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क्या 370 के साथ अनुच्छेद 35ए पर चौंकाने वाला आएगा फ़ैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह कह कर ही एक तरह से कुछ लोगों को झटका दे दिया है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 अगस्त को सुनवाई शुरू करेगा। बीजेपी और आरएसएस अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने की माँग लंबे अरसे से उठाते रहे थे। बीजेपी ने कई बार कहा था कि अनुच्छेद 35ए के ज़रिए संविधान ही नहीं, संसद को भी छला गया और इसे गुपचुप तरीक़े से लाया गया था।

अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने का जिक्र बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र 2019 में भी प्रमुखता से किया था। और 5 अगस्त 2019 को इसने इन दोनों अनुच्छेदों को बदल दिया। सवाल है कि अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान था तो फिर अनुच्छेद 35ए क्या था? आख़िर इसको लेकर बीजेपी क्यों इतना हंगामा करती रही है। आइए, आपको बताते हैं कि यह मुद्दा इतना क्यों उठता रहा है।

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भारत के संविधान का अनुच्छेद 35ए जम्मू कश्मीर के बाहर के लोगों को राज्य में अचल संपत्ति ख़रीदने, स्थायी तौर पर बसने और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने से प्रतिबंधित करता था। 35ए राज्य में काम कर रही कंपनियों को राज्य से बाहर के लोगों को नौकरी देने से भी रोकता था। 35ए ने जम्मू कश्मीर विधानसभा को 'स्थायी निवासी' तय करने और उनको विशेष अधिकार देने के लिए विशेष शक्तियाँ दी थीं।

35ए को हटाने का विरोध क्यों?

जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों को आशंका रही है कि 35ए को हटाने पर राज्य के बाहरी लोग राज्य में बस जाएँगे जो कि उनकी सांस्कृतिक पहचान के लिए ख़तरनाक होगा। इस अनुच्छेद के हटने पर बाहरी लोग वहाँ के संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे। ऐसी स्थितियों को रोकने के लिए ही भारत के संविधान में 35ए के रूप में विशेष प्रावधान किया गया। इसमें कहा गया था कि भारत एक संघ है जहाँ राष्ट्रीय एकता के साथ ही क्षेत्रीय पहचान को भी सुरक्षित रखने को तरजीह दी गयी है। देश की भौगोलिक, भाषायी, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए ही यह प्रावधान किया गया ताकि यदि किसी समय पर केंद्रीय ताक़त मज़बूत हो जाए तो राष्ट्रीय एकता के नाम पर क्षेत्रीय पहचान से छेड़छाड़ न की जा सके।

किस आधार पर 35ए को हटाने की माँग?

35-ए को हटाने की मांग 5 अगस्त 2019 को इसे हटाए जाने से पहले से ही की जाती रही है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी गई थी कि 35-ए का हवाला देकर सरकार ने सभी नागरिकों को संविधान में दिये गये मूल अधिकारों से भेदभाव कर इसका उल्लंघन किया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसे तुंरत ख़ारिज़ कर देना चाहिए। उनका तर्क था कि राज्य में बाहरी लोगों को देश के अन्य राज्यों की तरह ही अधिकार मिलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गयी थी कि 35ए को संसद के ज़रिए लागू नहीं करवाया गया, इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए। एक दलील यह भी रही कि देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर में आए, लेकिन अनुच्छेद 35ए के हवाले से इन शरणार्थियों को निवासी बनाने से वंचित कर दिया गया। इनमें 85 फ़ीसदी पिछड़े और दलित समुदाय से हैं।

अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा था।

किन हालातों में 35ए को लागू किया गया था?

1947 में 'विशेष दर्जा' दिए जाने की सहमति के बाद कश्मीर भारत में शामिल हुआ था। यह विशेष दर्जा 370 के तहत दिया गया था, जिसमें रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा सभी मामले राज्य को तय करने का अधिकार दिया गया था। बाद में केंद्र और राज्य के रिश्तों को सुचारु रखने और अन्य मसलों के निपटारे के लिए 1952 में दिल्ली समझौता हुआ। इसमें कश्मीर के संबंध में राज्य के अधिकारों का ज़िक्र था। इसी में इसका भी ज़िक्र था कि 'स्थायी निवासियों' और उनको मिलने वाली सुविधाओं और हक़ को तय करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होगा। इसके लिए ही 35ए को शामिल किया गया।

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इस पर नेहरू के क्या थे विचार? 

दिल्ली समझौते को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में कहा था, 'एक या दो मामलों में कश्मीर के लोगों की कुछ चिंताएँ हैं। अंग्रेज़ी हुकूमत के समय कश्मीर के महाराजा इस बात को लेकर काफ़ी चिंतित थे कि कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य के कारण अंग्रेज़ कहीं बड़ी संख्या में वहाँ बसने की कोशिश न करें। इसलिये वहाँ बाहरी लोगों को ज़मीन ख़रीदने या रखने पर पाबंदी लगा दी गयी थी। महाराजा ने कभी इस पाबंदी को नहीं हटाया। मौजूदा समय में भी कश्मीर के लोगों की यही चिंता है कि बाहरी लोग स्थायी रूप से बस न जाएँ। और मुझे लगता है कि उनकी चिंताएँ वाजिब हैं कि कश्मीर को उन लोगों द्वारा रौंद दिया जाएगा जिनका मक़सद सिर्फ़ वहाँ पैसा बनाना और कब्ज़ा जमाना होगा।... वे लोग महाराजा के क़ानून को कुछ सुधारों के साथ लागू रखे रहना चाहते हैं जिसमें बाहरी लोगों को ज़मीन ख़रीदने की मनाही हो। और हम भी इससे सहमत हैं कि इसे बरक़रार रखा जाना चाहिए।'

दिल्ली समझौते को अपनाए जाने के साथ ही 1954 में 35ए भी लागू कर दिया गया था। तो क्या फिर से 35ए की वापसी हो पाएगी?

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क़मर वहीद नक़वी
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