राहुल गाँधी ने वोट चोरी का आरोप लगाने के साथ-साथ देश के युवाओं से संविधान और लोकतंत्र बचाने की अपील की है। लेकिन एक्स पर इस सिलसिले में डाली गयी पोस्ट में छात्रों और युवाओं के अलावा जेन ज़ी का भी आह्वान किया गया था जिस पर बीजेपी आक्रामक हो उठी है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि राहुल गाँधी देश में अराजकता फैलाना चाहते हैं। नेपाल की तरह भारत में हिंसा कराना चाहते हैं। दरअसल हाल में नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर लगे बैन के ख़िलाफ़ जेन जीं सड़कों पर उतर आयी थी और पुलिस की गोलियों के जवाब में उसने सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक को फूँक डाला था। इसलिए राहुल की पोस्ट में लिखे जेन ज़ी शब्द ने बीजेपी को मौक़ा दे दिया है।

जेन ज़ी यानी क्या?

जेनरेशन ज़ेड या जेन ज़ी वो पीढ़ी जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई। यानी इनकी उम्र 13 से 28 साल के बीच है। ये वो लोग हैं, जो स्मार्टफोन के साथ बड़े हुए हैं। इंस्टाग्राम पर रील्स बनाते हैं, टिकटॉक पर डांस करते हैं, और डिस्कॉर्ड पर क्रांति की योजना बनाते हैं। लेकिन ये सिर्फ डिजिटल नेटिव्स नहीं; ये वो युवा हैं, जो जलवायु परिवर्तन, भ्रष्टाचार, और सामाजिक अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं। 

अब, दूसरी पीढ़ियों को भी समझ लें, ताकि तस्वीर साफ हो:
  • जेन एक्स (1965-1980): ये 45-60 साल वाले लोग हैं। इन्होंने 90 के दशक में भारत के आर्थिक उदारीकरण को देखा।  
  • मिलेनियल्स (1981-1996): 29-44 साल की उम्र। फेसबुक और ग्लोबलाइजेशन के दौर में बड़े हुए।
  • जेन जे़ड (1997-2012): 13-28 साल। टेक-सेवी, सोशल जस्टिस के लिए जागरूक। पैनडेमिक और क्लाइमेट क्राइसिस झेला।  
  • जेन अल्फा (2013-आज): 0-12 साल के बच्चे। iPad और AI के साथ बड़े हो रहे। मिलेनियल्स के बच्चे, जो भविष्य में चेंजमेकर्स बनेंगे।
पीढ़ियों का ये अंतर ज़ाहिर है कि शहरी मध्यवर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर किया जाता है। वरना नौजवानों की इस पीढ़ी में करोड़ों खेतों और खदानों में मेहनत कर रहे हैं। कुच अध्ययन बताते हैं कि जेन जीं सबसे डाइवर्स जनरेशन है। रंग, जेंडर, सेक्शुअल ओरिएंटेशन पर ओपन। लेकिन चुनौतियां भी हैं - 83% मेंटल हेल्थ इश्यूज, जैसे एंग्जायटी। फिर भी, ये भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ बेताब हैं। और यही बेताबी उन्हें सरकारों की नज़र में खतरनाक बनाती है।
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राहुल गांधी का आह्वान 

18 सितंबर 2025 को राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कान्फ्रेंस के बाद जो आह्वान किया, वह नेता प्रतिपक्ष के हैसियत से उनका अधिकार भी है और फ़र्ज़ भी। अगर उन्हें लगता है कि वोट चोरी हो रही है और चुनाव आयोग जैसी संस्थाएँ अपना काम नहीं कर रही हैं तो युवाओं के सामने इसे रखने में कोई बुराई नहीं है। भारत का लोकतांत्रिक इतिहास ऐसे ही बना है। जे.पी.आंदोलन से लेकर अन्ना आंदोलन तक युवाओं के दम पर तूफ़ान उठाने में कामयाब हुए। हैरानी की बात है कि जे.पी.आंदोलन के ज़रिए पहली बार राजनीतिक प्रतिष्ठा पाने वाली बीजेपी (उस समय जनसंघ) आज युवा आंदोलन के आह्वान को देशद्रोह बता रही है।

