26 अगस्त, 2025 को अहमदाबाद में मारुति सुजुकी के हंसलपुर संयंत्र में ई-विटारा के लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बयान चर्चा में है। उन्होंने कहा, "मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि पैसा किसका है, चाहे वह डॉलर हो, पाउंड हो, या काला हो या गोरा, लेकिन उस पैसे से जो उत्पादन होता है, उसमें मेरे देशवासियों का पसीना होना चाहिए।" यह बयान उनके पिछले रुख से उलट है, जिसमें वे काले धन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने और उसे विदेशी बैंकों से वापस लाने का दावा करते थे।
अब काले धन से मोदी को परहेज़ नहीं?
- विश्लेषण
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- 28 Aug, 2025

मोदी सरकार पर काले धन को लेकर नया सवाल उठ रहा है—क्या अब प्रधानमंत्री मोदी को काले धन से परहेज़ नहीं रहा? विपक्ष के आरोपों और पूरे विवाद को जानें विस्तार से।
मोदी का नया बयान देंग शियाओ पिंग के प्रसिद्ध कथन "बिल्ली काली हो या गोरी, चूहा पकड़ ले तो ठीक है" की याद दिलाता है, जो चीन के बाजारवादी सुधारों का प्रतीक था। लेकिन भारत, जो 1991 से उदारीकरण की राह पर है, में यह दृष्टिकोण अलग संदर्भ में देखा जा रहा है। कांग्रेस ने इसे भ्रष्टाचार का संकेत बताते हुए मोदी के पुराने बयानों से तुलना की है।
तो क्या आर्थिक दबाव ने इस नरम रुख़ को जन्म दिया है। क्या ऐसा नहीं लगता कि प्रधानमंत्री काला धन रखने वालों को संकेत दे रहे हैं कि वे बेहिचक निवेश करें, उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। इस समय देश आर्थिक संकट में है। अमेरिकी राष्ट्रपि ट्रंप ने 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाकर नया संकट पैदा कर दिया है। मैन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर का योगदान महज़ 15 फ़ीसदी है जबकि लक्ष्य 25 फ़ीसदी है। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे नारों के बावजूद धरातल पर कुछ उतरता नहीं दिख रहा है और बेरोज़गारी ऐतिहासिक गिवाट के दौर में है।