Bihar Elections 2025: बिहार में मतदाता सूची संशोधन से सिर्फ विपक्ष ही नहीं, भाजपा के सहयोगी दलों में भी बेचैनी है। राज्य में जल्द विधानसभा चुनाव हैं। चुनाव आयोग पर बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए जीतोड़ मेहनत के आरोप लग रहे हैं।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के कुछ सहयोगी दलों में बेचैनी पैदा कर दी है। हालांकि, विपक्ष की आलोचनाओं के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने सार्वजनिक रूप से इस प्रक्रिया का समर्थन किया है।
चुनाव आयोग ने 25 जून से शुरू हुए इस संशोधन अभियान को 25 जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची से फर्जी और डुप्लिकेट एंट्री को हटाने, नए मतदाताओं को जोड़ने और मौजूदा विवरणों को अपडेट करने का काम किया जा रहा है। लेकिन, इस अभियान ने एनडीए के कुछ सहयोगी दलों, खासकर छोटे दलों में, चिंता बढ़ा दी है। सूत्रों के अनुसार, कुछ सहयोगी दल इस बात से आशंकित हैं कि मतदाता सूची में बदलाव उनके समर्थन आधार को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उनकी पकड़ पहले से कमजोर है।
मतदाता सूची संशोधन को लेकर जो बातें विपक्ष कह रहा है, वही बात बीजेपी के सहयोगी दल भी कह रहे हैं। इन दलों के कई नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राज्य में साक्षरता और गरीबी का जो हाल है, उसमें हाशिए पर पड़े समूहों के पास कोई दस्तावेज नहीं होगा। ऐसे तमाम लोगों के पास जन्म तिथि और जन्म स्थान का प्रमाण तो क्या 11 दस्तावेजों में से कुछ भी नहीं मिलेगा। हम लोगों को व्यावहारिक होना चाहिए।
नेताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि चूंकि मतदाता सूची में नाम शामिल करना सीधे तौर पर सरकारी लाभों से जुड़ा नहीं है, इसलिए मतदाता अतिरिक्त कोशिश क्यों करेंगे। ऐसे दलों ने दावा किया कि उनके नाम शामिल कराना और दस्तावेज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी अंततः राजनीतिक दलों पर आ जाएगी। लोजपा (आरवी) के एक नेता ने कहा, "मतदाता इतना प्रेरित नहीं होगा कि वह आवश्यक दस्तावेज प्राप्त करने के लिए मेहनत करे या पैसा खर्च करे। अंततः पार्टी कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके वोट बैंक को वोट देने का अधिकार बरकरार रहे। सभी पार्टियां पहले से ही इस पर काम कर रही हैं।"
विपक्षी दलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस ने इस संशोधन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह अभियान सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में मतदाता सूची को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "हम मतदाता सूची को पारदर्शी और निष्पक्ष रखने की मांग करते हैं। किसी भी तरह की हेराफेरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
बीजेपी और जेडीयू इन आरोपों से सहमत नहीं हैं। दोनों दलों ने कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष और नियमों के अनुसार हो रही है। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "यह अभियान मतदाता सूची को पूरी तरह सही करने के लिए है, ताकि चुनाव में किसी तरह की गड़बड़ी न हो।" लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान ने भी इस प्रक्रिया का समर्थन करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह संशोधन नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है और इसका उद्देश्य स्वच्छ और सटीक मतदाता सूची तैयार करना है। आयोग ने सभी पक्षों से सहयोग करने और किसी भी अनियमितता की शिकायत दर्ज करने की अपील की है।
बहरहाल, बिहार में इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है। विश्लेषकों का मानना है कि बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में मतदाता सूची का संशोधन चुनावी मुद्दा बन सकता है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच टकराव और बढ़ सकता है।