पश्चिम बंगाल में अमित शाह का कथित घुसपैठियों को बाहर निकालने का दावा चुनावी मुद्दा बन गया है, जबकि असम में 19 लाख से अधिक लोगों को एनआरसी से बाहर रखे जाने के बाद भी उन्हें हटाया नहीं जा सका- क्या वजहें हैं?
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले 'घुसपैठिये' का मुद्दा खड़ा करने की कोशिश हो रही है। बंगाल के दौरे पर पहुँचे गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो हर घुसपैठिये को चुन-चुनकर बाहर निकाल देंगे और घुसपैठ पूरी तरह खत्म कर देंगे। लेकिन इस दावे पर सवाल उठ रहे हैं। ये इसलिए कि पिछले दस साल में मोदी सरकार के होने और खुद अमित शाह के गृहमंत्री रहने के दौरान घुसपैठिये के ख़िलाफ़ कार्रवाई उस तरह की नहीं रही है। आँकड़े बताते हैं कि मनमोहन सरकार में क़रीब 88 हज़ार घुसपैठिये को बाहर निकाला गया था, लेकिन मोदी सरकार में यह संख्या काफी कम है। असम में 2019 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स से बाहर हुए क़रीब 19 लाख लोगों को 6 साल बीत जाने के बाद भी नहीं निकाला जा सका है। तो क्या बंगाल से 'घुसपैठिये' को बाहर निकालने का शाह का वादा 'जुमला' है?
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए अमित शाह के बयान और घुसपैठियों पर आँकड़ों को विस्तार से देखना होगा। अमित शाह इन दिनों पश्चिम बंगाल के दौरे पर हैं, जहां 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। 29 दिसंबर को कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि टीएमसी बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपना वोट बैंक मानती है, लेकिन भाजपा हर घुसपैठिये को पहचानकर बाहर भेज देगी। उन्होंने बंगाल की जनसांख्यिकी बदलने का आरोप लगाया और कहा कि घुसपैठ से राज्य की संस्कृति और सुरक्षा को खतरा है।
शाह ने आगे कहा, 'हम हर घुसपैठिये को चुन-चुनकर बाहर निकालेंगे। सिर्फ पश्चिम बंगाल से नहीं, पूरे देश से।' उन्होंने लगातार कहा है कि सरकार 'डिटेक्ट, डिलीट, डिपोर्ट' की नीति पर काम कर रही है। उन्होंने ऐसा ही मुद्दा बिहार चुनाव के दौरान भी उठाया था और कहा था कि एनडीए की सरकार बनने पर बिहार से घुसपैठियों को बाहर भेजा जाएगा। हालाँकि, एनडीए सरकार बनने के बाद भी यह नहीं बताया गया कि बिहार में अब तक कितने घुसपैठियों को पहचाना गया या बाहर निकाला गया। चुनाव आयोग ने भी एसआईआर में साफ़ नहीं किया कि कितने घुसपैठिये मिले।
अक्टूबर महीने में अमित शाह के कार्यालय ने आधिकारिक एक्स खाते से एक पोस्ट में अमित शाह के बयान का हवाला देते हुए कहा था, 'भाजपा ने डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट के सूत्र को 1950 के दशक से स्वीकार किया है। हम घुसपैठियों को डिटेक्ट भी करेंगे, मतदाता सूची से डिलीट भी करेंगे और इस देश से डिपोर्ट भी करेंगे।' तब उनके इस दावे के जवाब में 'महुआ मोइत्रा फैन्स' नाम के एक यूज़र ने लिखा था, 'देश को बेवकूफ बनाना बंद करो! 2004-2014 के दौरान मनमोहन सिंह सरकार में- भारत से कुल 82000 अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकाला गया था। लेकिन 2014 से 2025 तक, मोदी सरकार ने भारत से सिर्फ़ 11902 अवैध प्रवासियों को ही देश से बाहर निकाला। तो 2014 से आपको पता लगाने, हटाने और देश से बाहर निकालने से कौन रोक रहा था? यह साफ़ है कि बीजेपी के राज में अवैध प्रवासियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।'
यूपीए vs मोदी सरकार: कितने घुसपैठिये बाहर भेजे गए?
