चुनाव के दौरान मुफ्तखोरी के दावे करके तमाम राजनीतिक दल देश को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। इससे देश की तरक्की के रास्ते बंद नहीं होंगे, बल्कि बंद होंगे। आम आदमी पार्टी के संयोजक ने इसे सफलता का शॉर्टकट फॉर्म्युला मान लिया है, लेकिन वो गलतफहमी में हैं।
अर्थव्यवस्था का आईना समझा जाने वाला शेयर बाज़ार इस समय छलांगें लगा रहा है जबकि जीडीपी की दर माइनस में जा रही है। ऐसी मंदी कभी देखी नहीं गई थी और 2021 में भी इसके सुधरने के आसार कम ही हैं।
इन दिनों जब आप वाट्सऐप चैट खोलेंगे तो एक पॉप-अप आएगा जिसमें आपको कुछ शर्तें बताई जाएँगी और उन्हें मानने के लिए कहा जाएगा। अगर आप नहीं मानते हैं तो आपकी सर्विस 8 फ़रवरी से समाप्त।
आज किसानों के आंदोलन के समय भी एक तबक़ा तीन कृषि क़ानूनों का विरोध महज़ इस आधार पर कर रहा है कि इससे कॉर्पोरेट घरानों की ज़ेबें भरेंगी और किसान कंगाल हो जायेगा। कृषि क़ानून में कई ख़ामियाँ हैं।
नए कृषि क़ानूनों से क्या कृषि क्षेत्र में कार्पोरेट का बोलबाला हो जाएगा, कांट्रैक्ट खेती होने लगेगी और किसानों के हितों को भारी धक्का लगेगा? क्या सारा लाभ बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ले जाएँगी और किसान तथा छोटे व्यापारी देखते रह जाएँगे?
खाने के तेलों के दाम इतने बढ़ गए हैं कि लोगों की पहुँच से बाहर होते जा रहे हैं। हालत यह है कि सरसों का तेल जो ग़रीबों का खाद्य तेल माना जाता है खुदरा बाज़ार में डेढ़ सौ रुपए लीटर से भी ज़्यादा का हो गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में आशावादिता से भरा बयान आमजन को सुकून पहुँचा सकता है। उनका कहना है कि आँकड़े बता रहे हैं कि इसमें सुधार के बहुत लक्षण हैं।