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मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया शामिल, चीन को बड़ा संदेश

हाल के सालों में भारत चीन से रिश्तों की संवेदनशीलता के मद्देनज़र ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने में हिचक रहा था। क्वाड और मालाबार के चारों साझेदार देशों के चीन के साथ कटु रिश्ते चल रहे हैं। चारों देश जनतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों में विश्वास करने और इनकी रक्षा करने के अलावा नियम- आधारित विश्व व्यवस्था के तहत काम करने को संकल्पबद्ध हैं। 
रंजीत कुमार
चीन से पिछले 5 मई से चल रही सैन्य तनातनी के बीच भारत ने बीजिंग को एक बड़ा सामरिक संदेश दिया है। भारत और अमेरिका के बीच 1992 से चल रहे साझा मालाबार नौसैनिक अभ्यास में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को भी चौथे साझेदार के तौर पर शामिल कर चीन को साफ कर दिया है कि राजनयिक स्तर पर 4 देशों का जो साझा राजनयिक मंच 'क्वाड' (चर्तुपक्षीय समूह) के नाम से बन चुका है, उसका अब सैन्य मंच भी होगा।

साझा नौसैनिक अभ्यास

हालाँकि फिलहाल मालाबार को चार देशों का सैन्य गठजोड़ कहना ग़लत होगा, लेकिन इसे इस दिशा में एक अहम कदम की संज्ञा दी जा सकती है। इसके पहले 2015 में भारत ने जापान को भी मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास में तीसरे  साझेदार देश का दर्जा दे कर नये उभरते सामरिक समीकरण का संकेत दिया था। तब से ही ऑस्ट्रेलिया इस साझा मालाबार अभ्यास में शामिल होने की कोशिश कर रहा था।
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हालांकि 13 साल पहले 2007 में बंगाल की खाड़ी में भारत ने 5 देशों के साझा मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को भी आमंत्रित किया था। उसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और सिंगापुर शामिल हए थे। 
बाद में चीन ने इस पर सख्त एतराज जाहिर किया था। इसके बाद मालाबार भारत अमेरिका के बीच द्विपक्षीय स्तर तक सीमित कर दिया गया। इस बार मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास अगले महीने बंगाल की खाड़ी में आयोजित होगा।

चीन को आपत्ति क्यों?

हाल के सालों में भारत चीन से रिश्तों की संवेदनशीलता के कारण ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने में हिचक रहा था। क्वाड और मालाबार के चारों साझेदार देशों के चीन के साथ कटु रिश्ते चल रहे हैं। चारों देश जनतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों में विश्वास करने और इनकी रक्षा करने के अलावा नियम- आधारित विश्व व्यवस्था के तहत काम करने के लिए कृतसंकल्प हैं। 
Australia to join malabar naval exercise, signal to China - Satya Hindi
दक्षिण चीन सागर में चीनी विमानवाहक पोत लियाओनिंगचाइनामिलिटरी.कॉम
चारों देश पिछले कुछ सालों से चीन से कहते आ रहे हैं कि वह अंतरराष्ट्रीय सागरीय इलाक़े में अंतरराष्ट्रीय सागरीय क़ानूनों का पालन करे, लेकिन चीन लगातार इस विश्व व्यवस्था का अनादर ही करता रहा है। इसके पहले कि दक्षिण और पूर्वी चीन सागर के इलाक़ों पर चीन अपनी सैन्य ताक़त के बल पर पूरा दबदबा स्थापित कर ले, चारों देशों के लिये ज़रूरी हो गया था कि वे एक साझा मंच बनाकर अपने सामरिक और आर्थिक हितों की रक्षा करें।
अब जबकि चीन न केवल भारत बल्कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ रिश्तों में दादागिरी दिखाने में संकोच नहीं कर रहा है, भारत पर दबाव बढ़ गया है कि वह चीन की विस्तारवादी नीतियों को चुनौती देने वाले गुट को आगे बढ़ाए।

'इंडो-पैसिफ़िक नाटो'?

