भारत में इलेक्ट्रिक कैब सेवा स्टार्टअप जेनोसोल के ब्लूस्मार्ट के बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। कंपनी ने फंड का दुरुपयोग किया। भारत में किसी स्टार्टअप का इस तरह बंद होना, दुखद है। वो भी तब जब इनकी सफलता के किस्से सुनाए जा रहे थे।
भारत में इस समय 1.59 लाख से भी ज्यादा स्टार्ट अप काम कर रहे हैं जिनमें कुछ तो चमक रहे हैं और कुछ लुढ़क रहे हैं। ऐसा ही एक स्टार्ट अप है जेनोसोल जो ब्लू स्मार्ट के नाम से इलेक्ट्रिक कारों की कैब सर्विस बड़े शहरों में उपलब्ध करा रहा था। लेकिन अचानक ही खबर आई कि यह बंद हो गया। नतीजतन इसके 500 कर्मचारी, एग्जिक्युटिव और लगभग 10 हजार ड्राइवर सड़क पर आ गये हैं। कंपनी ने उन सभी से इलेक्ट्रिक कारें वापस मांग ली। इनकी तादाद 8700 थी। जिन निवेशकों ने इस कंपनी में पैसा लगाया वह डूबने के कगार पर है। इनमें तो दो सार्वजनिक प्रतिष्ठान हैं जिन्होंने इसे लोन दिया था। एक है प़ॉवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और दूसरा है इंडियन रिन्यूवैबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड। इन दोनों ने जेनसोल को इलेक्ट्रिक कारें खरीदने के लिए लगभग 978 करोड़ रुपये का लोन दिया था।
नीले-सफेद रंग की चमचमाती इलेक्ट्रिक कारें आप सभी ने देखी होगी जिन पर बड़े अक्षरों में लिखा होता था ब्लू स्मार्ट। आपने इनकी सवारी भी की होगी और पाया होगा कि इनकी सर्विस बेहतरीन है और ड्राइवर बहुत ही सभ्य तथा प्रशिक्षित। बेंगलुरु, दिल्ली और मुंबई में ये बड़ी तादाद में कैब के रूप में यात्रियों को उनके गंतव्य पर पहुंचा रही थीं। इनके रेट भी पॉकेट के अनुकूल थे और ये पहले से रिजर्व किये जा सकते थे। ग्राहकों की संतुष्टि में यह कंपनी अपने प्रतिद्वद्वियों से कहीं आगे थी।
जेनसोल ग्रुप के संस्थापक जग्गी बंधुओं तथा दो अन्य ने यह स्टार्ट अप शुरू किया था और उसमें अनमोल जग्गी चेयरमैन हैं। 2018 में बेंगलुरु में जेनोसोल समूह ने नई कंपनी ब्लू स्मार्ट की स्थापना हुई थी और धीरे-धीरे उबर तथा ओला को टक्कर देने लगी। कंपनी उन्हीं के पूरे नियंत्रण में थी और वह जैसा चाहते थे, वैसा ही होता था। उन्होंने आदेश दिया कि कंपनी के 500 कर्मचारी घर से काम करें। ऐसा ही हुआ लेकिन यह एक चाल थी ताकि समय पर कंपनी बंद कर दी जाये। कंपनी बंद करके उन कर्मियों को दो महीने की सैलरी तक नहीं दी गई। अब कई मीडिया संस्थान अनमोल जग्गी से पूछताछ कर रहे हैं लेकिन उन्होंने किसी ईमेल या फोन का जवाब नहीं दिया है और पर्दे के पीछे चले गये हैं।
बाजार नियामक सेबी ने न केवल इनकी जांच शुरू कर दी है बल्कि जग्गी बंधुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है कि वे शेयर बाजार में न उतरें। उसने अपने 29 पेज के अंतरिम आदेश में साफ कहा है कि निवेशकों के पैसे का दुरूपयोग और डयवर्जन हुआ है। पता चला है कि निवेशकों की 977.75 करोड़ रुपये की पूंजी को जग्गी बंधुओं पुनीत सिंह जग्गी और अनमोल सिंह जग्गी ने इधर-उधर कर दिया है। ये पैसे इलेक्टिरिक कारें खरीदने के लिए दिये गये थे।
सेबी ने कहा है कि जग्गी बंधुओं ने सेबी को बरगलाने का षडयंत्र किया है।.सेबी ने कहा है कि कंपनी ने रेटिंग एजेंसियों के फर्जी पत्र उसे दिये हैं। जग्गी भाइयों ने बिजनेस में लगाने के लिए दिये धन को बेदर्दी से उड़ाया। यह भी पता चला है कि भाइयों ने गुड़गांव के अति पॉश कैमेलिया हाउसिंग सोसायटी में 35 करोड़ का फ्लैट खरीदा है। उन्होंने 20-20 करोड़ रुपये अपने नजदीकी रिश्तेदारों को भी बांटा है। सेबी के आदेश के बाद दोनों भाइयों ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है लेकिन अब इससे ही काम चलने वाला नहीं है क्योंकि इन भाइयों के खिलाफ ईडी ने भी जांच शुरू कर दी है जिसका कहना है कि इन लोगों ने सट्टेबाजी के लिए कुख्यात बहुचर्चित महादेव बुक ऐप्प के जरिये पैसे अपने आईपीओ में लगाये थे। ईडी ने इनकी पैरेंट कंपनी जेवसोल के पांच लाख शेयरों को फ्रीज कर दिया है। इस कंपनी के शेयरों का हाल भी बुरा है। ये शेयर अपने अधिकतम रेट 1126 रुपये प्रति शेयर से गिरकर अब 106 रुपये पर जा पहुंचा है जिससे निवेशक सक्ते में हैं।
इस कंपनी में भारत सरकार के दो प्रतिष्ठानों ने भारी निवेश किया था। जेनसोल ने कुल 977.75 करोड़ रुपये का लोन लिया था। इसमें से 663.89 करोड़ रुपये 6,400 इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदे के लिए मुकर्रर किये गये थे लेकिन सेबी के मुताबिक कंपनी ने इस पैसे से सिर्फ 4.704 कारें खरीदीं। इनकी कीमत 567.73 करोड़ रुपये थी। यानी 262.13 करोड़ रुपये का कोई अता-पता नहीं है। शर्तों के मुताबिक जेनोसोल को इक्विटी में 20 फीसदी खर्च करना था जो उसने नहीं किया।
जेनोसोल में निवेश करने वालों में देश के मशहूर खिलाड़ी महिन्द्र सिंह धोनी, सुपर स्टार दीपिका पाडुकोण और भारत पे के अशनीर ग्रोवर भी हैं। बताया जा रहा है कि दीपिका ने 30 लाख डॉलर की फंडिंग की थी। ऐसा बताया जाता है कि पूर्व भारतीय कप्तान क्रिकेटर धोनी ने इस कंपनी में 400 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की फंडिंग की है। बजाज कैपिटल्स के एमडी संजीव बजाज ने भी 2019 में 30 लाख डॉलर की फंडिंग की थी।
निवेशकों के साथ इतनी बड़ी धोखाधड़ी का यह मामला हमें अतीत में हुए रैनबैक्सी घोटाले की याद दिलाता है जिसमें भी दो भाई मालविंदर सिंह और शिवेन्दर सिंह ने बहुत बड़ा फ्रॉड किया था और अब वे दोनों जेल में हैं। 2013 में इस धोखाधड़ी की परतें खुलीं और तब लोगों को इन भाइयों की कारगुजारी का पता चला। इन दोनों ने अमेरिका में भी धोखाधड़ी की थी जहां उन्हें मोटी रकम का जुर्माना भुगतने का आदेश दिया गया है। दिल्ली पुलिस के आर्थिक अपराध विंग ने 2397 करोड़ रुपये की हेराफेरी का आरोप इन लोगों पर लगाया था।
बहरहाल जेनोसोल की कहानी भारत के कॉर्पोरेट में सेक्टर में हुए बड़े घोटालों की एक दास्तान है। लालच और अति महत्वाकांक्षा ने एक नए स्टार्ट अप को विनाश की ओर धकेल दिया है। इसके प्रमोटर मुफ्त के पैसे से अय्याशी करना चाहते थे लेकिन अब उनकी जिंदगी में कांटे ही कांटे हैं।