loader

रामपुर से चुनाव लड़ना नक़वी को भारी पड़ सकता है? 

मोदी सरकार के अकेले मुस्लिम चेहरे अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी को राज्यसभा का टिकट नहीं मिला है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि बीजेपी उन्हें रामपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा सकती है। हालांकि इसकी पुष्टि पार्टी की तरफ से नहीं हुई है। अभी सिर्फ क़यास ही लगाए जा रहे हैं। सबसे अहम सवाल यह है कि क्या नक़वी के लिए रामपुर के लोक सभा के उपचुनाव के ज़रिए संसद जाने की राह आसान होगी?

ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में रामपुर और आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर आगामी 23 जून को उपचुनाव होना है। समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ से तो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया है लेकिन रामपुर से अभी उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया गया है। 

आज़मगढ़ सीट जहां समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई है वहीं रामपुर सीट समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान के इस्तीफ़े से खाली हुई है।

मुख़्तार अब्बास नक़वी का राज्यसभा में कार्यकाल 7 जुलाई तक है। इस बीच अगर बीजेपी उन्हें रामपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ाती है और वह जीत जाते हैं तो राज्यसभा का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले वो लोकसभा के सदस्य बन जाएंगे। ऐसे में उनके मंत्री पद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर वो चुनाव हार जाते हैं तो उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा। ज्यादा से ज्यादा वो 6 महीने और मंत्री पद पर रह सकते हैं। क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से मंत्री तो कोई भी बन सकता है। लेकिन मंत्री बनने के बाद 6 महीने के अंदर उसे लोकसभा या राज्यसभा का चुनाव जीतकर संसद में आना पड़ता है।

नक़वी की उम्मीदवारी पर विचार 

हालांकि नक़वी रहने वाले तो प्रयागराज के हैं लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक कर्मक्षेत्र रामपुर को बनाया है। वो रामपुर में राजनीतिक रूप से लगातार सक्रिय रहे हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश की एकमात्र ऐसी लोकसभा सीट है जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 50% से ज्यादा है। इस सीट पर नक़वी की सक्रियता लगातार बनी रही है। वो यहां से एकबार 1998 में लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन 1999 और 2009 में उन्हें यहां हार भी मिली थी। उसके बाद पार्टी ने लखवी को लोकसभा चुनाव लड़ने का मौक़ा नहीं दिया।

ताज़ा ख़बरें

नक़वी की जीत पर भारी हार का रिकॉर्ड

साल 1998 में मुख्तार अब्बास नक़वी ने कांग्रेस की दिग्गज नेता बेगम नूर बानो को हराकर ख़ूब वाही लूटी थी। लेकिन वो रामपुर की सियासी पिच पर 'वन टाइम वंडरब्वॉय' ही साबित हुए। अगले ही साल हुए 1999 के चुनाव में वह बेगम नूर बानो से बुरी तरह हार गए थे। 2004 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े। लेकिन 2009 में उन्होंने एक बार फिर यहां से क़िस्मत आज़माई। लेकिन इस चुनाव में उन्हें फिर बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी। उस चुनाव में मुख्तार अब्बास नक़वी सपा, कांग्रेस और बीएसपी के बाद चौथे नंबर पर रहे थे। उन्हें महज़ 61,503 वोट मिले थे। ये कुल पड़े वोटों सिर्फ़ 10.15% था। 

Mukhtar Abbas Naqvi likely to contest Rampur Lok Sabha bypoll 2022 - Satya Hindi
नूर बानो।

पिछले दो चुनाव में नहीं मिला टिकट

साल 2014 में नकवी लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। उस समय वह पार्टी में चुनाव समिति के प्रभारी भी थे। उनकी चुनाव लड़ने की तैयारी भी थी। लेकिन शायद 2009 में हुई उनकी बुरी तरह हार की वजह से उन्हें टिकट नहीं दिया गया। ग़ौरतलब है कि 2014 का चुनाव अमित शाह के मार्गदर्शन में लड़ा गया था। ये भी कहा जाता है कि अमित शाह यूपी में किसी भी सीट पर मुसलमान को चुनाव नहीं लड़ाना चाहते थे। 

2019 के लोकसभा चुनाव में फिर वही कहानी दोहराई गई। 2014 में तो बीजेपी रामपुर सीट जीतने में कामयाब हो गई थी लेकिन 2019 में उसे सपा बसपा और रालोद के गठबंधन के चलते ये सीट गंवानी पड़ी।

