25 दिसंबर को पूरी दुनिया में ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया गया लेकिन इस दौरान भारत में जो हुआ, उसने देश की प्रतिष्ठा को बुरी तरह गिराया। दुनिया भर के अख़बारों में इस दौरान भारत में चर्चों और ईसाइयों पर हमले की ख़बर सुर्खियाँ बनीं। दुनिया हैरान है कि बुद्ध और गाँधी के देश में ये हो क्या रहा है। हैरानी की बात ये भी है कि देश की इज़्ज़त को धूल धूसरित करने वाले लोग ख़ुद को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी कहते हैं। और इन लोगों की हरकतों से विदेश में रहने वाले हिंदुओं को वहाँ के कट्टरपंथियों की नफ़रत का शिकार होना पड़ा रहा है।
ईसा मसीह को जब सलीब पर चढ़ाया गया तो उन्होंने ऐसा करने वालों को भला-बुरा नहीं कहा। यीशु ने कहा कि 'हे प्रभु इन्हें क्षमा करना, वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।’ यीशु की कहानी करुणा, क्षमा और बलिदान की अमर गाथा है। ईसाई तो उन्हें ईश्वर का बेटा ही माते हैं, लेकिन जो ईसाई नहीं हैं, उनके लिए भी यीशु का महत्व कम नहीं है। स्वामी विवेकानंद तो उन्हें भगवान का दर्जा देते थे।
बेलूर मठ में 'क्रिसमस ईव’
पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले में मौजूद बेलूर मठ रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है। कोलकाता से क़रीब 16 कि.मी दूर हुगली के तट पर 40 एकड़ के इस विशाल परिसर में रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा देवी और स्वामी विवेकानंद को समर्पित मंदिर हैं।
इस मठ में हर साल धूम-धाम से 'क्रिसमस ईव’ मनायी जाती है। क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर पूरा मठ रोशनी से जगमगा जाता है। ईसा मसीह की शिक्षाओं पर चर्चा होती है और क्रिसमस कैरल यानी भजन गाये जाते हैं। बेलूर मठ की स्थापना 1898-99 में हुई, जबकि क्रिसमस ईव को विशेष दिन मानने की परंपरा की जड़ 1886 दिसंबर को गाँव अंतपुर (हुगली जिला) में है।
रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के बाद नरेंद्रनाथ (बाद में स्वामी विवेकानंद) और उनके साथी अंतपुर में इकट्ठा हुए। एक ठंडी रात को धूनी (अग्नि) के पास बैठकर स्वामी जी ने पूरी रात ईसा मसीह के त्याग और जीवन पर प्रवचन दिया, और संन्यास लेने की प्रेरणा दी। सुबह पता चला कि वह रात क्रिसमस ईव थी।
इस घटना की स्मृति में रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस ईव को पवित्र दिन माना जाता है। बेलूर मठ में हर साल 24-25 दिसंबर को विशेष पूजा, कैरल गान, कैंडल लाइटिंग और ईसा मसीह व माता मेरी की पूजा होती है, जो सभी धर्मों की समानता के सिद्धांत का संदेश है।
विवेकानंद और यीशु
स्वामी विवेकानंद एक तरफ़ यीशु को भगवान का दर्जा देते थे तो दूसरी तरफ़ ये भी कहते थे कि वेदांती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के मेल में ही भारत का भविष्य है। पश्चिम ने स्वामी विवेकानंद के ज़रिए हिंदू धर्म के उदात्त चरित्र को समझा और सराहा। महात्मा गाँधी की शहादत में उसने ईसा मसीह की विरासत के दर्शन किये। लेकिन वो भारत अब नहीं रहा।
बीते एक दशक में भारत गाँधी नहीं गोडसे समर्थकों के उत्पात से नयी पहचान बना रहा है।
2025 में क्रिसमस के पहले से ही ईसाइयों पर हमले सुर्खियाँ बनने लगे थे-
- मध्य प्रदेश: जबलपुर में 20-22 दिसंबर को दो बार प्रार्थना सभाओं पर हमला। एक वीडियो में बीजेपी की स्थानीय नेता अंजू भार्गव एक दृष्टिबाधित महिला से बदसलूकी करती नजर आईं।
- छत्तीसगढ़: कांकेर में चर्च जला दिए गए, घरों पर हमला। रायपुर में मॉल की क्रिसमस सजावट को नष्ट किया गया।
- उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा: कैरल सिंगिंग रोकी गयी, प्रार्थना सभाओं को बाधित किया गया। धर्म परिवर्तन के झूठे आरोप लगाये गये।
- केरल: बच्चों के कैरल ग्रुप पर हमला।
- असम: क्रिसमस सेलिब्रेशन पर बैन की कोशिश।
ये हमले आमतौर पर हिंदुत्ववादी संगठनों जैसे बजरंग दल, VHP से जुड़े लोगों ने किये। हमले इन आरोपों के साथ हुए कि ईसाई धर्मांतरण करवा रहे हैं। लेकिन कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि ये आरोप ज्यादातर झूठे हैं, और इसका मकसद अल्पसंख्यकों को डराना है। बहरहाल, ऐसा करने वाले भूल जाते हैं कि ईसाइयों पर हमले की ख़बर भारत के अंदर ही नहीं, बाहर भी असर करती है। इस सिलसिले में जो वीडियो यहाँ वायरल हैं, वे पूरी दुनिया में देखे जा रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बनीं
ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द टेलीग्राफ (The Telegraph) ने 24 दिसंबर 2025 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका शीर्षक है "Hindu extremists try to shut down Christmas in India.”
