देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई पर चढ़ता अडानी ग्रुप का रंग अब थोड़ा और गहरा हो जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अडानी प्रॉपर्टीज़ प्राइवेट लिमिटेड को 36,000 करोड़ रुपये के मोतीलाल नगर रीडिवेलपमेंट प्रोजेक्ट को भी हरी झंडी दे दी। इससे पहले धारावी को लेकर भी अडानी ग्रुप को राहत मिली थी। माना जा रहा है कि पीएम मोदी के क़रीबी होने के नाते महाराष्ट्र सरकार नियम क़ानूनों को इस तरह से अडानी के पक्ष में तैयार करती है कि अदालतों आपत्तियाँ ठहर ही नहीं पातीं। यह सत्ता से पैसे और पैसे से सत्ता का खुला खेल है।
मोतीलाल नगर रीडिवेलपमेंट पर फ़ैसला
28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के गोरेगाँव (वेस्ट) में 143 एकड़ में फैले मोतीलाल नगर रीडिवेलपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर अडानी प्रॉपर्टीज़ को बड़ी राहत दी। इस प्रोजेक्ट की लागत 36,000 करोड़ रुपये है, और इसमें 3,372 रिहायशी इकाइयाँ, 328 वाणिज्यिक इकाइयाँ, और 1,600 झुग्गी-झोपड़ियों का पुनर्वास शामिल है। अडानी की कंपनी ने बोली में 3.97 लाख वर्ग मीटर निर्मित क्षेत्र महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) को देने का वादा किया है, जो उसकी प्रतिद्वंद्वी L&T के 2.6 लाख वर्ग मीटर के प्रस्ताव से अधिक था।
निवासियों की आपत्तियाँ
मोतीलाल नगर विकास समिति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उसके तर्क थे:
- पारदर्शिता की कमी: निजी डेवलपर की नियुक्ति की प्रक्रिया में पूरी जानकारी नहीं दी गई।
- स्वायत्तता का हनन: सहकारी समितियों को स्वतंत्र रूप से डेवलपर चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
- वाणिज्यिक शोषण का डर: बड़े पैमाने पर विकास से ज़मीन के दुरुपयोग का खतरा।
स्थानीय निवासियों की माँग थी कि MHADA प्रोजेक्ट को स्वयं संभाले या सहकारी समितियों को डेवलपर चुनने की अनुमति दे। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जुलाई 2025 को उनकी याचिका खारिज कर दी, और सुप्रीम कोर्ट ने भी विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर अडानी के लिए रास्ता साफ कर दिया। प्रोजेक्ट के तहत निवासियों को 1,600 वर्ग फुट के मुफ्त अपार्टमेंट और 5 एकड़ का सेंट्रल पार्क मिलेगा।