हम हिंदुस्तानी इमोशनल होते हैं और इसलिए अतीत से ज़रा ज़्यादा ही जुड़े होते हैं। पिछले 30 वर्षों में भारत कितना बदल गया, यह बताने की ज़रूरत भी नहीं है लेकिन हम मानसिक रूप से अभी भी उसी युग में जी रहे हैं। हम इस बदलती दुनिया के मजे तो लेते रहते हैं लेकिन बातें करते हैं उसी सोशलिज़्म की जिसने एक सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया था। हर चर्चा में हम सोशलिज़्म की, अति ग़रीबी की, गाँवों की दुर्दशा की बातें करते हैं और यह भूल जाते हैं कि भारत में ग़रीबी रेखा से नीचे लोगों की तादाद तेज़ी से घटी है।
किसान आंदोलन: सोशलिज़्म का भूत उतारिए
- विचार
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- 29 Dec, 2020

आज किसानों के आंदोलन के समय भी एक तबक़ा तीन कृषि क़ानूनों का विरोध महज़ इस आधार पर कर रहा है कि इससे कॉर्पोरेट घरानों की ज़ेबें भरेंगी और किसान कंगाल हो जायेगा। कृषि क़ानून में कई ख़ामियाँ हैं।
आज किसानों के आंदोलन के समय भी एक तबक़ा तीन कृषि क़ानूनों का विरोध महज़ इस आधार पर कर रहा है कि इससे कॉर्पोरेट घरानों की ज़ेबें भरेंगी और किसान कंगाल हो जायेगा। कृषि क़ानून में कई ख़ामियाँ हैं, उसे ठीक करने की ज़रूरत है पर समाजवादी सोच के आधार पर इसका विरोध जायज़ नहीं है।