इसमें बताया गया है कि हिंदुत्ववादी समूह चर्चों पर छापे मार रहे हैं, क्रिसमस उत्सव को बाधित कर रहे हैं और त्योहार की सजावट को तहस-नहस कर रहे हैं। रिपोर्ट में 2025 में हुए 600 से ज्यादा हमलों का जिक्र है और चुने हुए स्थानों पर हमले में आयी नाटकीय बढ़ोतरी करार दिया गया है।
'ईसाइयों पर अत्याचार' वाले देशों की रैंकिंग
इसी तरह ओपन डोर्स (Open Doors) ने भी ईसाइयों पर हमलों को लेकर गहरी चिंता जतायी है। यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी ईसाई संगठन है जिसकी स्थापना 1955 में हुई थी और इसका मुख्यालय एर्मेलो, नीदरलैंड्स में है। यह एक वैश्विक संगठन है, जिसके 25 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय कार्यालय हैं। यह संगठन दुनिया भर में सताए गए ईसाइयों की मदद करता है और हर साल वर्ल्ड वॉच लिस्ट जारी करता है, जिसमें ईसाइयों पर सबसे ज्यादा अत्याचार वाले देशों की रैंकिंग होती है।
ओपन डोर्स की जनवरी 2025 में जारी लिस्ट में दुनिया के 50 सबसे खराब देशों की रैंकिंग बतायी गयी थी। इसके मुताबिक ईसाइयों के सताने के मामले में भारत 11वें स्थान पर था। हालिया घटनाओं के कारण अगली लिस्ट में यह रैंक और गिरेगी।
दुनिया भर में भारत की ईसाई विरोधी घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर हो रही है। इसे "हिंदुत्व विजिलेंटिज्म" का नतीजा बताया जा रहा है। अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने 2025 रिपोर्ट में भारत को लगातार छठवें साल CPC यानी विशेष चिंता वाले देशों की सूची में डालने की सिफारिश की है। दूसरी तरफ़ ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों ने भी भारत में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों की निंदा की।
यूरोप में दिसंबर 2025 में यूरोपीय पार्लियामेंट में साउथ एशिया में ईसाइयों पर हमलों पर चर्चा के दौरान भारत में बढ़ती हिंसा पर चिंता जताई गयी।
हिंदुत्ववादी संगठनों का आरोप क्या?
हिंदुत्ववादी संगठनों का आरोप है कि चर्च धर्मांतरण कर रहे हैं जिससे ईसाइयों की आबादी बढ़ रही है। जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में ईसाई महज़ 2.78 करोड़ हैं यानी कुल जनसंख्या का 2.3%। केरल, तमिलनाडु, और नॉर्थ ईस्ट जैसे नगालैंड, मिजोरम, मेघालय में तुलनात्मक रूप से ज़्यादा हैं।
वैसे, भारत में ईसाई, इस धर्म के शुरुआती दिनों से ही हैं। कुछ किताबें तो ये भी दावा करती हैं कि ईसा मसीह भी भारत आये थे, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। प्रमाण इस बात का है कि भारत में सबसे पुराना चर्च परंपरा के अनुसार 52 ईस्वी में बना। यह थ्रिसूर ज़िले का पलायूर गाँव में बना चर्च है। कहते हैं कि ईसा मसीह के बारह प्रमुख शिष्यों में शामिल सेंट थॉमस केरल आये थे उन्होंन सात चर्चों की नींव रखी थी। पलायूर चर्चा इनमें प्रमुख हैं। पुर्तगालियों के आने (1498) से पहले ये चर्च मौजूद थे।
यानी ईसाई भारत में अरसे से रह रहे हैं। उन पर कभी इस तरह हमले नहीं हुए। फिर ऐसा क्या है कि अचानक ऐसे हमले बढ़े हैं। वजह है भारत का संविधान जो उन लोगों के निशाने पर है जो तमाम संयोगों से ताकतवर होकर भारत की सत्ता पर क़ाबिज़ हैं।
संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता
भारतीय संविधान के आर्टिकल 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता देते हैं। इसमें धर्म मानने के साथ-साथ धर्मप्रचार की भी आज़ादी है। प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द है यानी सभी धर्मों को बराबर सम्मान। कुछ लोग कहते हैं कि यह शब्द आपातकाल में इंदिरा गाँधी ने जोड़ा था लेकिन इसके पहले 1973 में ही ‘केशवानंद भारती केस’ में सुप्रीम कोर्ट धर्मनिरपेक्षता को संविधान का अभिन्न भाव बता चुका था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एसआर बोम्मई केस में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा बताया था।
बीजेपी राज में इसी संविधान पर चोट पहुँचाने की लगातार कोशिश हो रही है। कई संगठन भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की माँग खुलेआम करते हैं, इसके लिए रैलियाँ निकालते हैं। विश्व हिंदू परिषद से लेकर बजरंग दल जैसे संगठन तो पूरी तरह आरएसएस से जुड़े हैं जो केंद्र और राज्यों में सरकार चला रही बीजेपी की वैचारिक स्रोत है। हिंदू राष्ट्र के मूल में अन्य धर्मावलंबियों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना है। यही वजह है कि ईसाइयों पर हमला किया जा रहा है। कई वीडियो वायरल हैं जिनमें कहा जा रहा है कि ‘ईसाई विदेशी हैं, उनका भारत में क्या काम?’ ऐसा करने वालों को कोई डर भय नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि बीजेपी सरकार उनकी अपनी सरकार है। कोई कार्रवाई नहीं होगी। और ऐसा हो भी रहा है। यानी वे चर्चों में तोड़फोड़ करके या ईसाई नागरिकों पर हमला करके भी जेल से बाहर हैं।तो क्या सरकार चाहती है कि ऐसा होता रहे। प्रधानमंत्री मोदी क्रिसमस के अवसर पर चर्च गये। लेकिन ईसाइयों और चर्चों पर हमले के ख़िलाफ़ उन्होंने एक शब्द नहीं बोला। बीजेपी के कई नेता तो इन हमलों को सही ठहराते भी नज़र आये।
केरल में 21 दिसंबर 2025 की रात पलक्कड़ के पुडुस्सेरी क्षेत्र में एक RSS कार्यकर्ता (अश्विन राज) ने बच्चों के कैरल ग्रुप पर हमला किया और उनके वाद्य यंत्र तोड़े। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन केरल के बीजेपी राज्य उपाध्यक्ष सी. कृष्णकुमार ने अप्रत्यक्ष रूप से हमले को जायज ठहराया है। बीजेपी के दूसरे उपाध्यक्ष शोन जॉर्ज ने भी हमले को "अशोभनीय कैरल" बताकर अपराध को कम करने की कोशिश की।
ऐसी हरकतों का नतीजा है कि दुनिया भर में इस समय हिंदुस्तानियों ख़ासतौर पर हिंदुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत बढ़ रही है।
- Center for the Study of Organized Hate की 2025 रिपोर्ट: दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 तक X पर 128 हेट पोस्ट्स ट्रैक की गईं, जो 138 मिलियन व्यूज पा चुकी थीं।
- हिंदुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत मुख्य रूप से H-1B वीजा, इमिग्रेशन और स्टीरियोटाइप्स के आधार पर जतायी जा रही है।
- अमेरिका में ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन के टैरिफ विवाद और इमिग्रेशन डिबेट से नफरत बढ़ी।
- पजीट (Pajeet) जैसे शब्द मान्यता पा रहे हैं जो भारतीयों ख़ासतौर पर हिंदुओं के खिलाफ एक इंटरनेट स्लैंग और नस्लवादी गाली है।
सोशल मीडिया पर हिंदुओं को अक्सर खुले में शौच करने वाला बताया जाता है (जैसे "street shitter" या "poojeet")। हिंदुओं को गंदा, घोटालेबाज़ और कम बुद्धि वाला बताने की कोशिश की जाती है। यानी भारत में जो हो रहा है, वह विदेश में रहने वाले भारतीयों ख़ासतौर पर हिंदुओं की ज़िंदगी पर भारी पड़ रहा है।
दिवंगत शायर राहत इंदौरी के इस शेर का मतलब जितनी जल्दी समझ में आ जाये उतना बेहतर-
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है…!