loader

लखीमपुर: क्या बीजेपी में केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा के सारे रास्ते बंद?

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अजय मिश्रा ने कुछ लोगों के सामने इस बात पर नाराज़गी ज़ाहिर की कि इस घटनाक्रम के बाद पार्टी का कोई नेता न तो उनके समर्थन में सामने आया है और न ही कोई मुलाक़ात के लिए तैयार है। आख़िर मिश्रा से सब किनारा करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?
विजय त्रिवेदी

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने के मामले की राजनीतिक गर्मी अब बढ़ने लगी है, आशीष मिश्रा को पुलिस रिमांड पर भेजने से राजनीतिक दबाव और बढ़ जाएगा। लगता है कि बीजेपी आलाकमान को यह तपन महसूस होने लगी है। इस तपन से बचने और उससे पार्टी के राजनीतिक नुक़सान को बचाने की मशक्कत और सलाह मशविरा शुरू हो गया है। कांग्रेस शासित राज्यों के रास्ते कांग्रेस ने यूपी बीजेपी की राजनीति को निशाना बनाया है। महाराष्ट्र में सोमवार को सरकार के सभी सहयोगी दलों ने बंद रखा था। छत्तीसगढ़, पंजाब और राजस्थान की प्रदेश इकाइयाँ भी बीजेपी पर लगातार हमला कर रही हैं। राहुल गांधी के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ लखीमपुर खीरी पहुंचे थे और प्रियंका गांधी तब से वहाँ डटी हुई हैं।

ताज़ा ख़बरें

लखीमपुर मामले पर अदालत ने अब आशीष मिश्रा को तीन दिनों की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है। सुनवाई के दौरान एसआईटी ने 14 दिनों की रिमांड की मांग की थी। इस पर बचाव पक्ष का कहना था कि क्या आप थर्ड डिग्री इस्तेमाल करने के लिए मुलज़िम की कस्टडी रिमांड मांग रहे हैं जबकि आशीष ने एसआईटी के सभी 40 सवालों के जवाब दे दिए हैं और जांच में पूरा सहयोग दिया है। 

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में इस बात पर विचार मंथन हो रहा है कि आशीष मिश्रा मामले के बाद केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफ़ा लेने का राजनीतिक फ़ायदा नुक़सान कितना होगा। पार्टी में ज़्यादातर लोगों की राय है कि अब अजय मिश्रा को खुद इस्तीफ़ा दे देना चाहिए या पार्टी आलाकमान उन्हें इसके लिए आदेश दे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के साथ-साथ यह गंभीर राजनीतिक मसला हो सकता है। 

पार्टी में उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेताओं की राय है कि अब इस्तीफ़े के मसले पर जितनी देर की जाएगी, उतना ही ज़्यादा नुक़सान हो सकता है, लेकिन बहुत से लोग अब भी ब्राह्मण समुदाय की नाराज़गी का बहाना दे रहे हैं। उनका कहना है कि ब्राह्मण समाज पहले ही बीजेपी से खासा नाराज़ चल रहा है, खासतौर से विकास दुबे कांड के बाद और उसी का फ़ायदा उठाने के लिए समाजवादी पार्टी और बीएसपी लगातार ब्राह्मणों पर अपना फोकस बढ़ा रही है। बीएसपी ने तो अपनी कमान ही सतीश चन्द्र मिश्र को सौंप दी है तो समाजवादी पार्टी ने परशुराम के नाम पर राजनीति शुरू की है। 

union minister ajay mishra teni and bjp on lakhimpur kheri farmers killing case - Satya Hindi
लखीमपुर में घटना के कथित वीडियो का ग्रैब।

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तो इन दिनों मंदिर-मंदिर पहुँचने लगी हैं। रविवार को भी वाराणसी में रैली से पहले उन्होंने वहां पूजा अर्चना की। दरअसल, ब्राह्मणों की नाराज़गी को ध्यान में रखते हुए ही अजय मिश्रा को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। उत्तर प्रदेश में क़रीब 12 फ़ीसदी ब्राह्मण वोट है और इस वक़्त विधानसभा के 54 ब्राह्मण विधायकों में से चालीस से ज़्यादा बीजेपी के विधायक हैं। आठ ब्राह्मण मंत्री यूपी की योगी सरकार में हैं, लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री योगी के नाम पर कुछ लोग बार-बार ठाकुर बनाम ब्राह्मण राजनीति चलाते रहते हैं।

