नीतीश की पार्टी जेडीयू ने इस बार चुनाव में आरजेडी के 15 साल के शासन को मुद्दा बनाया है। जेडीयू ने बिहार में जो पोस्टर चुनाव के लिए जारी किए हैं, उनमें से एक पोस्टर में लिखा है - ‘भय बनाम भरोसा’ और दूसरे पोस्टर में लिखा है - ‘पति-पत्नी की सरकार’।
2019 में फिर से मोदी सरकार बनने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से नीतीश की पार्टी का बाहर रहना या बिहार में मंत्रिमंडल के विस्तार से बीजेपी का बाहर रहना यह दिखाता है कि दोनों दलों के रिश्ते उतने सहज नहीं हैं, जितना होने का दावा किया जा रहा है।
मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा परंपरागत रूप से आरजेडी के पक्ष में रहा है। अगर इस बार आरजेडी को अपने एम-वाई (मुसलिम-यादव) समीकरण का लाभ मिला तो निश्चित रूप से नीतीश की मुश्किलें बढ़ेंगी।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बीजेपी से नाता तोड़ लेने वाले और एक समय नरेंद्र मोदी के बिहार में चुनाव प्रचार पर रोक लगा देने वाले नीतीश बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे पर ख़ामोश दिखाई देते हैं।
प्रशांत किशोर और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार इस चुनाव में क्या ख़ास कर पाएंगे, इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र बनी रहेगी।