महिलाएँ भारत के लोकतंत्र के लिए उतनी ही ज़िम्मेदार और भागीदार हैं जितना कि पुरुष। जिस संविधान ने स्त्री और पुरुष को बराबर का नागरिक माना है, वह उसी स्वतंत्रता संग्राम की उपज है जिसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। मताधिकार के लिए दुनिया भर में महिलाओं ने अभूतपूर्व संघर्ष किया है और चुनने या चुने जाने की इस व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी का स्तर लोकतंत्र की परिपक्वता का मानक है। लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नज़र में यह महिलाओं के स्तर पर की जानी वाली कोई गोपनीय कार्रवाई है और अगर मतदान की क़तार पर महिलाओं के खड़े रहने का वीडियो सार्वजनिक होना बहू, बेटियों की निजता का उल्लंघन है। जिस दौर में महिलाएँ खेल के मैदान से लेकर जंग के मैदान तक में नाम कमा रही हों, उस दौर में ऐसा बयान वही दे सकता है जिसके दिमाग़ में संविधान नहीं स्त्री को गुलाम समझने वाली मनुस्मृति गूँजती हो। दूसरी वजह यही हो सकती है कि वोट चोरी के आरोपों से बचने के लिए ज्ञानेश कुमार महिलाओं की निजता को ढाल बनाने की हास्यास्पद कोशिश कर रहे हैं।
मताधिकार के लिए महिलाओं के संघर्ष का अपमान है ज्ञानेश कुमार का ‘बहू-बेटी' बयान!
- विश्लेषण
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- 18 Aug, 2025

SIR: सटीक मतदाता सूची या 'चुनाव की चोरी', सीईसी के तर्क में कितना दम?
ज्ञानेश कुमार के ‘बहू-बेटी’ बयान पर विवाद गहराया। क्या यह महिलाओं के मताधिकार और उनके लंबे संघर्ष का अपमान है? जानें राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और सामाजिक असर।
ज्ञानेश कुमार का विवादास्पद बयान
17 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी की उस माँग का जवाब दिया कि मतदान केंद्रों की वीडियो रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की जाये। राहुल गांधी का कहना है कि वीडियो रिकॉर्डिंग से यह साफ हो सकता है कि पिछले कुछ चुनावों में शाम 5 बजे के बाद मतदान प्रतिशत में अचानक 7-8% की वृद्धि कैसे हुई। जवाब में ज्ञानेश कुमार ने उल्टा सवाल किया- "क्या हमें किसी की माँ, बहू-बेटी के सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करने चाहिए?"