अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमों को समाप्त करने या उन्हें माफी देने की मांग करना सामान्य नहीं है। 

 25 जून 2025 कोडोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल पर जारी बयान में नेतन्याहू के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमों को "राजनीतिक प्रतिशोधऔर "न्याय का मज़ाककरार देते हुए इन्हें समाप्त करने या नेतन्याहू को माफी देने की माँग की।

यह बयान बताता है कि अमेरिका के लिए पश्चिम एशिया में इसराइल और उसके नेतृत्व के रूप में नेतन्याहू का कितना महत्व है। इससे पहले ईरान-इसराइल युद्ध में नेतन्याहू की भूमिका को ट्रंप ने "महान योद्धा" की संज्ञा दी। माना जा रहा है कि यह अमेरिका में यहूदी लॉबी का समर्थन हासिल करने की ट्रंप की रणनीति भी हो सकती है।इसराइल की न्यायपालिका पर इस बयान का कितना असर होगा कहना मुश्किल है लेकिन इसराइल के विपक्ष ने इसे "आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप" करार दिया है।

ताज़ा ख़बरें

नेतन्याहू पर आरोप

नेतन्याहू पर 2020 से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी, और विश्वासघात के गंभीर आरोप हैं। ये मामले "केस 1000", "केस 2000", और "केस 4000" के नाम से चर्चित हैं।

केस 1000: नेतन्याहू पर आरोप है कि उन्होंने हॉलीवुड निर्माता अर्नन मिलचन और ऑस्ट्रेलियाई अरबपति जेम्स पैकर से महंगे उपहार, जैसे सिगार और शैंपेन, स्वीकार किए, जिनकी कीमत लाखों शेकेल थी। बदले में, उन्होंने इन लोगों को वीजा और कर छूट जैसे लाभ प्रदान किए।

केस 2000: इस मामले में नेतन्याहू ने येदियोत अहरोनोत अखबार के प्रकाशक अर्नन "नोनी" मोज़ेस के साथ एक सौदा किया। इसके तहत अखबार उनके पक्ष में कवरेज देगा, और बदले में नेतन्याहू प्रतिद्वंद्वी अखबार इज़रायल हायोम को कमजोर करने के लिए कानून लाएंगे।

केस 4000: यह सबसे गंभीर मामला है, जिसमें नेतन्याहू ने बेज़ेक टेलीकॉम कंपनी के मालिक शाऊल एलोविच को नियामक लाभ पहुंचाए, और बदले में एलोविच के स्वामित्व वाले वाल्ला न्यूज़ पोर्टल पर सकारात्मक कवरेज हासिल की।

नेतन्याहू इन सभी आरोपों को खारिज करते हैं और इन्हें "राजनीतिक साजिश" बताते हैं। अगर दोषी पाए गए, तो उन्हें सात साल तक की जेल हो सकती है। उनकी अगली कोर्ट पेशी जल्द ही होने वाली है, लेकिन अभी जेल की नौबत नहीं आई है। ट्रंप का समर्थन उनके पुराने रिश्ते और हाल के ईरान-इज़रायल युद्ध में नेतन्याहू की भूमिका से प्रेरित हो सकता है।

भाई का सैन्य कार्रवाई में मारा जाना  

बेंजामिन नेतन्याहू की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब उनके बड़े भाई योनी (योनातन) नेतन्याहू को 1976 में एक सैन्य कार्रवाई में मार दिया गया। 4 जुलाई 1976 को, योनी ने ऑपरेशन एंटेबे में हिस्सा लिया, जो इसराइल की सबसे प्रसिद्ध सैन्य कार्रवाइयों में से एक है।
27 जून 1976 को एयर फ्रांस का एक विमान को पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फलस्तीन और जर्मन उग्रवादी समूह रेड आर्मी फैक्शन ने हाईजैक कर लिया। इसमें 258 यात्री सवार थे। विमान को युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे पर ले जाया गया, जहां तानाशाह इदी अमीन ने आतंकवादियों का समर्थन किया। आतंकवादियों ने गैर-यहूदी यात्रियों को छोड़ दिया, लेकिन 102 यहूदी और इसराइली यात्रियों को बंधक बनाए रखा।
योनी नेतन्याहू, जो इसराइल डिफेंस फोर्स की स्पेशल इकाई साएरेट मटकाल के कमांडर थे। उन्होंने इस बचाव अभियान का नेतृत्व किया। 4 जुलाई को, इसराइली कमांडो ने रात के अंधेरे में एंटेबे पर हमला किया, 102 में से 101 बंधकों को मुक्त कराया, लेकिन इस अभियान में योनी शहीद हो गए। वे इस ऑपरेशन में एकमात्र इसराइली सैनिक थे, जिनकी जान गई। इस मिशन को बाद में मिवत्सा योनातन (ऑपरेशन योनी) नाम दिया गया।
उस समय बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका में थे, जहां उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से पढ़ाई की थी और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में काम कर रहे थे। योनी के मारे जाने ने उन्हें गहरा सदमा दिया। 1978 में, वे इसराइल लौटे और अपने भाई की याद में योनातन नेतन्याहू एंटी-टेरर इंस्टीट्यूट की स्थापना की। यह घटना उनकी राजनीतिक विचारधारा और आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख का आधार बनी।

लिकुड पार्टी में नेतन्याहू का उदय 

योनी के मारे जाने ने नेतन्याहू को राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया। 1982 में, वे वाशिंगटन में इसराइली दूतावास में डिप्टी चीफ ऑफ मिशन बने, और 1984 से 1988 तक संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के राजदूत रहे। उनकी धाराप्रवाह अंग्रेजी और मीडिया में प्रभावी उपस्थिति ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई।
1988 में, वे इसराइल लौटे और दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी में शामिल हुए। उसी वर्ष के चुनाव में वे पहली बार नेसेट (इज़रायल की संसद) के लिए चुने गए और विदेश मंत्रालय में डिप्टी मिनिस्टर बने। 1991 में, उन्होंने मैड्रिड शांति सम्मेलन में इसराइल का प्रतिनिधित्व किया, जहां उनकी कट्टरवादी छवि उभरी।
1993 में, नेतन्याहू ने लिकुड पार्टी की नेतृत्व की दौड़ में जीत हासिल की, और यित्ज़हाक शमीर के बाद पार्टी के अध्यक्ष बने। उन्होंने बेनी बेगिन और डेविड लेवी जैसे दिग्गजों को हराया। 1996 में, वे इसराइल के पहले सीधे निर्वाचित और सबसे युवा प्रधानमंत्री बने, जब उन्होंने शिमोन पेरेस को हराया। उनकी जीत का कारण उस समय के आतंकी हमले थे, जिन्हें पेरेस रोक नहीं पाए। नेतन्याहू का नारा था, "नेतन्याहू - एक सुरक्षित शांति बनाना।"

नेतन्याहू ने लिकुड को एक कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी में बदला। उन्होंने पार्टी में अपने विरोधियों को हाशिए पर धकेल दिया और 2009 से 2021, और फिर 2022 से अब तक, वे इज़रायल के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री बने। इस दौरान, उन्होंने मध्य पूर्व में अमेरिकी योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण ट्रंप जैसे नेता उनका समर्थन करते हैं।

ट्रंप के बयान का कानूनी आधार 

ट्रंप के बयान का कोई कानूनी आधार नहीं है। इसराइल की न्यायपालिका स्वतंत्र है, और नेतन्याहू के मुकदमे वहां के कानून के तहत चल रहे हैं। ट्रंप का यह बयान केवल राजनीतिक समर्थन है, जो उनके और नेतन्याहू के 1980 के दशक से चले आ रहे दोस्ताना रिश्ते को दर्शाता है। इसराइल के विपक्ष ने इसे "आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप" करार दिया है। सैद्धांतिक रूप से, इसराइल की न्यायपालिका किसी भी लोकतांत्रिक देश की तरह स्वतंत्र है, और ट्रंप का बयान इसे प्रभावित नहीं कर सकता। राष्ट्रपति माफ़ी दे सकते हैं लेकर इसराइली मीडिया के अनुसार न ऐसा अनुरोध किया गया है और न ही वे इस पर विचार कर रहे हैं।

नेतन्याहू का पार्टी में विरोध 

नेतन्याहू से उनकी लिकुड पार्टी में भी कुछ लोग उनसे नाराज़ हैं, खासकर भ्रष्टाचार के आरोपों और 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले की विफलता के कारण। 2024 में, तेल अवीव और यरुशलम में हजारों लोगों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किए, जिसमें कुछ लिकुड समर्थक भी शामिल थे। फिर भी, उनकी कट्टर नीतियां और ईरान के खिलाफ हालिया कार्रवाइयों ने उनके समर्थन को फिर से बढ़ाया है।

नेतन्याहू का परिवार 

नेतन्याहू का जन्म 1949 में तल अवीव में हुआ। उनके पिता, बेंज़ियन नेतन्याहू, एक ज़ायनवादी यानी यहूदी राष्ट्रवादी इतिहासकार थे, और उनकी मां, ज़िल्पा, शिक्षिका थीं। उनके दो भाई, योनी और इदो, हैं। योनी के मारे जाने की घटना ने उनकी छवि को मजबूत किया और उन्हें इसराइल में एक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद की। नेतन्याहू की तीन शादियां हुईं:
  • मिरियम वीज़मैन: 1972-1978, बेटी नोआ।

  • फ्लावर सिक्स: 1981-1984, कोई संतान नहीं।

  • सारा बेन-अरत्ज़ी: 1991 से अब तक, दो बेटे याएर और अवनेर।

उनका निजी जीवन विवादों से भरा रहा है। उनकी दूसरी पत्नी के साथ संबंधों में तनाव की खबरें थीं, और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को प्रभावित किया। फिर भी, उनकी तीसरी पत्नी सारा उनके साथ मजबूती से खड़ी रही हैं। 

नेतन्याहू की आक्रामकता

नेतन्याहू की आक्रामक नीतियों से ग़ज़ा में पिछले डेढ़ साल से इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों ने लगभग 50,000 लोगों की जान ले ली, जिनमें हजारों बच्चे शामिल हैं। मानवाधिकार संगठनों ने इसे बर्बरता करार दिया है। इसके अलावा, परमाणु वार्ता से ठीक पहले ईरान पर ने क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाया। 

हालांकि, नेतन्याहू के शासन में इसराइल ने कई क्षेत्रों में प्रगति की:
अर्थव्यवस्था: 2009 से इज़रायल की जीडीपी दोगुनी होकर 2023 में लगभग 510 अरब डॉलर हो गई। हाई-टेक उद्योग और स्टार्टअप्स में इज़रायल दुनिया में अग्रणी है।  

रक्षा: इज़रायल ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई, जिसमें आयरन डोम मिसाइल रक्षा प्रणाली और साइबर सुरक्षा में निवेश शामिल है।  

कूटनीति: अब्राहम समझौते (2020) के तहत कई अरब देशों के साथ संबंध सामान्य हुए।

लेकिन फलस्तीनियों के खिलाफ उनकी नीतियों ने विवाद खड़ा किया और क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ाया।


राष्ट्रवाद की आड़ 

18वीं सदी के ब्रिटिश लेखक सैमुअल जॉनसन ने कहा था, "राष्ट्रवाद दुष्टों की अंतिम शरणस्थली है।" इसका अर्थ है कि कुछ लोग अपने गलत कार्यों को छिपाने या सही ठहराने के लिए राष्ट्रवाद का सहारा लेते हैं। ट्रंप का दावा है कि नेतन्याहू की उपलब्धियां उनकी गलतियों को नज़रअंदाज़ करने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन क्या नेतन्याहू अपनी कट्टर राष्ट्रवादी छवि का उपयोग भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिए कर रहे हैं? इसका जवाब इसराइल की अदालत के फैसले से मिलेगा।