नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर कॉरपोरेट लूट को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हैं, लेकिन अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की एक रिपोर्ट भी बता रही है कि इस समय कॉरपोरेट मुनाफ़े ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। आरबीआई की अक्टूबर बुलेटिन के मुताबिक़ कोविड के बाद बीते चार सालों में कॉरपोरेट मुनाफ़ा तीन गुना बढ़ा है। यह सकल घरेलू उत्पाद के 4.7 फ़ीसदी तक पहुँच गया है जो 17 सालों में सर्वाधिक है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ वित्तीय वर्ष 2020-21 में कॉरपोरेट्स का कुल मुनाफा (नेट प्रॉफिट) 2.5 लाख करोड़ रुपये था, जो 2024-25 तक बढ़कर 7.1 लाख करोड़ रुपये हो गया – यानी लगभग तीन गुना। कॉरपोरेट मुनाफे में यह उछाल कई कारकों का नतीजा है:

दबी हुई माँग: कोविड के बाद लोगों ने खरीदारी बढ़ाई, जिससे बिक्री में तेजी आई, खासकर 2021-22 में।

लागत प्रबंधन: कंपनियों ने ऑटोमेशन और दक्षता बढ़ाकर खर्च कम किया।

सरकारी नीतियाँ: कॉरपोरेट टैक्स में कटौती (2019 में 30% से 22%), कम ब्याज दरें, और प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (PLI) स्कीम ने कंपनियों को राहत दी।
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जीडीपी रेशियो और कॉरपोरेट मुनाफा

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) देश में एक साल में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है, जो देश की आर्थिक ताकत को दर्शाता है। कॉरपोरेट मुनाफा से जीडीपी अनुपात (Corporate Profit to GDP Ratio) बताता है कि देश की कुल कमाई का कितना हिस्सा कंपनियों के मुनाफे में जा रहा है।  

वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत की जीडीपी 327.7 लाख करोड़ रुपये (लगभग USD 3.91 ट्रिलियन) है। आरबीआई के अनुसार, कॉरपोरेट मुनाफा जीडीपी रेशियो 4.7% है, जो 17 सालों में सबसे ऊँचा स्तर है। इसका मतलब है कि 15.40 लाख करोड़ रुपये कॉरपोरेट मुनाफे के रूप में जा रहा है।

समृद्धि या कॉरपोरेट लूट?

एक नज़र में कॉरपोरेट कंपनियों का मुनाफ़ा समृद्धि की ओर इशारा करता है लेकिन क्या इससे देश के आम लोगों के हालात बदल रहे हैं? मुनाफा मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों (जैसे बैंकिंग, ऑटो, एनर्जी) तक सीमित है, और छोटे व्यवसायों या आम आदमी को इसका सीधा फायदा नहीं मिल रहा। विपक्ष इसे "कॉरपोरेट लूट" कहता है और मोदी सरकार पर आरोप लगाता है कि वह कॉरपोरेट जगत का मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए नियमों के साथ भी खिलावड़ करती है। कुछ समय पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर एक बड़ा आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था-“ "नरेंद्र मोदी ने अपने अरबपति दोस्तों का 1,60,00,00,00,00,000 रुपये यानी 16 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया। इतने पैसे से 16 करोड़ युवाओं को 1 लाख रुपये प्रति वर्ष की नौकरी मिल सकती थी, 16 करोड़ महिलाओं को 1 लाख रुपये प्रति वर्ष देकर उनके परिवारों का जीवन बदल सकता था। 10 करोड़ किसान परिवारों का कर्ज माफ करके अनगिनत आत्महत्याओं को रोका जा सकता था। पूरे देश को 20 साल तक सिर्फ 400 रुपये में गैस सिलेंडर मुहैया कराया जा सकता था। भारतीय सेना का पूरा खर्च 3 साल तक वहन किया जा सकता था। दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के हर युवा के लिए स्नातक तक की शिक्षा मुफ्त की जा सकती थी। …जो धन 'भारतीयों' के दर्द को दूर करने में खर्च किया जा सकता था, उसे 'अडानी' जैसे लोगों के लिए प्रचार करने में खर्च किया गया।”
विश्लेषण से और

बढ़ती असमानता

भारत में असमानता तेजी से बढ़ रही है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब (2024) और ऑक्सफैम की "Survival of the Richest: The India Story" (2023, 2024 अपडेट) के अनुसार:

  • शीर्ष 1%: 22.6% राष्ट्रीय आय और 40.1% संपत्ति (औसत आय: 53 लाख रुपये/वर्ष)।
  • शीर्ष 10%: 57% राष्ट्रीय आय (औसत आय: 13 लाख रुपये/वर्ष)।
  • मध्यम 40%: 30% राष्ट्रीय आय (औसत आय: 1.65 लाख रुपये/वर्ष)।
  • निचले 50%: 13% राष्ट्रीय आय, 6% संपत्ति (औसत आय: 71,000 रुपये/वर्ष)।
  • Gini इंडेक्स: 2014 में 0.35-0.40 (आय आधारित), 2024 में 0.41। यह औपनिवेशिक काल (1930s, 20.7% शीर्ष 1% हिस्सेदारी) से बदतर है।

भारत में असमानता ख़तरनाक स्तर तक बढ़ गयी है। अभाव के महासमुद्र में समृद्धि के टापू कितने दिन तक टिकेंगे, कहना मुश्किल है। कॉरपोरेट मुनाफ़े के बावजूद मैन्यूफेक्चरिंग क्षेत्र उम्मीद से काफ़ी पीछे है और युवा बेरोज़गारी दर 29 फ़ीसदी तक पहुँच गयी है।

बदहाली की तस्वीर

भारत की अर्थव्यवस्था की चमक को लेकर मोदी सरकार के तमाम दावों को यह तथ्य मुँह चिढ़ाता है कि अस्सी करोड़ लोग पाँच किलो राशन के लिए सरकार पर आश्रित हैं। वहीं ग़रीबी, प्रतिव्यक्ति आय और भुखमरी के मानकों पर भी स्थिति अच्छी नहीं है।

गरीबी: ग्लोबल मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (MPI) 2024 में भारत सबसे अधिक प्रभावित देश है (234 मिलियन लोग, 16.4% आबादी)।

प्रति व्यक्ति आय: नॉमिनल $2,730 (2024, 136वाँ स्थान), PPP पर $8,379 (119वाँ स्थान)।

भुखमरी: ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2024 में 105वाँ स्थान (127 देशों में), स्कोर 27.3 ("गंभीर" श्रेणी)।

कॉरपोरेट्स पर मेहरबानी

पीएम मोदी के बीते 11 सालों में इस स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नज़र नहीं आता। हालाँकि कॉरपोरेट मुनाफे में सरकार की नीतियों का बड़ा हाथ है। मोदी सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म (चुनिंदा कंपनियों को फायदा) के आरोप हैं। उदाहरण:
  • टैक्स कट (2019): कॉरपोरेट टैक्स 30% से 22% घटाया, जिससे कंपनियों को अरबों का लाभ।
  • PLI स्कीम: ₹1.97 लाख करोड़ की सब्सिडी, जो बड़े कॉरपोरेट्स को ज्यादा मिली।
  • निजीकरण: एयरपोर्ट, पोर्ट, रेल का निजीकरण, जहाँ चुनिंदा कंपनियों को प्राथमिकता।
गौतम अडानी ने मोदी राज में ज़बरदस्त तरक़्क़ी की है। मोदी और गौतम अडानी का रिश्ता गुजरात से शुरू (2001)। मोदी CM बने तो अडानी को सस्ती जमीन (₹15/वर्ग मीटर) और SEZ छूट मिली। वाइब्रेंट गुजरात समिट (2003) में अडानी की प्रमुख भूमिका थी। 2014 में मोदी PM बने, अडानी की संपत्ति 230% बढ़ी ($26 बिलियन)।  
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सांप्रदायिक राजनीति

सरकार आर्थिक बदहाली और कॉरपोरेट लूट से ध्यान हटाने के लिए सांप्रदायिक मुद्दों (जैसे मंदिर-मस्जिद) को बढ़ावा देती है। इसके लिए तमाम जतन किये जाते हैं। ये संयोग नहीं कि बिहार चुनाव के ठीक पहले "द ताज स्टोरी” जैसी फिल्म, रिलीज़ की जा रही है जो ताजमहल को शाहजहाँ द्वारा बनवाये गये मोहब्बत की निशानी की जगह उसे तेजोमहालय मंदिर बताती है। सुप्रीम कोर्ट, ASI, यहाँ तक कि मोदी सरकार तक अतीत में ऐसे दावों को ख़ारिज कर चुके हैं लेकिन ताजमहल के नाम पर माहौल में तनाव घोलने की तैयारी की जा रही है। ऐसी न जाने कितनी फ़िल्मों को कॉरपोरेट संसाधन उपलब्ध कराता है। इस तरह पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे का खेल जारी रहता है।