परिवारवाद के लिए लालू प्रसाद को बराबर अपनी आलोचना का शिकार बनाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 20 नवंबर को अपने मंत्रिमंडल में राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को बतौर मंत्री शपथ दिलवाई तो उम्मीद की जा रही थी कि इस परिवारवाद के लिए आलोचना का स्तर वही होगा जो लालू प्रसाद के लिए होता है।

उपेंद्र कुशवाहा अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के संस्थापक और अध्यक्ष हैं और उनकी पत्नी सासाराम से उनकी पार्टी के टिकट पर विधायक बनी हैं। और अब बिना किसी सदन का सदस्य होते हुए उनके बेटे 35 साल के दीपक प्रकाश ने मंत्री पद की शपथ ली है।


लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के इस कदम को परिवारवाद के दायरे में लाने के बदले इसे उनकी रणनीति बताया गया। इस काम में स्वर्ण बहुल गोदी मीडिया और इनफ्लुएंसर्स ने भरपूर तरीके से हिस्सा लिया। कुछ पत्रकारों ने तो उपेंद्र कुशवाहा को खुद यह दलील पेश कर दी कि परिवार के किसी सदस्य को मंत्री बनवाने से किसी के पाला बदलने का डर नहीं रहता।

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दीपक प्रकाश का मंत्री बनना सबके लिए नई खबर थी। मगर गोदी मीडिया में इसे परिवारवाद की समस्या बताने की जगह यह बताया जाने लगा कि दीपक प्रकाश कितने पढ़े लिखे हैं। उन्होंने कहां-कहां से डिग्री ली है। इसकी चर्चा हुई कि उन्होंने मंत्री पद की शपथ लेने के लिए किस तरह कैजुअल लिबास पहन रखा था। उनकी चप्पल कैसी थी। उन्होंने नौकरी कहां की और अब वह सेल्फ एंप्लॉयड हैं।

इसके बाद यह समझाने की कोशिश की गई कि उपेंद्र कुशवाहा सीटों के मामले में नाराज चल रहे थे और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने उन्हें एमएलसी की सीट के वादे पर मनाया था। यह माना जा रहा था कि उपेंद्र कुशवाहा अपनी पत्नी को मंत्री पद की शपथ दिलवाएंगे लेकिन उन्होंने अपने बेटे को मंत्री बनाकर यह कथित रणनीति दिखाई जिससे अब उनके बेटे को भारतीय जनता पार्टी को जल्दी एमएलसी बनवाना पड़ेगा।

इससे 2020 के विधानसभा चुनाव की बात की स्थिति भी ताजा हो गई जब विकास सुशील इंसान पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी को भाजपा ने मंत्री पद की शपथ दिलवाने के बाद एमएलसी बनाया था। हालांकि उन्हें पूरा कार्यकाल नहीं मिला था इसलिए जब कुछ ही महीनों के बाद उनकी एमएलसी की अवधि खत्म हो गई तो उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था।

याद रखने की बात यह भी है कि इस शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे जो राहुल गांधी और लालू प्रसाद पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी नीतीश और मोदी का समर्थन करने वाले नेताओं के परिवारवाद के बारे में कभी मुंह नहीं खोला।

उम्मीद की जा रही थी कि पत्रकार और इनफ्लुएंसर्स इस बात के लिए उपेंद्र कुशवाहा के साथ-साथ नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी दोनों की आलोचना करेंगे लेकिन इसके बदले उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा रणनीतिकार बताने को प्राथमिकता दी।


खुद को लोहिया और जेपी का शिष्य बताने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीति में कोई अनुभव नहीं रखने वाले अपने बेटे को मंत्री बनाने के लिए यह तर्क दिया कि राजनीति में युवाओं का आना जरूरी है। यानी उनका बेटा राजनीति में आए तो वह युवा कहलायेगा और विरोधी दलों में ऐसा हो तो वह परिवारवाद कहलाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं में ज्यादा क्षमता होती है और मौका मिलने पर उन्हें आगे लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं की क्षमता का राजनीति में भी इस्तेमाल होना चाहिए। किसी पत्रकार ने उनसे यह नहीं पूछा कि उनकी पार्टी में उन्हें कोई और युवा क्यों नहीं मिला।
उपेंद्र कुशवाहा ने स्पष्ट तौर पर वही डर दिखाया जो कभी लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के वक्त दिखाया था। उन्होंने इस बात को भी ताजा कर दिया कि जब नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया तो कैसे उनके लिए समस्या खड़ी हो गई। इसके साथ ही उन्होंने कुछ उदाहरण भी दिए जिसमें वह यह साबित करना चाह रहे थे कि अगर उन्होंने अपनी पार्टी की कमान अपने परिवार यानी पत्नी और बच्चे को नहीं दी तो जिस तरह दूसरी पार्टियों में टूट-फूट हुई है वैसा ही कुछ उनकी पार्टी में भी हो जाएगा। हालांकि उन्होंने अब तक जितनी पार्टियां बनाई और बदली हैं। उसे देखते हुए उनकी यह बात थोड़ी कमजोरी लगती है।

उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी के चुने गए प्रतिनिधियों के बारे में यह कहा कि कैसे वह लोग उन्हें छोड़ कर चले गए। उन्होंने याद दिलाया कि जब 2014 में उनकी पार्टी के तीन सांसद बने थे तो दो उन्हें छोड़कर चले गए थे। यानी परिवारवाद के खिलाफ लालू को आलोचना का शिकार बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा की जब अपनी बारी आई तो उन्होंने परिवारवाद के पक्ष में तर्क गढ़ने शुरू कर दिए। कमाल की बात यह है कि पत्रकारों ने भी उनसे सवाल करने के बजाय उनके पक्ष में ही दलील गढ़े और बेहद खुशी से उनकी हां में हां मिलाई।

खुद दीपक प्रकाश से जब यह पूछा गया कि उनके मंत्री बना क्या परिवारवाद नहीं है तो उन्होंने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि यह सवाल उन्हें उनके पिता उपेंद्र कुशवाहा से पूछना चाहिए। वैसे यह लग रहा था कि उन्हें यह जवाब पहले से सिखाया गया है। दीपक प्रकाश ने अपनी पढ़ाई लिखाई का हवाला दिया और विपक्षी दलों पर हमले के लिए जंगल राज जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया। दीपक प्रकाश ने बहुत ही मासूमियत से यह भी कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि वह उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र हैं। उन्होंने इसी बात को आधार बनाते हुए यह दावा भी किया की बचपन से राजनीति को करीब से देखते आए हैं। तो क्या तेजस्वी प्रसाद यादव और राहुल गांधी ने राजनीति को बचपन से करीब से नहीं देखा?

दीपक प्रकाश ने यह दावा भी किया कि वह पिछले चार-पांच सालों से पार्टी के काम में सक्रिय रहे हैं लेकिन सही बात यह है कि अक्सर लोगों ने तो इससे पहले उनका नाम भी नहीं सुना था। एक तरफ वह यह दावा करते हैं कि वह पार्टी का काम कर रहे थे तो दूसरी तरफ यह भी कहते हैं कि उन्हें तो यह मालूम ही नहीं था कि उन्हें मंत्री बनाया जाने वाला है। उन्होंने यह भी कबूल किया कि यह उनके लिए भी सरप्राइज था।

इस बात के लिए जब नीतीश कुमार की आलोचना की गई तो बहुत से लोगों ने यह दलील दे दी कि नीतीश कुमार ने अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया। अपराधियों के मामले की तरह की तरह ही नीतीश कुमार की इस बात के लिए आलोचना होती है कि उन्होंने अपना परिवार भले ही ना बढ़ाया हो लेकिन उन्होंने परिवारवादियों की मदद से सरकार चलाई और उन्हें संरक्षण दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में भी यही बात कही जाती है। नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों के परिवारवाद को तो आलोचना का शिकार बनाया लेकिन अपने समर्थक दलों के परिवारवाद को गले से लगाया।

मामला केवल उपेंद्र कुशवाहा के बेटे का नहीं है बल्कि नीतीश कुमार के नए मंत्रिमंडल में भी कम से कम 10 ऐसे मंत्री हैं जो परिवारवाद के स्पष्ट उदाहरण हैं। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र हैं। नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी भी फिर मंत्री बने हैं जो पूर्व मंत्री महावीर चौधरी के पुत्र हैं। भाजपा कोटे से बने एक और मंत्री नितिन नबीन पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा के पुत्र हैं। एक बार फिर मंत्री बनाए गए संतोष सुमन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र हैं।

इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की पुत्रवधु और पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद भी मंत्री बनाई गई हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की पुत्री श्रेयसी सिंह भी मंत्री बनी हैं।
नीतीश कुमार के एक और करीबी सहयोगी माने जाने वाले विजय कुमार चौधरी के पिता जगदीश प्रसाद चौधरी लसिंहसराय विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं।
लालू प्रसाद हों या राहुल गांधी, जब उनका विरोध परिवारवाद के नाम पर होता है तो राजनीतिक पार्टी हो या नेता हों, दरअसल अपने परिवारवाद के लिए जगह तैयार करते हैं और इस बौद्धिक बेईमानी में मीडिया, इनफ्लुएंसर्स और विचारक सब शामिल होते हैं।