हम हिंदुस्तानी इमोशनल होते हैं और इसलिए अतीत से ज़रा ज़्यादा ही जुड़े होते हैं। पिछले 30 वर्षों में भारत कितना बदल गया, यह बताने की ज़रूरत भी नहीं है लेकिन हम मानसिक रूप से अभी भी उसी युग में जी रहे हैं। हम इस बदलती दुनिया के मजे तो लेते रहते हैं लेकिन बातें करते हैं उसी सोशलिज़्म की जिसने एक सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया था। हर चर्चा में हम सोशलिज़्म की, अति ग़रीबी की, गाँवों की दुर्दशा की बातें करते हैं और यह भूल जाते हैं कि भारत में ग़रीबी रेखा से नीचे लोगों की तादाद तेज़ी से घटी है।