ऐसा कौन-सा वर्ग है जो येन-केन प्रकारेण अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद भूमि विवाद को जीवित रखना चाहता है? इस विवाद के लगातार बने रहने से किन्हें और किस तरह का लाभ हासिल होगा? कहीं धार्मिक भावनाओं और आस्था की आड़ में इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीति का खेल तो नहीं बनाया जा रहा है? उच्चतम न्यायालय बार-बार साफ़ कर चुका है कि देश का संविधान ही सर्वोच्च है और यह संविधान से ही शासित होता है लेकिन इसके बावजूद न्यायालय की कतिपय व्यवस्थाओं से असहमति व्यक्त करते हुए शरिया क़ानून का हवाला दिया जाता है।
अयोध्या: विवाद को कौन ज़िंदा रखना चाहते हैं और क्यों?
- अयोध्या विवाद
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- 22 Nov, 2019

ऐसा कौन-सा वर्ग है जो येन-केन प्रकारेण अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद भूमि विवाद को जीवित रखना चाहता है? इस विवाद के लगातार बने रहने से किन्हें और किस तरह का लाभ हासिल होगा?
इन सवालों पर अगर गंभीरता से मंथन करें तो एक तथ्य सामने आता है कि पहली बार 23 अप्रैल 1985 को शाहबानो प्रकरण में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था की आड़ में सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं से भरपूर इस देश के सांप्रदायिक सद्भाव के ताने-बाने को प्रभावित करने के प्रयास किए गए।