पिछले एक सप्ताह में बीजेपी का कोई बड़ा नेता अजय मिश्रा के समर्थन में सामने नहीं आया है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में साफ़ कहा कि यह चिंता का विषय है, लेकिन इतना साफ़ है कि सरकार और पार्टी किसी दोषी को नहीं बचाएगी।

कमोबेश ऐसा ही बयान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया है। फिर पार्टी के यूपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने पार्टी कार्यकर्ताओं के कार्यक्रम में अपना रुख यह कह कर साफ़ कर दिया कि किसी को गाड़ी से कुचलने की राजनीति करने के लिए आप नेता नहीं हैं। आप अपने अच्छे व्यवहार से ही वोटर और लोगों का दिल जीत सकते हैं। 

मिश्रा से कोई मिलने को तैयार नहीं!

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अजय मिश्रा ने कुछ लोगों के सामने इस बात पर नाराज़गी ज़ाहिर की कि इस घटनाक्रम के बाद पार्टी का कोई नेता न तो उनके समर्थन में सामने आया है और न ही कोई मुलाक़ात के लिए तैयार है, मिश्रा ने कई केन्द्रीय नेताओं और राज्य के आला नेताओं से मुलाक़ात की कोशिश की है। मुख्यमंत्री योगी से भी उनकी मुलाक़ात नहीं हो पाई है। 

विश्लेषण से ख़ास

पार्टी का क्या रुख?

पार्टी के एक नेता ने कहा कि बीजेपी का रुख हमेशा ही यह रहता है कि उसके नेता किसी दूसरे के अपराध से अपनी या पार्टी की कमीज़ को काली या दाग़दार नहीं होने देते और अक्सर उन्हें अकेले छोड़ दिया जाता है, चाहे फिर बीजेपी के अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण का मामला ही क्यों नहीं रहा हो। जिन्ना मसले पर पार्टी ने अपने सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से भी किनारा कर लिया था।  केन्द्रीय राज्य मंत्री एम जे अकबर का नाम भी ‘मीटू’ कैम्पेन के दौरान आने के बाद उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया। नरसिंह राव सरकार के दौरान जैन डायरी में नाम आने पर आडवाणी और मदन लाल खुराना समेत कई नेताओं को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। 

आडवाणी ने तो उस मामले से साफ़ नहीं निकलने तक चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान भी कर दिया था और यही वज़ह रही कि उन्होंने 1996 का आम चुनाव नहीं लड़ा था। हुबली मसले पर मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती ने कुर्सी छोड़ी थी।
ख़ास ख़बरें

मिश्रा की तमाम कोशिशों के बावजूद वो अपना रुख आलाकमान के सामने नहीं रख पा रहे हैं। उनका कहना है कि उनका बेटा आशीष मिश्रा उस घटना के वक़्त ना तो उस जीप में बैठा था और ना ही उस कार्यक्रम में शामिल था। आशीष मिश्रा स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम की पूछताछ के दौरान बहुत से महत्वपूर्ण सवालों के साफ़ जवाब नहीं दे पाया, इससे उस पर शक का दायरा गहरा हो गया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यदि यूपी विधानसभा चुनाव इतने क़रीब नहीं होते तो शायद अजय मिश्रा का इस्तीफ़ा टाला भी जा सकता था, लेकिन अब बहुत दिनों तक इसे टालना मुश्किल होगा। सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को होनी है। सर्वोच्च अदालत ने पहले ही इस मामले पर सरकार के रवैये की कड़ी आलोचना की थी, इसलिए अब अगली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना या फटकार झेलने से पहले बेहतर हो कि अजय मिश्रा की सरकार से छुट्टी कर दी जाए। क्या सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई से पहले बीजेपी की सुप्रीम लीडरशिप इस पर फ़ैसला लेने की हिम्मत दिखा पाएगी?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विजय त्रिवेदी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें