महिलाएँ भारत के लोकतंत्र के लिए उतनी ही ज़िम्मेदार और भागीदार हैं जितना कि पुरुष। जिस संविधान ने स्त्री और पुरुष को बराबर का नागरिक माना है, वह उसी स्वतंत्रता संग्राम की उपज है जिसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। मताधिकार के लिए दुनिया भर में महिलाओं ने अभूतपूर्व संघर्ष किया है और चुनने या चुने जाने की इस व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी का स्तर लोकतंत्र की परिपक्वता का मानक है। लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नज़र में यह महिलाओं के स्तर पर की जानी वाली कोई गोपनीय कार्रवाई है और अगर मतदान की क़तार पर महिलाओं के खड़े रहने का वीडियो सार्वजनिक होना बहू, बेटियों की निजता का उल्लंघन है। जिस दौर में महिलाएँ खेल के मैदान से लेकर जंग के मैदान तक में नाम कमा रही हों, उस दौर में ऐसा बयान वही दे सकता है जिसके दिमाग़ में संविधान नहीं स्त्री को गुलाम समझने वाली मनुस्मृति गूँजती हो। दूसरी वजह यही हो सकती है कि वोट चोरी के आरोपों से बचने के लिए ज्ञानेश कुमार महिलाओं की निजता को ढाल बनाने की हास्यास्पद कोशिश कर रहे हैं