता या पत्रकार वर्तमान मोदी शासन के दौरान ऐसा कहने की हिमाक़त करेगा तो वह तुरंत ही ‘देशद्रोही, राष्ट्रद्रोही और राज्यद्रोही, ग़द्दार आदि तमगों से घिर जायेगा और गिरफ्तार कर लिया जायेगा।) प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, सम्पूर्णक्रांति के सूत्रधार के ऐसे विस्फोटक शब्दों को सहन नहीं कर सकीं और चंद घंटों के बाद ही आपातकाल की घोषणा कर दी गई। भारत के संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल के प्रावधान हैं:
इमरजेंसी: 1975 में इंदिरा ने क्यों थोपी देश पर आपातकाल की काली रात?
- विचार
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- 24 Jun, 2025

घोषित आपातकाल की आधी सदी हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी। बढ़िए, आपातकाल पर रामशरण जोशी के लेखों की शृंखला की दूसरी कड़ी।
- बाहरी आपातकाल
- आंतरिक
- वित्तीय
आधी रात को आपातकाल की घोषणा
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून की मध्यरात्रि को आंतरिक आपातकाल (internal emergency) की घोषणा की थी। संविधान के 352 -360 के अनुच्छेदों के अंतर्गत किन हालातों में आपातकालों को लगाया जा सकता है, इसका विवरण दिया गया है। आपातकाल में सरकार और नागरिक के अधिकार व कर्त्तव्य क्या होंगे, इसका भी उल्लेख है। आपातकाल की घोषणा और संसद से मंज़ूरी की क्या प्रक्रिया रहेगी, की भी व्यवस्था है। इंदिरा गाँधी ने संविधानप्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए आपातकाल की घोषणा की थी। इसके साथ ही प्रेस (तब प्रेस कहा जाता था, मीडिया नहीं) पर भी सेंसरशिप लाद दी गई थी। अब नागरिक के अभिव्यक्ति के अधिकार प्रभावित हुए थे। खुल कर बोलने-लिखने-पढ़ने-प्रकाशन पर पाबंदियां थीं।