रामपुर में बीजेपी मज़बूत नहीं

रामपुर में बीजेपी कभी भी बहुत ज्यादा मज़बूत नहीं रही। बीजेपी ने 1991 में पहली बार राम लहर में रामपुर लोकसभा सीट जीती थी तब यहां से राजेंद्र कुमार शर्मा बीजेपी के टिकट पर जीते थे। वह 1977 में भारतीय लोक दल के टिकट पर भी रामपुर से चुनाव जीत चुके थे। 2014 में देशभर में चली मोदी के नाम की सुनामी के बीच बीजेपी रामपुर सीट जीत पाई थी। डॉक्टर नेपाल सिंह को 22।18% 3,58,616 वोट ही मिले थे। उनसे हारने वाले समाजवादी पार्टी के नसीर अहमद खान को 3,35,181 यानि 20।73% वोट मिले थे। करीब 10% वोट कांग्रेस के नवाब काजिम अली खां ने ले लिए थे और बीएसपी के अनवर हुसैन ने भी 5% वोट हासिल किये थे। 

2019 में बीजेपी पर भारी पड़ा सपा-बसपा गठबंधन

लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी पर भारी पड़ा। समाजवादी पार्टी के आज़म खान ने बीजेपी की जयाप्रदा को क़रीब 1,20,000 वोटों से हराया। आज़म ख़ान को 5,59,717 वोट मिले थे। यह कुल पड़े वोटों के 52।69% थे। बीजेपी की उम्मीदवार जयाप्रदा को 4,49,180 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों के 42। 26% थे। इस चुनाव में जयाप्रदा को लेकर की गई एक टिप्पणी पर आजम खान के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था जो अभी तक चल रहा है समाजवादी पार्टी यहां पहले से मजबूत स्थिति में रही है। 2019 में बसपा का समर्थन पाकर और मजबूत हो गई थी।

Mukhtar Abbas Naqvi likely to contest Rampur Lok Sabha bypoll 2022 - Satya Hindi

समाजवादी पार्टी के टिकट पर 2004 और 2009 में जयप्रदा ही यहां से जीती थीं। 2004 में मुलायम सिंह के निर्देश पर आज़म ख़ान ने जयाप्रदा को जिताने में मदद की थी। लेकिन 2009 में आज़म के विरोध के बावजूद मुलायम सिंह जयाप्रदा को यहां से जिताने में कामयाब रहे थे। जयाप्रदा की लोकप्रियता और रामपुर से उनकी जीत का रिकॉर्ड के सहारे बीजेपी ने 2019 में असम का को हराने की कोशिश की थी लेकिन उसकी यह कोशिश नाकाम हो गई थी।

आसान नहीं होगी नक़वी की राह

अगर बीजेपी योगी सरकार के एकमात्र मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नक़वी को रामपुर के लोकसभा उपचुनाव में उम्मीदवार बनाती है तो यह पार्टी और निक़वी दोनों के लिए जोखिम भरा क़दम हो सकता है। रामपुर में बीजेपी बहुत ज्यादा मज़बूत नहीं है। अगर मोदी सरकार में अपने 8 साल के कार्यकाल के दौरान किए गए कामों की वजह से मुख्तार अब्बास नक़वी मुस्लिम वोट खींचने में कामयाब रहते हैं तो वो ये सीट निकाल भी सकते हैं। लेकिन रामपुर में बिछ रही चुनावी बिसात पर दूसरी पार्टियों के मोहरे भी चुनाव के नतीजों को प्रभावित करेंगे।

बसपा प्रमुख मायावती ने रामपुर में उपचुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। उनका यह फैसला बीजेपी के पक्ष में भी जा सकता है और ख़िलाफ़ भी। कांग्रेस ने भी अगर अपना उम्मीदवार उतारा तो यहां मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है।

समाजवादी पार्टी में चर्चा है कि आज़म खान खुद या उनके परिवार से कोई यहां से उम्मीदवार हो सकता है। आज़म ख़ान क़रीब सवा दो साल जेल में रह कर आए हैं उनके प्रति जबरदस्त सहानुभूति है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जेल में रहकर चुनाव लड़ने के बावजूद विधानसभा चुनाव में उन्हें भरपूर जनसमर्थन मिला है। लोकसभा चुनाव में अगर वह खुद या उनके परिवार से कोई उम्मीदवार होता है होता है सहानुभूति लहर पक्ष में जा सकती है।

विश्लेषण से और खबरें
ऐसे में अगर बीजेपी मुख्तार अब्बास नक़वी को रामपुर से उपचुनाव लड़ाने का जोखिम उठाती है तो फिर उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। मोदी-योगी को व्यक्तिगत स्तर पर जाकर नक़वी के समर्थन में उतरना होगा। अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश की एकमात्र मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट उपचुनाव में जीत जाती है तो यह मुसलमानों और देश के लिए एक बड़ा संदेश होगा।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें