25 जून 2025 को भारत में आपातकाल (Emergency) की 50वीं वर्षगांठ थी। इस दिन को केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मोदी सरकार ने "संविधान हत्या दिवस" के रूप में प्रचारित किया, जिसका स्पष्ट उद्देश्य कांग्रेस और गांधी परिवार, विशेष रूप से राहुल गांधी, पर निशाना साधना था। राहुल गांधी लंबे समय से मोदी सरकार पर संविधान को कमजोर करने का आरोप लगाते रहे हैं। इस अभियान में इमरजेंसी को तानाशाही का प्रतीक बताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को निशाना बनाया गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या इंदिरा गाँधी केवल इमरजेंसी की वजह से याद की जाएँगी और क्या इमरजेंसी लगाने के फ़ैसले के लिए कुछ परिस्थितियाँ भी ज़िम्मेदार थीं। साथ ही यह भी समझना ज़रूरी है कि क्या इमरजेंसी के दिनों को याद कराने का अभियान चला रही बीजेपी के शासन में हालात क्या इमरजेंसी जैसे नहीं हैं?
इंदिरा गाँधी ने क्यों लगायी थी इमरजेंसी?
- विश्लेषण
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- 26 Jun, 2025

1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल क्यों लगाया था? जानिए इसके पीछे के राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक कारण, और कैसे यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बना।
इमरजेंसी के पहले इंदिरा
इमरजेंसी की कहानी को समझने के लिए हमें इंदिरा गांधी के जीवन और उनके समय की परिस्थितियों पर नज़र डालनी होगी। इंदिरा गांधी का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसका हर सदस्य स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था। मोतीलाल नेहरू, स्वरूप रानी नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू, विजय लक्ष्मी पंडित और उनके पति रणजीत सीताराम पंडित- सभी ने जेल की सजा काटी और लाठियां खाईं। 1932 में स्वरूप रानी नेहरू ने व्हीलचेयर पर बैठकर सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और लाठीचार्ज में गंभीर रूप से घायल हुईं। इंदिरा ने बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम की हवा में साँस ली। उन्होंने वानर दल बनाकर बच्चों को संगठित किया और 1942 में अपने पति फिरोज गांधी के साथ जेल में अपना 25वां जन्मदिन मनाया।