दिल्ली को सबसे अच्छी तरह जानने और दिल्ली विधानसभा चुनाव को काफ़ी क़रीब से जानने के आधार पर कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में अपने क़द से काफी बड़ा स्थान रखने के बावजूद इतना वाहियात चुनाव प्रचार कहीं नहीं होता। बड़े मुद्दे बताते हुए दिल्ली राज्य सरकार के अधिकार और उसकी सीमाओं की चर्चा भी हो सकती है लेकिन यहां दिल्ली का यातायात (खासकर जाम की समस्या), दमघोंटू प्रदूषण, संसाधनों के दुरुपयोग (जिसमें सबसे ज्यादा नेताओं के प्रचार का खर्च अखरता है), गंदगी के साम्राज्य, अपराधों की भरमार, बेतहाशा शराबखोरी और महंगाई-बेरोजगारी चुनावी मुद्दे बनते ही नहीं। यहाँ कोई व्यवस्थित नीति बने, यह चर्चा सिरे से ग़ायब है- जबकि पुरबिया प्रेम अचानक सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। उसमें जरा-सी चूक या मन के तह में बैठे पुरबिया द्वेष के बाहर आते ही बवाल मच जाता है- भाजपा के एक नामी प्रवक्ता तो ‘झाजी’ पर आपत्तिजनक बात कहकर शहीद भी हो चुके हैं।