इंडिगो फ्लाइट्स की अराजकता पांचवें दिन भी जारी है
भारत के विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था और विश्वगुरु होने का ढोल बजाने वाले मीडिया को आख़िरकार उन हवाई अड्डों की बदहाली दिखानी पड़ी जो इन दावों की पोल खोल रही थीं।बीते कुछ दिनों में वहाँ भूख और प्यास से परेशान यात्रियों की चीख पुकार और दवाओं से तड़प रहे बुज़ुर्गों की तस्वीर दिखी जो दुनिया भर में सुर्ख़ियाँ बनीं।
भारत के उड्डयन उद्योग में साठ फ़ीसदी हिस्सेदारी रखने वाली इंडिगो एयरलाइंस ने 550 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसल कर दीं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद – हर जगह यात्री हैरान-परेशान रहे। कोई शादी में नहीं पहुंच पाया, कोई मरीज इलाज के लिए लेट हो गया, तो कोई तय कार्यक्रम मिस कर बैठे। दिल्ली के IGI एयरपोर्ट पर तो सारी डिपार्चर ही बंद हो गये हजारों यात्री रात भर एयरपोर्ट पर फंसे। हैरानी की बात थी कि एयरलाइंस ने न भोजन का इंतज़ाम किया और न होटल का। लोग तय समय पर गंतव्य तक नहीं पहुँच सके। ऐसा लगा कि कोई जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा करना चाहता है।
दरअसल डायरेक्टर जनरल आफ सिविल एविशेन DGCA ने नवंबर 2025 से FDTL (Flight Duty Time Limitations) के फेज 2 लागू किए। ये नियम पायलट और क्रू की थकान रोकने के लिए हैं – दुनिया भर में ऐसे ही होते हैं।
ये नियम International Civil Aviation Organization ICAO (UN एविएशन बॉडी) से प्रभावित थे। दरअसल, इंडिगो जैसी एयरलाइंस, पायलटों से 3-4 गुना ज्यादा काम लेती हैं। नये नियमों को लागू करते ही पायलटों की कमी हो गयी। प्लानिंग की कमी से क्रू शॉर्टेज हो गया, और 2 दिसंबर से कैंसलेशन शुरू। वैसे ये नियम यात्रियों की सेफ्टी के लिए थे। माना जाता है कि पायलट थके रहेंगे तो यात्री जोखिम में रहेगी। लंबी जद्दोजहद के बाद ये नियम लागू हुए थे। लेकिन हवाई अड्डे पर त्राहि-त्राहि मचने के बाद सरकार ने यूटर्न ले लिया।
5 दिसंबर को, सिर्फ 2 दिनों के कैंसिलेशन के बाद, DGCA ने U-टर्न ले लिया! जनवरी 2025 का वो नियम वापस हुआ – जो कहता था 'लीव को वीकली रेस्ट से सब्स्टीट्यूट नहीं कर सकते'। अब एयरलाइंस लीव को रेस्ट गिन सकती हैं। फरवरी 10, 2026 तक FDTL के कुछ प्रावधान सस्पेंड कर दिया गया। यानी फिर वही स्थिति पैदा हो गयी जिस पर चिंतित होकर नियम बदले गये थे।
डीजीसीए के रुख़ पर पायलट यूनियन ने चेतावनी दी है-– 'ये सेफ्टी को कमजोर कर रहा है, थकान बढ़ेगी, पैसेंजर रिस्क पर!'
ये हैरानी की बात है कि सरकार इतनी जल्दी पलट जाये। ख़ासतौर पर जब यात्रियों की जान को ख़तरा हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि इंडिगो ने जानबूझकर ऐसी परिस्थिति पैदा की? नये नियमों को लागू करने के लिए दो साल का वक़्त मिला, लेकिन उसने कोई तैयारी नहीं की। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब मिलीभगत का नतीजा है? क्या ये एक तय स्क्रिप्ट थी? यानी अव्यवस्था दिखाओ ताकि सरकार को नियम स्थगित करने का मौक़ा मिल जाये। आख़िर इंडिगो अगर भारत के उड़ान क्षेत्र में साठ फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखता है तो उसके पीछे सरकार से मिला प्रोत्साहन और संरक्षण ही तो है।
ये वही सवाल है जो नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी कई सालों से उठा रहे हैं। उन्होंने एक्स पर अपना एक पुराना अखबारी लेख पोस्ट करते हुए लिखा- ‘इंडिगो फियास्को इस सरकार के मोनोपॉली मॉडल की कीमत है। एक बार फिर, आम भारतीयों को देरी, कैंसलेशन और बेबसी की सजा भुगतनी पड़ रही है। भारत को हर सेक्टर में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा चाहिए, मैच-फिक्सिंग वाली मोनोपॉली नहीं।'
राहुल ने लिखा था कि ईस्ट इंडिया कंपनी तो 150 साल पहले बंद हो गई, लेकिन आज नए मोनोपॉलिस्ट्स ने उसी डर को जन्म दिया है। इस बीच आयीं तमाम छोटी कंपनियाँ बंद हो गयीं और इंडिगो साठ फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्से पर क़ाबिज़ हो गया। राहुल इसे ही क्रोनी कैपिटलिज्म कहते हैं यानी याराना पूँजीवाद। इसमें कुछ चुनिंदा पूँजीपतियों को सरकार से ऐसा समर्थन मिलता है कि दूसरे प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते और धीरे-धीरे उनका एकाधिकार क़ायम हो जाता है। बदले में सत्ताधारी दल को अकूत धन मिलता है और पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे का ये खेल जारी रहता है। लेकिन मुनाफ़े के इस खेल में लोगों की जान जा सकती है। एक उनींदा पायलट सैकड़ों यात्रियों की ज़िंदगी दाँव पर लगा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कभी कहा था कि वे चाहते हैं कि हवाई चप्पल वाले हवाई जहाज़ से चलें। और यह सच है कि भारत दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ता एविएशन मार्केट है। मध्यवर्ग ने हवाईयात्रा करना शुरू किया:
- 2020 (कोविड): सिर्फ 37 मिलियन यात्री
- ग्रोथ रेट: 2021-25 में औसत 15-20% सालाना!
