दिल्ली को सबसे अच्छी तरह जानने और दिल्ली विधानसभा चुनाव को काफ़ी क़रीब से जानने के आधार पर कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में अपने क़द से काफी बड़ा स्थान रखने के बावजूद इतना वाहियात चुनाव प्रचार कहीं नहीं होता। बड़े मुद्दे बताते हुए दिल्ली राज्य सरकार के अधिकार और उसकी सीमाओं की चर्चा भी हो सकती है लेकिन यहां दिल्ली का यातायात (खासकर जाम की समस्या), दमघोंटू प्रदूषण, संसाधनों के दुरुपयोग (जिसमें सबसे ज्यादा नेताओं के प्रचार का खर्च अखरता है), गंदगी के साम्राज्य, अपराधों की भरमार, बेतहाशा शराबखोरी और महंगाई-बेरोजगारी चुनावी मुद्दे बनते ही नहीं। यहाँ कोई व्यवस्थित नीति बने, यह चर्चा सिरे से ग़ायब है- जबकि पुरबिया प्रेम अचानक सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। उसमें जरा-सी चूक या मन के तह में बैठे पुरबिया द्वेष के बाहर आते ही बवाल मच जाता है- भाजपा के एक नामी प्रवक्ता तो ‘झाजी’ पर आपत्तिजनक बात कहकर शहीद भी हो चुके हैं।
दिल्ली चुनाव इतना अहम है तो चुनावी मुद्दे इतने वाहियात कैसे?
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025

दिल्ली चुनाव में इस बार जितनी आप के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति है उतनी ही बीजेपी के लिए भी। कांग्रेस के लिए भी दाँव पर कम नहीं लगा है। तो फिर वे वास्तविक चुनावी मुद्दे क्यों नहीं उठा रहे हैं?
चुनाव के समय अचानक पुरबिया समाज के महत्वपूर्ण होने के मसले की चर्चा से पहले यह देखना ज़रूरी है कि जैसे ही कोई गंभीर मसला उठता है, दोनों प्रमुख पक्ष एक-दूसरे को दोषी बताने का नाटक चलाकर चुप्पी साध लेते हैं। भाजपा शिक्षा का रोना रोएगी तो आप वाले प्रिंसिपल और अध्यापकों की नियुक्ति की फ़ाइल लाट साहब द्वारा रोके जाने की शिकायत करेंगे।