Bihar SIR Controversy: बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में सबसे ज्यादा महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों के वोटरों के नाम गायब हैं। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में इसकी पुष्टि की गई है। ऐसे में हाशिए पर पड़े समुदायों में मताधिकार को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में महिलाओं के नाम भी बड़े पैमाने पर गायब
बिहार में दो दिन पहले जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों में वोटरों के नाम सबसे ज्यादा गायब पाए गए हैं। स्क्रॉल ने चुनाव आयोग के डेटा का विश्लेषण किया है। कुल 65 लाख हटाए गए नामों में से 55% महिलाएं हैं। बिहार में महिलाएं राज्य के मतदाता आधार का केवल 47.7% हिस्सा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह काम बिना टारगेट तय किए नहीं किया जा सकता।
बिहार SIR में महिलाएं कहां
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 43 में 60% या उससे अधिक मतदाता महिलाओं के नाम गायब हैं। कैमूर जिले की राजपुर विधानसभा सीट, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, में सबसे अधिक 69% मतदाता महिलाएं गायब हैं। यह आंकड़ा इस बात की ओर इशारा करता है कि मतदाता सूची से हटाए गए लोगों में महिलाओं का अनुपात असमान रूप से अधिक है।
बिहार SIR में मुस्लिम क्यों टारगेट पर
मुस्लिम बहुल जिलों में चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा नाम गायब हैं। बिहार के 10 सबसे बड़े मुस्लिम आबादी वाले जिलों में से पांच - पूर्णिया, किशनगंज, मधुबनी, भागलपुर और सीतामढ़ी - में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाताओं के नाम गायब हैं। पूर्णिया जिले में, जहां मुस्लिम आबादी लगभग 38.5% है, 2,73,920 मतदाताओं के नाम हटाए गए। मधुबनी में 3,52,545, पूर्वी चंपारण में 3,16,793 और सीतामढ़ी में 2,44,962 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए। डेटा से यह भी पता चलता है कि जिन जिलों में मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां नाम हटाने की दर भी अधिक है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी वाले जिलों में यह दर उससे कम है।पश्चिम बिहार में SIR सबसे अधिक प्रभावी
पश्चिम बिहार के गोपालगंज जिले में सबसे अधिक 15.1% नाम गायब हैं। जिले की छह विधानसभा सीटें - गोपालगंज, कुचायकोट, बरौली, हथुआ, बैकुंठपुर और भोरे में 18.25% तक नाम कटने वाली 20 सीट प्रमुख हैं। पूर्णिया जिले की तीन सीटें - पूर्णिया, अमौर और धमदहा में भी बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं।
बिहार SIR पर चिंताएं क्या हैं
विपक्षी दलों और नागरिक समाज संगठनों ने चेतावनी दी है कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया लाखों नागरिकों, खासकर दलितों, मुस्लिमों और प्रवासी मजदूरों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। 24 जून से 26 जुलाई के बीच मतदाताओं को गणना प्रपत्र जमा करने थे, और अब उन्हें अंतिम सूची में शामिल होने के लिए नागरिकता का प्रमाण देना होगा, जो 30 सितंबर को प्रकाशित होगी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए विशेष रूप से मुश्किल भरी हो सकती है। क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेजों की कमी होगी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए कहा है कि चुनाव आयोग को "बड़े पैमाने पर लोगों के नाम" शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए, न कि "बड़े पैमाने पर नाम डिलीट" करने पर। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची प्रकाशित करने से रोकने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह केवल एक ड्राफ्ट सूची है।
93 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने एसआईआर को "लोकतंत्र के आधार पर हमला" करार दिया है, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए। उनका कहना है कि कई भारतीयों के पास नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं, और यह प्रक्रिया उनके मताधिकार को प्रभावित कर सकती है। विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र, जिसमें अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया शामिल हैं, पर इस प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जहां कई परिवारों के पास स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र जैसे आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं।
बहरहाल, बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों से नाम गायब होने ने सिर्फ चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चुनौती भी पेश कर दी है। जैसे-जैसे अंतिम सूची (1 सितंबर) की तारीख नजदीक आएगी, सभी की नजर इस बात पर टिकी रहेगी कि क्या चुनाव आयोग इन चिंताओं को दूर कर पाएगा और सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करने में सफल होगा।