loader

बंगाल पंचायत चुनाव - भाजपा के लिये अशुभ संकेत 

बंगाल में पंचायत चुनावों में भी मुख्य विपक्षी दल भाजपा सत्तारूढ़ टीएमसी के मुकाबले खड़ी नहीं हो सकी । विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के लिए ये एक निराशापूर्ण खबर है ।  बंगाल  में पंचायत चुनाव हमेशा की तरह खून से लाल हुए लेकिन भाजपा, कांग्रेस और वामपंथियों के लिए इन चुनावों में कोई शुभ संकेत नहीं मिला । काश इन विपक्षी दलों में से कोई एक भी यदि ममता सरकार को चुनौती दे पाता तो शायद बंगाल की तासीर में कुछ न कुछ तब्दीली जरूर आती।

बंगाल में चुनावों और हत्याओं का रिश्ता बहुत पुराना हो चला है ।  1970  के आसपास शुरू हुई ये हिंसा आज भी बंगाल में लोकतंत्र के चेहरे को बदरंग करती है ।  पंचायत चुनाव परिणाम हालांकि तृणमूल की एक उपलब्धि  है किन्तु उन्हें राज्य के खूनी चरित्र में तबदीली के लिए कुछ करना चाहिए। दुर्भाग्य ये है कि  कांग्रेस के बंगाल से उखड़ने  के बाद से शुरू हुई हिंसा का मुकाबला ममता ने भी हिंसा से किया और भाजपा ने भी।

ताजा ख़बरें

पंचायत चुनाव इस बात का प्रमाण होते हैं कि  राज्य में किस पार्टी की जड़ें ग्राम स्तर तक है।  हालांकि अभी सम्पूर्ण नतीजे नहीं आये है लेकिन अब तक मिले परिणामों से जाहिर है की ममता की पकड़ राज्य की राजनीति पर अभी बरकरार है। उन्होंने भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह अपना प्रभामंडल बना रखा है। इस मामले में ममता देश के दूसरे राज्य के मुख़्यमंत्रियों से इक्कीस ही साबित हुई ।  मध्यप्रदेश में भाजपा की पकड़ ममता जैसी नहीं बची है। बंगाल में ग्राम पंचायत की कुल 63229 सीटों के लिए चुनाव कराये गए थे इन में से तृणमूल ने अब तक 31235 पर या तो जीत दर्ज की है अथवा बढ़त बनाए हुई है।

राज्य में अब तृणमूल के लिए भाजपा ही एकमात्र प्रतिद्वंदी पार्टी बची है। भाजपा भी यदि लगातार विधानसभा चुनाव न हारती तो मुमकिन था कि उसकी ताकत बंगाल में और बढ़ती । हाल की मणिपुर हिंसा का असर भी कमोवेश बंगाल के पंचायत चुनावों पर पड़ा है । यदि भाजपा की डबल इंजन की सरकार मणिपुर में हिंसा रोक लेती तो आज भाजपा को हिंसा के मुद्दे पर ममता को घेरने का स्वर्ण अवसर मिल जाता । आखिर भाजपा किस मुंह से बंगाल में हिंसा की निंदा करे ? बंगाल की हिंसा मणिपुर की हिंसा के सामने बहुत नगण्य है। बंगाल के पंचायत चुनावों में 19 लोग मारे गए जबकि मणिपुर में ये आंकड़ा 100 को पार कर चुका है।

मुमकिन है कि  आपको बंगाल की हिंसा की तुलना मणिपुर की हिंसा से करना असंगत लग रहा हो, तथापि इससे बचा नहीं जा सकता। राज्यों में क़ानून और व्यवस्था का जिम्मा राज्य सरकारों  का ही होता है ।  इसलिए हिंसा को रोकना या उसमें नाकाम रहने का श्रेय या अपयश भी राज्य सरकार को ही झेलना पड़ता है। पंचायत चुनावों में तृणमूल की कामयाबी से ममता बनर्जी के नंबर उतने नहीं बढ़ते जितने की बढ़ने चाहिए थे ।  उन्हें विपक्षी एकता की सहनायिका बने रहने के लिए भविष्य में और मेहनत करनी पड़ेगी। बंगाल में ममता ही हैं जो अपनी मातृ संस्था कांग्रेस को जड़ें नहीं जंमाने दे रही ।

संयोग से केंद्रीय राजनीति में उन्हें कांग्रेस के पीछे ही खड़े होने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि उनकी पार्टी आज भी राष्ट्रीय राजनितिक दल की हैसियत हासिल नहीं कर सके है । तृणमूल से ज्यादा हैसियत तो आज की चुनावी राजनीति में आम आदमी पार्टी की है । आप की कम से कम दो राज्यों में सरकार तो है । आप के पास राष्ट्रीय दल का तमगा तो है।

भाजपा कर्नाटक और बंगाल हारने के बाद अब मध्यप्रदेश,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ ,तेलंगाना और एक छोटे से पूर्वी राज्य को जीतने के लिए चुनावी समर में जुटी हुई है। भाजपा का चुनावी उत्साह देखते ही बनता है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से ज्यादा मेहनत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह करते नजर आते हैं। इनके मुकाबले कांग्रेस की तैयारियां फीकी नजर आतीं हैं ,हालांकि हैं नहीं। भाजपा को रोकने की कोशिशें भी इस बीच जारी हैं हालांकि भाजपा ने उन्हें भी कमजोर करने के लिए अपनी रणनीति के तहत काम किया और महाराष्ट्र में  एनसीपी   को दोफाड़ कर दिया।

आने वाले महीने दूसरे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले भाजपा के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है।  इस साल के अंत में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं उनमें से अधिकाँश में भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला है ।  केवल दो राज्यों में उसे क्षेत्रीय दलों के साथ दो-दो हाथ करना हैं। तेलंगाना में केसीआर यदि ममता बनर्जी की तरह असरदार साबित हुए तो दक्षिण  में भाजपा की आखरी उम्मीद भी जाती रहेगी। हिंदी पट्टी में भाजपा की हालत भी फिलहाल अजेय तो नहीं कही जा सकती। 

विश्लेषण से और खबरें

2018  में भी भाजपा को राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पराजय का सामन करना पड़ा था। बंगाल पंचायत चुनाव परिणाम भाजपा को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार का एक और अवसर दे रहे हैं। भाजपा को विधानसभा चुनावों में यूपीसीसी के बजाय अपने आपको स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित करना होगा अन्यथा उसे फिर निराशा का समान कर पड़ सकता है ,क्योंकि ध्रुवीकरण की हवा अब निकलने लगी है ।  

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें