डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को एक बार फिर रिहा कर दिया गया है। बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराधों में सजा काट रहे राम रहीम को 5 अगस्त 2025 को हरियाणा सरकार ने 40 दिन की पैरोल दी। यह उनकी 14वीं रिहाई है। बाबा राम-रहीम लगातार अपने अनुयायियों से बीजेपी को वोट देने की अपील करते रहे हैं और माना जाता है कि हरियाणा की बीजेपी सरकार उसी के एवज़ में उन्हें बार-बार रिहाई देती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में कोई दूसरा कैदी नहीं है, जिसे इतने कम समय में इतनी बार छुट्टी मिली हो।

राम रहीम की बार-बार रिहाई

गुरमीत राम रहीम को 2017 में बलात्कार के दो मामलों में 20 साल की सजा सुनाई गयी थी। इसके अलावा, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरा प्रबंधन समिति के पूर्व सदस्य रणजीत सिंह की हत्या के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली। फिर भी, 2017 से अब तक वे अपनी सजा के 295 दिन से ज्यादा समय जेल से बाहर बिता चुके हैं। उनकी रिहाई का सिलसिला इस प्रकार है:
  • 2020: माँ से मिलने के लिए 1 दिन की पैरोल।
  • 2022: तीन बार पैरोल/फरलो, जिसमें 40 और 21 दिन की छुट्टियाँ शामिल थीं।
  • 2023: 5 बार पैरोल, जिसमें 50 दिन की लंबी पैरोल भी थी।
  • 2024: 13 अगस्त को 21 दिन और 1 अक्टूबर को 20 दिन की फरलो।
  • 2025: 28 जनवरी को 30 दिन की पैरोल और 9 अप्रैल को 21 दिन की फरलो।
  • 5 अगस्त 2025 को दी गई 40 दिन की पैरोल के दौरान राम रहीम सिरसा में डेरा सच्चा सौदा मुख्यालय में रहेंगे, जहाँ वे अपना जन्मदिन और रक्षा बंधन मनाएंगे।

पैरोल और फरलो: नियम क्या कहते हैं?

जेल मैनुअल के अनुसार, पैरोल पारिवारिक आपातकाल (जैसे शादी या मृत्यु) के लिए दी जाती है, जबकि फरलो कैदी को समाज से जोड़े रखने के लिए होती है, जिसके लिए ठोस कारण जरूरी नहीं। 10 साल से अधिक सजा वाले कैदी को साल में 10 सप्ताह की पैरोल और 4 सप्ताह की फरलो मिल सकती है। लेकिन राम रहीम को बार-बार बिना ठस कारण के रिहा किया गया।
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2024 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को बिना अनुमति पैरोल न देने की चेतावनी दी थी, जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने उनकी रिहाई को चुनौती दी। फिर भी, रिहाई का सिलसिला जारी है। जेल प्रशासन का दावा है कि राम रहीम का व्यवहार अच्छा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह इतना आसान है? देश की जेलों में कई पत्रकार और आंदोलनकारी बंद हैं, जिनके अच्छे व्यवहार की गवाही समाज देता है, फिर भी उन्हें ऐसी राहत नहीं मिलती।

राम रहीम के अपराध

2002 में एक गुमनाम पत्र ने डेरा सच्चा सौदा की काली सच्चाई उजागर की थी। एक साध्वी ने लिखा कि राम रहीम ने सिरसा मुख्यालय में उनकी और अन्य साध्वियों के साथ यौन शोषण किया। यह पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट को भेजा गया। साध्वी ने बताया कि राम रहीम अपनी “गुफा” (आलीशान निजी कक्ष) में साध्वियों को बुलाते थे, जहाँ 200 से ज्यादा साध्वियाँ उनकी सेवा करती थीं। विरोध करने पर परिवार को नुकसान की धमकी दी जाती थी।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जाँच शुरू की। 

25 अगस्त 2017 को, पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने राम रहीम को दो साध्वियों के बलात्कार के लिए 20 साल की सजा सुनाई। सजा के बाद हरियाणा और पंजाब में हिंसा भड़की, जिसमें 40 लोग मारे गए और 254 घायल हुए।

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या

सिरसा के छोटे से अखबार “पूरा सच” के संपादक रामचंद्र छत्रपति ने साध्वी के पत्र को 30 मई 2002 को “धर्म के नाम पर साध्वियों का जीवन बर्बाद” शीर्षक से छापा। इस खबर ने राम रहीम की छवि को गहरा नुकसान पहुँचाया। उन्हें शक था कि साध्वी का पत्र डेरे के पूर्व सदस्य रणजीत सिंह ने अपनी बहन से लिखवाया था, और छत्रपति ने इसे छापकर साज़िश को हवा दी।

24 अक्टूबर 2002 को, डेरे के दो शूटरों ने छत्रपति पर उनके घर के बाहर पाँच गोलियाँ दागीं। 21 नवंबर 2002 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। सीबीआई जाँच में राम रहीम को हत्या का मुख्य साजिशकर्ता पाया गया। 11 जनवरी 2019 को, पंचकूला की सीबीआई कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई।

रणजीत सिंह की हत्या

रणजीत सिंह डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति के सदस्य थे। राम रहीम को शक था कि साध्वी का पत्र रणजीत ने अपनी बहन से लिखवाया। 10 जुलाई 2002 को, रणजीत की उनके गाँव में गोली मारकर हत्या कर दी गई। सीबीआई जाँच में राम रहीम को हत्या का आदेश देने वाला पाया गया। 8 अक्टूबर 2021 को, उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई, लेकिन 2024 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, और 2025 में राम रहीम को नोटिस जारी हुआ।
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बीजेपी और डेरा

राम रहीम की बार-बार रिहाई के पीछे राजनीतिक स्वार्थ की बात सामने आती है। हरियाणा के 6 जिलों— सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, कैथल, कुरुक्षेत्र, और करनाल— में डेरे के लाखों अनुयायी हैं। अनुमान है कि हरियाणा की 30 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनके अनुयायी वोटरों को प्रभावित करते हैं। बीजेपी के साथ डेरे के संबंध 2014 से मजबूत हुए।
  • 2014: राम रहीम ने अनुयायियों को बीजेपी को वोट देने का निर्देश दिया। बीजेपी ने हरियाणा में सभी 10 लोकसभा सीटें और 40 विधानसभा सीटें जीतीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने डेरे जाकर राम रहीम का धन्यवाद किया।
  • 2015: दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में डेरे ने बीजेपी का समर्थन किया।
  • 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले, डेरे ने अनुयायियों को बीजेपी के लिए वोट जुटाने का निर्देश दिया।
बीजेपी विधायक सुनील सांगवान, सुनारिया जेल के जेलर रह चुके हैं। उन पर जेलर रहते हुए राम रहीम को विशेष सुविधाएँ देने का आरोप था। उनके पिता सतपाल सांगवान बीजेपी मंत्री रह चुके हैं। 2024 में, सुनील को बीजेपी ने राम रहीम की सिफारिश पर टिकट दिया। 2022 में, हरियाणा सरकार ने जेल नियमों में संशोधन कर पैरोल और फरलो को आसान बनाया, जिसका सबसे ज्यादा फायदा राम रहीम को मिला।
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डेरा सच्चा सौदा

डेरा सच्चा सौदा की स्थापना 29 अप्रैल 1948 को सिरसा में शाह मस्ताना जी ने की थी। वे सूफी संत थे और सच्चाई, प्रेम, और मानवता की सेवा को धर्म मानते थे। 1960 में शाह सतनाम सिंह डेरा प्रमुख बने। 1990 में, गुरमीत राम रहीम को उत्तराधिकारी बनाया गया। डेरा सच्चा सौदा का मूल सिद्धा सर्वधर्म समभाव रहा है। डेरे की ओर से रक्तदान, देहदान, नशा मुक्ति जैसे तमाम सामाजिक कार्यों का दावा किया जाता है।

बाबा से फिल्म स्टार तक

गुरमीत राम रहीम का जन्म 15 अगस्त 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ। बचपन में उसका नाम हरपाल सिंह था। 1974 में, शाह सतनाम सिंह ने उसे “गुरमीत” नाम दिया। 1990 में डेरा प्रमुख बनने के बाद, उन्होंने “राम रहीम” जोड़ा।

बाबा राम रहीम का फिल्मी शौक भी चर्चित रहा। 2015 से 2017 के बीच उसने पाँच फिल्में बनाईं—MSG: The Messenger, MSG-2, MSG: The Warrior Lion Heart, Hind Ka Napak Ko Jawab, और Jattu Engineer। इन फ़िल्मों में वह हीरो, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, और गायक भी था। उलकी फिल्में भव्य सेट और शाही अंदाज़ के लिए जानी गईं, लेकिन समीक्षकों ने इन्हें प्रोपेगेंडा ही करार दिया।

गुरमीत राम रहीम की कहानी अपराध, सजा, और सियासत का अनोखा मेल है। गंभीर अपराधों के दोषी होने के बावजूद बार-बार रिहाई और बीजेपी के साथ नजदीकी सवाल उठाती है। डेरे के लाखों अनुयायी और उनकी वोट जुटाने की ताकत शायद इसकी वजह है। लेकिन यह सवाल बना रहता है कि आखिर कब तक गरीबों को अगले जन्म के ऐश्वर्य का लालच देकर सियासी मोहरे बनाया जाता रहेगा? यह दुश्चक्र कब टूटेगा?