- 2025 में 7% ग्रोथ प्रोजेक्टेड – 160 मिलियन से ज्यादा।
छोटे शहरों में हवाई अड्डों के संचालन और उड़ानों की उपलब्धता का असर हवाई यात्रियों के इज़ाफ़े में साफ़ नज़र आ रही है। लेकिन इस ग्रोथ ने पायलटों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। कंपनियाँ नई भर्तियाँ न करके मौजूदा पायलटों पर ही बोझ डाल रही है।मुनाफ़े की हवस में वे भूल गयीं कि सेफ्टी के बिना ग्रोथ जहर है।
एविएशन इंडस्ट्री में पायलटों पर बढ़ते बोझ (जैसे लंबे ड्यूटी आवर्स, अनियमित शेड्यूल और कम रेस्ट) का सबसे बड़ा नतीजा थकान (fatigue) है। थकान सिर्फ थकावट नहीं, बल्कि एक गंभीर फिजियोलॉजिकल स्टेट है जो नींद की कमी, सर्कैडियन रिदम (शरीर की जैविक घड़ी) के डिसरप्शन और वर्कलोड से पैदा होता है। ICAO (इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) के अनुसार, ये मानसिक और शारीरिक परफॉर्मेंस को कम कर देता है, जिससे पायलट एरर का खतरा बढ़ जाता है। थकान पायलट की परफॉर्मेंस को धीरे-धीरे खराब करती है, जो उड़ान के दौरान घातक साबित हो सकती है। मुख्य प्रभाव ये हैं:
रिएक्शन टाइम धीमा होना: पायलट को इमरजेंसी में तुरंत रिएक्ट करने में देरी होती है। उदाहरण: NTSB (नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड) की रिपोर्ट्स में पाया गया कि थकान से रिएक्शन टाइम 67% तक प्रभावित होता है।
एकाग्रता और अटेंशन में कमी: प्रोसीजरल मिस्टेक्स, लैप्सेस इन अटेंशन (ध्यान भटकना) और फॉरगेटफुलनेस (भूल जाना) होता है। NASA की Aviation Safety Reporting System (ASRS) में 21.2% इंसिडेंट्स थकान से जुड़े पाए गए, जहां पायलट्स को घटनाओं का अनुमान लगाने में दिक्कत हुई। रिस्क टॉलरेंस बढ़ जाता है, और गलत फैसले लेने का चांस 30% तक बढ़ जाता है। उदाहरण: थकान से माइक्रो-स्लीप्स (कुछ सेकंड की अनजाने में नींद) आ जाते हैं, जो क्रिटिकल मोमेंट्स में दुर्घटना का कारण बनते हैं।
क्रू कम्युनिकेशन प्रभावित: टीमवर्क कमजोर होता है, जिससे क्रू मेंबर्स के बीच कॉर्डिनेशन फेल हो जाता है।
लॉन्ग-टर्म हेल्थ इफेक्ट्स: क्रॉनिक थकान से हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन और हार्ट प्रॉब्लम्स हो सकते हैं, जो पायलट्स की ओवरऑल फिटनेस को प्रभावित करते हैं।
ये नतीजे उड़ान की सेफ्टी, एफिशिएंसी और प्रोडक्टिविटी को खतरे में डालते हैं। FAA (फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन) के अध्ययन दिखाते हैं कि 13 घंटे से ज्यादा ड्यूटी पर एक्सिडेंट रिस्क 5.62 गुना बढ़ जाता है।एविएशन एक्सिडेंट्स 80% ह्यूमन एरर से होते हैं। इनमें 15-20% थकान से जुड़े होते हैं।
यानी पायलटों की कमी और उनकी थकान का सीधा संबंध यात्रियों की सुरक्षा से है। लेकिन कंपनी मुनाफ़े के लिए उन नियमों को लागू नहीं करना चाहती। सरकार को भी इसकी परवाह नहीं है। इंडिगो फ्लाइट्स को लेकर जो अफ़रातफ़री मची है वह कारपोरेट और सरकार की मिलीभगत का ऐसा नमूना है जो आम यात्रियों की ज़िंदगी की जरा भी परवाह नहीं करती।