इस आह्वान के बाद राहुल गाँधी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अर्बन नक्सल तक कहा जो बताता है कि बीजेपी इस मुद्दे पर कितनी घबराई हुई है। ख़ासतौर पर जब भारत के नौजवान भी, ख़ासतौर पर बेरोज़गारी को लेकर वही दंश झेल रहे हैं जो नेपाल समेत कई पड़ोसी देशों में दिखाई पड़ा था।

वन पीस झंडा

इस समय पूरी दुनिया में वन पीस झंडा जेन ज़ी का प्रतीक बना हुआ है जो काठमांडू से लेकर पेरिस और जकार्ता तक में दिखा है और सरकारों को असहज कर रहा है। ये स्ट्रॉ हैट वाली खोपड़ी, जिसके नीचे हड्डियों का क्रास है जापानी मंगा यानी एनीमेशन “वन पीस” से आया जिसे 1997 में एइचिरो ओडा ने लिखा। कहानी एक काल्पनिक समुद्री दुनिया की है, जहाँ पाइरेट्स राज करते हैं। मंकी डी. लूफी नाम का एक लड़का, स्ट्रॉ हैट पहनकर, “पाइरेट किंग” बनने का सपना देखता है। उसका क्रू - स्ट्रॉ हैट पाइरेट्स - इस जॉली रोजर को झंडे पर लहराता है। जॉली रोजर 17वीं-18वीं सदी में समुद्री डाकुओं का सिम्बल था। फ्रेंच में “Jolie Rouge” (सुंदर लाल) कहलाता था, जो बाद में काले झंडे पर स्कल और क्रॉस्ड बोन्स बन गया। इसका मतलब था - आत्मसमर्पण करो, वरना मौत। लेकिन वन पीस में ये सिम्बल पॉजिटिव है - स्वतंत्रता, दोस्ती, और अत्याचार के खिलाफ बगावत।

जेन जेड ने क्यों चुना?

लूफ़ी और उसका क्रू वर्ल्ड गवर्नमेंट के खिलाफ लड़ते हैं। उनके मूल्य - स्वतंत्रता, सपनों का पीछा, दोस्ती, बहादुरी, और न्याय - जेन जेड को भाते हैं। इंडोनेशिया में जुलाई 2025 में ट्रक ड्राइवर्स ने इसे अपनाया, जब बजट कट्स, ओवरवेट ट्रक बैन के खिलाफ सड़कों पर उतरे। 26 अगस्त को एक गो-जेक राइडर की मौत ने इसे वायरल कर दिया। फिर नेपाल, फ्रांस, फिलीपींस में फैला। युवाओं का कहना है कि ये झंडा “विद्रोह और आजादी का सिम्बल है।” 
युवा हमेशा बड़े बदलाव के अगुवा बने हैं। भगत सिंह सिर्फ 23 साल के थे, जब उन्हें फांसी हुई। गांधी, नेहरू, बोस - सभी ने बीस-बाइस की उम्र में आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू किया।

घबराहट क्यों?

जेन जेड सिर्फ प्रोटेस्टर्स नहीं, चेंजमेकर्स हैं। वन पीस झंडा उनकी बगावत का प्रतीक है - स्वतंत्रता, न्याय, और सपनों की तलाश। राहुल गांधी का कॉल भारत में आक्रोश को हवा दे सकता है। लेकिन सवाल ये है कि सरकार आक्रोश के कारणों को संबोधित क्यों नहीं करती। अगर युवा बेरोज़गार हैं तो वजह सरकार ही है। आंदोलनकारियों या विपक्ष के नेताओं पर हमला बताता है कि सरकार इतिहास से सबक़ लेने को तैयार नहीं है। जैसा कवि मंगलेश डबराल ने लिखा है: “इतिहास में तानाशाहों का अंत हो चुका है, लेकिन उन्हें लगता है वे पहली बार हुए हैं।”