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बेरोज़गारी पर फ़ज़ीहत से सरकार को बचाने के लिए नीति आयोग ने बोला था झूठ

31 जनवरी 2019 को राष्ट्रीय मीडिया (प्रिंट और टीवी) में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का बयान छपा, जिसमें कहा गया था कि 'बिज़नेस स्टैंडर्ड' समेत मीडिया के दूसरे हिस्सों में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस (एनएसएसओ) की जो रिपोर्ट छपी है वह सिर्फ एक ड्राफ़्ट है, अभी यह तैयार हो रही है, तैयार होते ही हम इसे जारी करेंगे।' 

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ अमिताभ कान्त ने भी यही दोहराया। उन्होंने उस ख़बर का खंडन किया जिसमें बताया गया था कि वर्ष 2017-18 में बेरोज़गारी बढ़ने की दर 45 वर्षों का रिकार्ड तोड़ कर सबसे ज्यादा हो गई है।

इसके बाद लगभग हर दूसरे दिन विभिन्न अख़बारों में सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पी.सी. मोहनन और विशेषज्ञ सदस्य जे. वी. मीनाक्षी, जिन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था, उनके हवाले से ख़बरें छपती रहीं। मोहनन के साक्षात्कार भी छपे, जिसमें पूरी प्रक्रिया समझाई गई थी। यह कहा भी गया था कि रिपोर्ट पूरी करके अनुमोदित की जा चुकी है और सरकार इसे छिपाये बैठी है, क्योंकि आँकड़े मन मुताबिक़ नहीं  हैं। एनएसएसओ के आँकड़े पहली बार तो सामने आए नहीं, हमेशा से आते रहे हैं। पर चूँकि इस बार आम चुनाव वर्ष होने के नाते सरकार वह हर बात छिपाने में लगी है जो उसको मतदाताओं  के सामने अक्षम साबित करे, तो इस लिहाज़ से यह बड़ी गंभीर बात थी। 
Did Niti Ayog deputy chief tell lies to defend government? - Satya Hindi
सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पी. सी. मोहनन ने इस्तीफ़ा दे दिया था।

पर जिस तरह नीति आयोग ने सामने आकर प्रेस कॉन्फरेंस कर रिपोर्ट को सीधे-सीधे नकार दिया था, उससे लोगों में दूसरी धारणा भी बन रही थी, जैसी आजकल लगभग हर मामले में बना दी जा रही है। 

सोमवार को लोकसभा में केंद्रीय श्रम व रोज़गार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने एक लिखित जवाब में संसद को बताया कि रोज़गार और श्रम शक्ति की संख्या की गणना करने वाली यह रिपोर्ट दिसंबर 2018 में ही मंज़ूर हो चुकी थी। मोहनन ने भी तो ठीक यही कहा था!

श्रम मंत्री गंगवार ने रिपोर्ट जारी न करने की वजह यह बताई कि अभी त्रैमासिक विवरण तैयार नहीं हो पाए हैं, इसलिए यह रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। इस लोकसभा का यह आख़िरी सत्र है, इसके बाद आम चुनाव ही हैं। जल्द ही आचार संहिता लग जाएगी और सरकार ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी।

फिर भी यह सवाल जीवित ही रहेगा कि नीति आयोग ने झूठ क्यों बोला?

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शीतल पी. सिंह
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