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में 2005 से 2013 के बीच क़रीब 88 हज़ार बांग्लादेशी नागरिकों को निर्वासित किया गया था। हालाँकि, कुछ स्रोतों में आँकड़े इससे ज़्यादा और कम भी बताए जाते रहे हैं, लेकिन संख्या क़रीब-क़रीब इसके आसपास ही है।
नरेंद्र मोदी सरकार के शुरुआती वर्षों में औपचारिक निर्वासन काफी कम थे। 2014 से 2017 के बीच केवल 1822 बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजा गया। बाद के वर्षों में इस पर ध्यान ज्यादा रहा, खासकर घुसपैठियों के खिलाफ अभियानों के दौरान।
आधिकारिक कुल आँकड़े पूरी तरह अपडेट नहीं हैं, लेकिन कुछ स्रोतों में कहा गया है कि 2014 से 2025 तक क़रीब 11-12 हज़ार निर्वासन हुए। हालाँकि, 2025 में चल रहे देशव्यापी अभियान के तहत हजारों को वापस भेजा गया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस साल जब अभियान छेड़ा गया तो दिल्ली से क़रीब 2200, मुंबई से क़रीब 1000, पूर्वी सीमा पर 2000-3500 लोगों को भेजा गया। कुछ बीजेपी से जुड़े दावों में मोदी सरकार के दौरान 25000 से अधिक निर्वासन का ज़िक्र है, लेकिन इन आँकड़ों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। इस दौरान कई ऐसे लोगों को भी बांग्लादेश भेज दिया गया जिनके पास भारत के नागरिक होने के वैध दस्तावेज थे और उनको फिर वापस भारत में लेना पड़ा।
असम NRC: 19 लाख लोगों का क्या हुआ?
असम में 2019 में एनआरसी की अंतिम सूची जारी हुई थी। इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से करीब 19 लाख लोगों के नाम नहीं थे। बीजेपी ने कहा था कि असम से बांग्लादेशी घुसपैठिये को बाहर फेंक दिया जाएगा। लेकिन जब सूची आई तो इसमें बड़ी संख्या में हिंदू भी शामिल थे जिनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं थे कि वे भारतीय हैं। 6 साल बाद भी 19 लाख में से ज्यादातर को बाहर नहीं निकाला जा सका है।
कारण बताया जा रहा है कि एनआरसी से बाहर हुए लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का मौका मिलता है। यह एक अदालत जैसी व्यवस्था है। ज्यादातर लोग अभी अपील में फंसे हैं। ट्रिब्यूनल में फैसला आने के बाद ही डिपोर्टेशन होता है। इस बीच असम सरकार ने 2024 में कहा कि गैर-मुस्लिमों के खिलाफ फॉरेनर केस वापस लिए जाएंगे। एक दिक्कत यह भी आ रही है कि डिपोर्टेशन के लिए बांग्लादेश की सहमति जरूरी है। बांग्लादेश अक्सर इन लोगों को अपना नागरिक मानने से इनकार करता है। इससे प्रक्रिया रुक जाती है। कई रिपोर्टों में कहा गया कि कुछ लोग गलती से बाहर हुए हैं, जैसे दस्तावेजों की कमी की वजह से। अपील प्रक्रिया लंबी है और लोग डिटेंशन सेंटर में रखे जाते हैं, जहां हालात खराब हैं। 2025 तक हजारों अपीलें पेंडिंग हैं।
बहरहाल, अमित शाह का यह ताज़ा बयान बंगाल में घुसपैठ को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश लगता है। तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां इसे राजनीतिक स्टंट बता रही हैं। यह मुद्दा 2026 के बंगाल चुनाव में बड़ा रोल निभा सकता है। अमित शाह के बयान के बाद ममता बनर्जी ने इस पर जवाब हमलाकर इसका संकेत दे दिया है।