प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘न्यू नार्मल’ रणनीति का उद्देश्य आतंकवाद पर सख्ती है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह नीति आतंकियों को भारत-पाक के बीच युद्ध जैसे हालात बनाने का अवसर दे सकती है। पढ़िए विश्लेषण।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए आतंकवाद के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई को नयी 'न्यू नॉर्मल’ नीति बताया। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया, इसका उदाहरण है। लेकिन क्या यह नीति भारत को हमेशा युद्ध मोड में रखेगी? क्या इससे सैन्य खर्च, अर्थव्यवस्था, और लोकतंत्र पर बुरा असर पड़ेगा? और क्या यह आतंकवादियों को भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू करने की ताकत दे देगा?
पीएम मोदी ने कहा, "ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के खिलाफ नई नीति खींची है। भारत पर आतंकी हमला हुआ तो मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा।" विशेषज्ञों ने इस नीति पर सवाल उठाए हैं। ब्रह्मा चेल्लानी का कहना है कि ‘युद्धविराम ने पाकिस्तान को आसानी से छोड़ दिया, जिससे वह और साहसी हो सकता है।’ प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा, "'न्यू नॉर्मल' राष्ट्रवादी उत्साह बढ़ाता है, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की छवि को नुकसान पहुंचाता है। भारत और पाकिस्तान को एक सांचे में देखा जा रहा है, जिससे भारत की रणनीतिक आजादी कम हुई है।"
मेहता आगे कहते हैं कि दक्षिण एशिया फिर से शीत युद्ध का मैदान बन गया है। चीन-पाकिस्तान गठजोड़ मजबूत हुआ है, और भारत अमेरिका पर निर्भर हो रहा है, जैसा कि ट्रंप के साथ मोदी के रिश्तों में दिखता है। ट्रंप ने दावा किया कि उनकी व्यापार बंद करने की धमकी से युद्धविराम हुआ, जिसने मोदी के भाषण को सवालों के घेरे में ला दिया।
'न्यू नॉर्मल' का मतलब है कि हर आतंकी हमले का जवाब सैन्य कार्रवाई हो सकता है। इससे कोई भी दुश्मन आतंकी हमला कराकर भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू कर सकता है। परमाणु धमकी से न डरने का ऐलान युद्ध को कहां ले जाएगा, कोई नहीं जानता। पाकिस्तान संविधानसम्मत राष्ट्र नहीं है; वहां सेना, सरकार, और जनता के बीच सहमति कम है। बलूचिस्तान में अलगाव का आंदोलन बढ़ रहा है। भारत का हमला पाकिस्तान को एकजुट कर सकता है, जिससे वहाँ भी राष्ट्रवाद की लहर उठेगी।
भारत में इस नीति के नतीजे में भारतीय सेना, वायुसेना, और बीएसएफ हाई अलर्ट पर रहेंगे, जिससे सैन्य खर्च बढ़ेगा।
2024-25 का रक्षा बजट 6.21 लाख करोड़ रुपये (2% जीडीपी) है। अगर यह 2.5-3% तक बढ़ता है, तो राजकोषीय घाटा (4.8% जीडीपी) और बढ़ेगा। इससे शिक्षा (2.8% जीडीपी), स्वास्थ्य (1.6% जीडीपी), और अनुसंधान (0.7% जीडीपी) जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे। चीन अनुसंधान पर 2.4% जीडीपी खर्च करता है, और भारत के पिछड़ने का खतरा है।
नीति आयोग की रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, 11.28% आबादी (15 करोड़ लोग) गरीबी में है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भारत 105वें स्थान पर है, और 14.96% आबादी कुपोषित है। 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर निर्भर हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च पहले से चुनौती है। ग्रोथ दर 6.4% (2024-25) अनुमानित है, लेकिन कई अर्थशास्त्री इसे 5-5.5% ही मानते हैं। सैन्य खर्च बढ़ने से सामाजिक संकट गहरा सकता है।
युद्ध मोड में सरकारें नागरिक अधिकारों की अनदेखी कर सकती हैं। भारत में UAPA और NSA जैसे कानून पहले से विवादास्पद हैं। NCRB (2023) के अनुसार, UAPA के 814 मामले दर्ज हुए, जिनमें 80% लंबित हैं। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2024 में भारत 161वें स्थान पर है। डिजिटल मीडिया को डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 सोशल मीडिया पर हो रही पत्रकारिता को भी नियंत्रित करने वाला है। उदार लोकतंत्र सूचकांक में भारत 179 देशों में 100वें स्थान पर है। सरकार की आलोचना को 'देशद्रोह' कहने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
पाकिस्तान ज़िया-उल-हक के समय से भारत को "हज़ार घाव" देने की रणनीति पर चल रहा है। तो क्या भारत बर्दाश्त करता रहे? नहीं, लेकिन जवाब के तरीके अलग हो सकते हैं। 26/11 मुंबई हमले (2008) में 175 लोग मारे गए। मनमोहन सिंह ने सैन्य कार्रवाई से परहेज किया, जीवित पकड़े गये आतंकी अजमल कसाब को 2012 में कानूनी तरीक़े से फांसी दिलवाई, और पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर आतंकवाद के पनाहगाह के रूप में अलग-थलग किया। 2004-14 के बीच जीडीपी वृद्धि 7.7% रही।
इससे पहले 1971 से 1999 के करगिल युद्ध के बीच शांति रही और भारत ने काफ़ी तरक़्क़ी की। 1991 के आर्थिक सुधारों ने एक नया दौर शुरू किया।
हथियारों की होड़ से पाकिस्तान अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाएगा, और चीन फायदा उठाएगा। भारत का रक्षा बजट $75 बिलियन, पाकिस्तान का $10 बिलियन (3.5% जीडीपी), और चीन का $225 बिलियन (1.7% जीडीपी) है। चीन तकनीक और अर्थव्यवस्था में आगे है। सैन्य खर्च में उलझने से चीन को अनुसंधान और AI में बढ़त मिलेगी।
पाकिस्तान ने युद्ध के बीच IMF से $1 बिलियन कर्ज लिया। वैश्विक शक्तियां शायद भारत की रफ्तार धीमी करने के लिए इसका इस्तेमाल कर रही हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते, और ट्रंप जैसे नेता भारत-पाकिस्तान को समान बताते हैं, जो भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है। मोदी की विदेश यात्राएं रिकॉर्ड तोड़ हैं, फिर भी कूटनीति कमजोर दिखती है। भारत का खुलकर पक्ष लेने वाले देशों की तादाद बेहद कम है।
आतंकी हमले के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान की 'न्यू नॉर्मल’ नीति भारत की छवि को मजबूत दिखाता है, लेकिन सैन्य खर्च, सामाजिक संकट, और लोकतंत्र पर खतरे बढ़ सकते हैं। आतंकवादी युद्ध शुरू करने की ताकत पा सकते हैं। मनमोहन सिंह की कूटनीति से सीख लेते हुए, भारत को सुरक्षा, विकास, और लोकतंत्र में संतुलन बनाना होगा। युद्ध में नायक बनते हैं, लेकिन बिना नुकसान के हित साधने वाले महानायक बनते हैं। भारत को ऐसे ही महानायकों की जरूरत है।