बीते 13 अक्टूबर को ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने क्वाड के इन चार देशों द्वारा तोक्यो में 10 अक्टूबर को साझा बैठक करने को 'इंडो-पैसिफ़िक नाटो' (अमेरिकी अगुवाई वाले यूरोपीय देशों के सैन्य संगठन) की ओर बढने की आशंका जाहिर की थी। चीन को पता है कि ये चारों देश क्यों चीन के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं।
मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास को चारों देशों ने क्वाड से जोड़ कर नहीं बताया है। लेकिन इसमें शामिल चारों देश चूंकि क्वाड के सदस्य हैं, इसलिये संकेत साफ है कि मालाबार क्वाड का सैनिक विस्तार ही होगा। 
फ़िलहाल ये देश साझा अभ्यास कर नौसेनाओं के बीच तालमेल और समन्वय विकसित करने की प्रक्रिया में हैं, लेकिन भविष्य में जब क्वाड को चीन की चुनौती का मुक़ाबला करने का वक्त आएगा, तब स्वाभाविक है कि मालाबार के चारों देश एकजुट हो जाएं।

तोक्यो बैठक

याद दिला दें कि दो सप्ताह पहले ही क्वाड के विदेश मंत्रियों की तोक्यो में बैठक हुई थी, जिसमें भारत के अलावा जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भाग लेकर चीन को इशारों में सचेत किया था कि उसकी आक्रामक और विस्तारवादी समर नीति के ख़िलाफ़ चारों देश एकजुट हो रहे हैं।
हालांकि क्वाड बनाने की पहल 2017 में मनीला में आसियान शिखर सम्मेल के दौरान हुई थी जब चारों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों ने इसमें अपने देशों की अगुवाई की थी। लेकिन चारों देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक पिछले साल ही न्यूयार्क में हुई थी। 
ऐसा पहली बार हुआ कि तोक्यो में चारों देशों के विदेश मंत्री ख़ासकर इस बैठक के लिये कोरोना महामारी के बावजूद शारीरिक मौजूदगी के लिये तैयार हुए। इससे नवगठित क्वाड की अहमियत समझी जा सकती है। क्वाड के विदेश मंत्रियों की तोक्यो बैठक में ही मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के मसले पर चर्चा कर मंजूरी दी गई थी।  

भारत-अमेरिका रिश्ते

भारत और अमेरिका के बीच 1992 में जब मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास शुरु हुआ था तब शीतयुद्ध का दौर ख़त्म हो गया था और भारत- अमेरिका के बीच मालाबार दि्वपक्षीय अभ्यास के बारे में कहा जाने लगा था कि सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत अमेरिका से नज़दीकी बनाना चाहता है। तब मालाबार द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को लेकर सामरिक जगत में सनसनी यह कह कर फैली थी कि शीतयुद्ध के समापन के बाद भारत सोवियत संघ के नये अवतार रूसी महासंघ से अपने रिश्तों को शीतयुद्ध के ढर्रे पर आगे नहीं बढाएगा।  
मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करने का ऐलान करते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि भारत समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में साथी देशों के साथ आपसी सहयोग का दायरा बढाना चाहता है। इसीलिये ऑस्ट्रेलिया के साथ बढे हुए सहयोग के मद्देनज़र मालाबार-2020 में आस्ट्रेलियाई नौसैना को इसमें भाग लेने का निमंत्रण भेजा गया।

सामरिक समन्वय

कोरोना महामारी के ख़तरे की वजह से इस साल यह अभ्यास समुद्र में बिना किसी सम्पर्क के आयोजित होगा।  इस अभ्यास से मालाबार साझा अभ्यास में भाग ले रही नौसेनाओं के बीच बेहतर तालमेल हो सकेगा। इससे अपने समुद्री इलाक़े में बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। इस अभ्यास से नियम- आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
मालाबार के तरह चारों देश एकजुट होकर जब नौसैनिक अभ्यास करेंगे तो इसका विशेष संदेश चीन को मिलेगा। चीन समझेगा कि उसकी विस्तारवादी नीतियों को चुनौती देने के लिये दुनिया के चार शक्तिशाली देश इकट्ठे हो रहे हैं।
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रंजीत कुमार
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